Atmadharma magazine - Ank 187
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः २४ः आत्मधर्मः १८७
चित्तोड (चैत्र वद दसम)
सवारे ८ाा वागे गुरुदेव चित्तोड पधार्या ने सीधा किल्लो जोवा माटे गया.....यात्रिको पण किल्लो जोवा
माटे गया हता. सात गढ वटाव्या पछी किल्ला उपर पहोंचाय छे....शरूआतमां प्रवेशद्वार पासे ज एक दि.
जिनालयमां मल्लिनाथ प्रभुना दर्शन थाय छे. आ ऐतिहासिक किल्ला उपर १२२ फूट ऊंचो जयस्तंभ छे. तथा
७ मंजिलवाळो ८० फूट ऊंचो जैन कीर्तिस्तंभ (–मानस्तंभ) छे. एक दिगंबर जिनमंदिरनी सन्मुख आ
मानस्तंभ छे, मानस्तंभ घणो सुंदर कळामय छे; चारेबाजु आदिनाथप्रभुना पांच फूट ऊंचा खड्गासन प्रतिमा
मानस्तंभमां ज कोतरेला छे...अंदरना भागमां सीडी छे, तेनाथी ठेठ मानस्तंभ उपर जवाय छे....त्यां चारे
बाजु कळामय कमानोमां पांच पांच जिनबिंबो कोतरेला छे, ने १०–१प माणसो बेसी शके एवी मंडप जेवी
विशाळ जग्या छे. मानस्तंभ उपर संसारथी अलिप्त शांत वातावरणमां बेसीने सिद्धोना गुण वगेरेनुं स्मरण
करतां मुमुक्षु हृदय आह्लादित थाय छे. मानस्तंभनी बाजुना मंदिरनो जिर्णोद्धार थई गयो छे ने तेमां
मल्लिनाथप्रभुनी प्रतिष्ठा थवानी छे. तोपखाना पासेना एक वृक्ष नीचे प्राचीन अवशेषोमां घणा दि.
जिनप्रतिमाओ छे. किल्लाना गढमां पण क्यांय क्यांय जिनप्रतिमा नजरे पडे छे.
राणा प्रतापने खास मदद करनार जैन वीर भामाशाह आ चित्तोडना ज हता. जैनधर्मनो अनेक वैभव
अहीं नजरे पडे छे. राज्यना जयस्तंभनी साथे साथे जैनधर्मनो कीर्तिस्तंभ पण ते राज्यमां जैनधर्मनी
जाहोजलाली अने कीर्तिनी प्रसिद्धि करी रह्या छे. आ उपरांत किल्ला उपर बीजा केटलाक जोवालायक स्थळो छे.
सात सात गढवाळो प्राचीन किल्लो जोती वखते तेना बंधावनारनी हालतनुं स्मरण थतां, जाणे किल्लो पोते ज
करुणस्वरे पोकारी पोकारीने कहेतो होय के आटलो मजबूत किल्लो बंधावनारा ने तेमां रहेनारा पण मृत्युथी
पोतानी रक्षा न करी शकया; जगतमां एक जैनधर्म ज रक्षक छे.–एम किल्ला उपर ऊभेलो जैनधर्मनो स्तंभ
प्रसिद्ध करी रह्यो छे. चित्तोड गाममां एक नानुं जिनालय छे, त्यां दर्शन–पूजन कर्या हता. भोजन अने प्रवचन
बाद चित्तोडथी प्रस्थान करीने यात्रिको उदयपुर पहोंच्या.
उदयपुर(चैत्र वद ११–१२)
सवारमां पू. गुरुदेव उदयपुर पधार्या ने त्रणेक हजार माणसोए उत्साहथी भव्य स्वागत कर्युं...स्वागत
बाद सुसज्जित विशाळ प्रवचन–मंडपमां एक बालिकाए मारवाडी स्वागतगीत गायुं, ने शेठ बंसिलालजी
चौधरीए स्वागतप्रवचन कर्युं. आसपासना गामोथी सेंकडो माणसो गुरुदेवनो लाभ लेवा आव्या हता, अहीं ९
जेटला जिनमंदिरो छे. उदयपुर प्राकृतिक सौंंदर्यवाळुं शहेर छे, त्यां अनेक जोवालायक स्थळो छे. सरोवर वच्चेनो
महेल नौकामां बेसीने जोवा जवाय छे. एक सरोवरनुं नाम ‘स्वरूप सागर’ छे. म्युझीयममां अनेक प्राचीन
जिनबिंबो छे. रात्रे उदासीन आश्रमना जिनालयमां भक्तिनो कार्यक्रम हतो; पू. बेनश्रीबेने भक्ति गवडाव्या
बाद, एक बालिकाए नृत्यभजन सहित जिनेन्द्रदर्शन करीने सिद्धपदनी भावनानुं द्रश्य (चलो मन...अपने
देश...) बताव्युं हतुं. बीजे दिवसे सवारमां जिनमंदिरमां समूहपूजन थयुं हतुं. बपोेरे प्रवचन बाद अभिनंदनपत्र
अपायुं हतुं अने रात्रे मुंबईना प्रतिष्ठामहोत्सवनी फिल्मनुं प्रदर्शन थयुं हतुं. गुरुदेवना अने संघना स्वागत
सन्मानमां उदयपुरना समाजे घणो उल्लास अने वात्सल्य बताव्युं हतुं. बे दिवसनो कार्यक्रम पूरो थतां चैत्र वद
१३नी सवारमां उदयपुरथी प्रस्थान करीने गुरुदेव संघसहित केसरीआजी पधार्या हता.
केसरीआजी (चैत्र वद तेरस)
गुरुदेव पधारतां स्वागत थयुं; वच्चे बे जिनालयोना दर्शन बाद केसरीआजी–मंदिरमां आव्या. गामनुं
नाम धूवेल छे परंतु मुख्य मंदिरमां खूब केसर चढतुं होवाथी आ क्षेत्र ‘केसरीआजी’ तरीके प्रसिद्ध छे. अहीं
एक विशाळ प्राचीन कारीगरीवाळुं मंदिर छे, तेमां आदिनाथप्रभुना प्रतिमा बिराजे छे, श्वेतांबरभाईओ पण
आ प्रतिमाने पूजता होवाथी लगभग आखो दिवस केसर आच्छादित रहे छे. पाछळना भागमां आदिनाथ
प्रभुनी एक बीजी प्रतिमा छे, त्यां समूहपूजन थयुं हतुं. आ उपरांत फरती देरीओमां पण अनेक जिनबिंबो
बिराजे छे. अहीं दर्शन पूजन बाद भोजन करीए संघे ईडर तरफ प्रस्थान कर्युं.