Atmadharma magazine - Ank 187
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः २२ः आत्मधर्मः १८७
परंतु ते बंध हतुं, तेना द्वारा उपर चार जिनबिंबो कोतरेला हता. त्यांथी गाममां जईने एक अति भव्य
जिनालयना दर्शन कर्या. शांतिनाथ प्रभुने नीहाळतां ज भक्तो हर्षथी प्रफुल्लित थया, ने थोडीवार तो शांतिनाथ
प्रभुना शरणे शांतिथी बेसी गया. लगभग १२ फूट ऊंचा भाववाही भगवान छे, ने ११०० वर्ष जेटला प्राचीन
छे. मंदिरना दरवाजे हाथी जेवडा मोटा बे सफेद हाथी छे; फरता विशाळ चोगानमां अनेक वेदीओ जिनबिंबोथी
शोभे छे. एक जिनमंदिरनी वेदी चांदीनी कळामय छे ने बंने बाजु दर्पणथी अद्भुत शोभे छे–जाणे के अकृत्रिम
जिनालयोनी हारमाळा होय! तेना दर्शन करतां भक्तोने घणो आनंद थाय छे. पू. बेनश्रीबेन आ विशाळ
मंदिर नीहाळीने बहु प्रसन्न थया. टाईम होत तो आ मंदिरमां भक्ति–पूजन करवानी सौनी भावना हती.
दर्शन बाद अकृत्रिम चैत्यालयोने याद करीने पू बेनश्रीबेन जय जयकार करावता हता. आ मंदिरना दर्शनथी
जाणे एक तीर्थनी यात्रा करी होय एवो सौने आनंद थयो. मंदिरनुं कळामय शिखर १०० फूट जेटलुं ऊंचु छे, ने
उपर २१ जेटला सुवर्ण कलशोथी शोभी रह्युं छे.
जिनमंदिरना दर्शन बाद त्यांना एक विशाळ रमणीय बाग पासे सौए सांजना नास्तापाणी करी लीधा,
ने पछी त्यांथी प्रस्थान करीने कोटा पहोंच्या. झालरापाटण अहींना झालावार जिल्लानुं एक मुख्य गाम छे,
अहीं बीजा पण बे मंदिरो छे. गुरुदेव रात्रे अहीं रह्या हता.
कोटा शहेर (चैत्र वद ७ तथा ८)
सवारमां गुरुदेव पधारतां हजारोनी संख्यामां जनताए भावभीनुं स्वागत कर्युं. स्वागत जुलुसमां
मोखरे हाथी उपर धर्मध्वज फरकतो हतो. शरूआतमां जुगलकिशोर युगले स्वागत प्रवचन तथा स्वागत काव्य
द्वारा पू. गुरुदेवनुं तथा संघनुं स्वागत कर्युं. शेठ पुनमचंदजी, बाबु ज्ञानचंदजी वगेरे तरफथी संघना
भोजनादिनी सुंदर व्यवस्था हती. बाबु जंबुकुमारजीए खूब प्रेमपूर्वक बधी व्यवस्था संभाळी हती.
कोटा शहेर चम्बलनदी अने एक विशाळ सरोवरना कांठे आवेलुं छे, ने रमणीय उद्यानथी शोभी रह्युं छे.
अहीं १६ जेटला जिनमंदिरो छे, तेमांथी पांच मंदिरो एक ज गलीमां पासे पासे आवेला छे. एक मंदिरमां
आदिनाथप्रभुना बे विशाळ (पांच फूटना) भाववाही जिनबिंबो छे,– आ मंदिरमां बीजे दिवसे समूहपूजन
थयुं हतुं. बीजा मंदिरमां धातुना सप्तर्षि भगवंतो तेमज धातुनी नंदीश्वर रचना छे. एक मंदिरमां
शांतिनाथप्रभुना प्राचीन खड्गासन प्रतिमा लगभग १० फूट ऊंचा छे; बीजा अनेक मंदिरो पुराणी हालतमां
छे. अहीं बपोरे प्रवचन वखते देहनी क्षणभंगुरतानो एक प्रंसग बन्यो....रात्रे मोटा जिनमंदिरमां पार्श्वप्रभु
सन्मुख खूब रंगभरी भक्ति थई हती.
चैत्र वद ८ना रोज श्रद्धांजलिरूपे अनेक प्रवचनो थया हता. जेमां कोटा दि. जैनसमाज तरफथी श्री
गटुलालजीए, तथा अशोकनगर दि. जैनसमाज तरफथी पं. हुकमीचंदजीए श्रंद्धांजलि अर्पण करी हती. बपोरे
बाबु ज्ञानचंदजी अने पं. जुगलकिशोरजीना उपोद्घात बाद, बाबु जंबुकुमारजीए अभिनंदनपत्र वांच्युं हतुं ने
शेठ पुनमचंदजीए अर्पण कर्युं हतुं. रात्रे तत्त्वचर्चा हती. कोटाना जैन समाजे प्रवचनोमां तेमज तत्त्वचर्चामां
उत्साहपूर्वक भाग लीधो हतो. गुना, अशोकनगर, बुंदी वगेरे अनेक गामथी घणा माणसो लाभ लेवा आव्या
हता. रात्रे चर्चा पछी पू. बेनश्रीबेन (चंपाबेन तथा शांताबेन) ने महिला समाज तरफथी अभिनंदनपत्र
आपवामां आव्युं हतुं. अभिनंदन–समारोहमां अनेक बहेनोए भावभीना हृदये घणो भक्तिभाव व्यक्त कर्यो
हतो अने भावना भावतां कह्युं हतुं के–हमारा जीवन भी पू. बहिनश्री–बहिन की तरह आध्यात्मिक उन्नतिमें
लगे रहे–यही हमारी भावना है, उनके ज्ञानविरागकी बात हम कया कहे? और उनकी भक्ति तो अनुपम है–
वैसी भक्ति हमने कहीं नहीं देखी. राज कुमारी न्यायतीर्थे अभिनंदनपत्र वांच्युं हतुं ने शेठाणीजी द्वारा ते पू.
बेनश्रीबेनने अर्पण थयुं हतुं. आ वखते महिलासभामां हजार उपरांत बहेनोनी उपस्थिति हती. अभिनंदन
बाद महिलासभानी खास मांगणीथी पू. बेनश्रीबेने अति गंभीर अने वैराग्यझरती वाणीमां दसेक मिनिट
बोल्या हता....तेओश्रीना सन्देशनो आपणे अहीं पण थोडेक रसास्वाद करीए.
“अनंक काळमें जीवने बहोत कुछ किया, लेकिन आत्माका कल्याण नहीं किया.....आत्मा कौन है, मैं