Atmadharma magazine - Ank 187
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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वैशाखः २४८पः १९ः
मैं रटता रटता आया रे.....
गुरुवरके साथ आया........
इत्यादि भक्ति बाद आहारजीथी प्रस्थान करीने सौ टीकमगढ आव्या.....ने त्यां जिनमंदिर पासे मंडपमां
भक्ति थई–
तुमसे लागी लगन....लेलो अपनी शरन.....
पारस प्यारा......मेटो मेटोजी संकट हमारा......
भगवाननी भक्तिना रंगथी रंगायेला भक्तोने आ रीते उपराउपरी नवा नवा धामोमां जिनेन्द्रभक्ति
करतां आनंद थतो हतो. भक्ति बाद राते संघ पपौराजी आवी गयो.
आ रीते आजे एक ज दिवसमां पपौराजी, आहारजी तथा टीकमगढमां वंदन–पूजा–भक्ति थयां....आम
गुरुदेव साथे उपराउपरी नवा नवा जिनधामोने भेटतां भक्तोने देशना स्मरणनो अवकाश पण मळतो न
हतो......तीर्थवंदना करतां करतां एक ज प्रश्न उठतो हतो के हवे कयुं तीर्थ आवशे?
ललितपुर
चैत्र वद बीजनी सवारमां, जिनेन्द्र देवना दर्शन करीने आहारजीथी ललितपुर तरफ प्रस्थान कर्युं....वच्चे
एक गामे गुरुदेवनुं स्वागत करीने संघना यात्रिकोने चा–पाणी माटे रोकया हता. त्यां जिनमंदिरना दर्शन करीने
ललितपुर पहोंच्या...गुरुदेवनुं स्वागत थयुं....विशाळ मंदिरमां नव वेदी छे, तथा भोंयरामां पण प्राचीन प्रतिमाओ
छे, मूळनायक श्री अभिनंदनस्वामी छे; मानस्तंभ पण छे. आ उपरांत गाममां बीजा ३ विशाळ मंदिरो अनेक वेदी
सहित छे. प्रवचन–भक्ति वगेरे कार्यक्रमो हता.
देवगढ
बीजे दिवसे (चैत्र वद ३) सवारमां ललितपुरथी देवगढना दर्शन करवा गया. (अहीं डाकुओनो विशेष
भय होवाथी ३० जेटला पोलीसोनी पार्टी संघनी साथे हती) देवगढमां नानकडो पर्वत छे.....देवगढ खरेखर देवोनो
ज गढ छे, गढनी अंदर लाखोनी संख्यामां जिनदेवनी प्रतिमाओ छे. लगभग वीसेक मिनिटमां पर्वत उपर चडी
जवाय छे. उपर त्रण परकोटा छे ने ३२ मंदिरोना दर्शन छे. वीखरायेलो अपार जैनवैभव ठेरठेर नजरे पडे छे. सुंदर
कळामय अद्भुत शांत–सौम्य मुद्राधारक लाखो दिगंबर जिनप्रतिमा त्यां शोभे छे,–तेनो मोटो भाग खंडित दशामां
छे.–अहीं एटला जिनप्रतिमा छे के चोखानी आखी गुणी भरी होय ने दरेक प्रतिमा पासे फकत एकेक दाणो
मूकवामां आवे तो पण ते चोखा खूटी जाय. वच्चेना मुख्य मंदिरमां शांतिनाथ प्रभुना १२ फूट ऊंचा प्राचीन प्रतिमा
बिराजे छे. तेने फरता चारे बाजु अनेक मंदिरोनी रचना जोतां एम लागे छे के वच्चेना मुख्य मंदिरने फरता
बावन जिनालयोनी रचना हशे. अहीं एक स्तंभ उपर जिनप्रतिमा छे, वच्चे मुनिप्रतिमा छे अने नीचे
अर्जिकामाता कोतरेला होय–एम लागे छे. क्यांक माताजी १६ स्वप्नो नीहाळी रह्या छे, क्यांय देवीओ मातानी
सेवा करी रही छे, कयांक पंच परमेष्ठी भगवंतोनी प्रतिमा शोभी रह्या छे, तो कयांक मोरपींछी–कमंडळ संयुक्त
मुनिभगवंतो नजरे पडे छे,–आम पर्वत उपर चारेकोर विविध प्रकारना भाववाही कळामय द्रश्यो नजरे पडे छे. आ
उपरांत एक मंदिरमां चक्रवर्ती राजवैभव छोडीने मुनि थया छे–तेनुं द्रश्य छे, मुनिराजना चरणो पासे छोडेला नव
निधान तथा १४ रत्नो (हाथी वगेरे) पडया छे. अहा! जाणे हमणां ज ते बधो वैभव छोडीने चक्रवर्ती (शांतिनाथ
के भरतजी वगेरे) मुनि थाय छे, ने ते निधानो तेमना चरणो पासे दीनताथी अनाथपणे लेटी रह्या छे,–पण
मुनिराज तो पोताना आत्मध्यानमां तल्लीन छे.–ए भावभीनुं द्रश्य जोतां भक्तना हृदयमांथी सहेजे उद्गार सरी
पडे छे के–
धन्य मुनिश्वर आतमहितमें
छोड दिया परिवार.....
कि तुमने छोडा सब घरबार....
धन छोडा, वैभव सब छोडा,
छोडा चक्रवर्ती राज.....
कि तुमने छोडा नवनिधान.....
आ रीते देवगढमां अनेकविध जिनवैभवना दर्शन करीने सौ नीचे आव्या. नीचे धर्मशाळामां एक मंदिर छे.
त्यां मुनिराजना एक अद्भुत प्रतिमा बिराजे छे.