Atmadharma magazine - Ank 187
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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वैशाखः २४८पः २पः
लगभग बपोरे त्रण वागे गुजरातनी धरतीमां प्रवेश कर्यो.....महाराष्ट्र अने कन्नड, तामील अने विदर्भ,
बुंदेलखंड अने मध्यभारत वगेरेनो यात्रा प्रवास करीकरीने त्रण महिना बाद गुजरातनी भूमि, गुजरातनी
हवा, गुजरातनां पाणी ने गुजराती भाषा देखतां, मातृभूमिने भेटवा तलसी रहेला यात्रिकोना हैया हर्षनी
लागणी अनुभवी रह्या. सांजे ईडर पहोंच्या.
ईडर
ईडर प्राचीनकाळमां वैभववंतु शहेर हतुं. ‘ईडरीओ गढ’ कहेवतमां प्रसिद्ध छे. अहीं गाममां त्रण
प्राचीन अने विशाळ जिनमंदिरो छे. गामनी चारे कोर रमणीय–पर्वतो अने वच्चे तळाव छे. एक पहाडी
(गढ) उपर विशाळ दिगंबर जिनमंदिर छे, तेमां मूळनायक आदिनाथप्रभु (केसरीआजी जेवी कारीगरीवाळा)
बिराजे छे; मंदिरमां बीजा पण अनेक भगवंतो छे. आरसना एक विशाळ शिलापट उपर १७० विदेहीतीर्थंकरो
कोतरेला छे. बीजो एक पहाड जे ‘घंटीआ पहाड’ तरीके ओळखाय छे तेना उपर श्रीमद्राजचंद्रजीए जेने
‘सिद्धिशिला’ तरीके ओळखावेल ते स्थान छे; आ पर्वत उपर श्रीमद्राजचंद्रजी ध्यानादि करता अने अहीं
तेमणे विशिष्ट प्रमोद व्यक्त करेलो. आ उपरांत अहीं स्टेशन पासे टेकरा उपर दिगंबर मुनिओ वगेरेनी
स्मृतिमां बंधायेली जुनी छतरीओ छे. ईडरमां चैत्र वद १३ना रोज रात्रे शांतिनाथ–जिनालयमां तत्त्वचर्चा
हती. बीजे दिवसे सवारमां पर्वत उपरना दि. जिनमंदिरमां दर्शन–पूजन तथा भक्ति कर्या......पर्वत उपर चडतां
चडतां पू. बेनश्रीबेन प्रमोदपूर्वक भक्ति करावता हता. पूजा–भक्ति बाद पर्वत उपर संघे भातुं खाधुं....
श्रीमद्राजचंद्रजी अहीं विचरेला...तेनुं स्मरण करतां करतां भक्तो नीचे उतर्या. यात्रा बाद गामना एक मंदिरनी
स्वाध्याय शाळामां श्रीमद्राजचंद्रजीवाळुं ‘द्रव्यसंग्रह’ जोयुं बपोरना प्रवचन बाद सौ ‘घंटीया पहाड’ उपर
गया हता. आ पर्वतनी आसपासमां वाघ रहे छे. पर्वत उपर जतां वच्चे आंबानुं झाड वगेरे आवे छे. पर्वत
उपर जईने श्रीमद्राजचंद्रजीना स्थानोनुं पू. गुरुदेवे अने भक्तोए भावपूर्वक अवलोकन कर्युं. अहीं शेठ
भोगीभाईए गुरुदेव प्रत्ये घणो भक्तिभाव बताव्यो हतो. अने यात्रिकोने पर्वत उपर जमाडया हता.
भोजनादि बाद यात्रिको नीचे ऊतरी गया हता..... पू. गुरुदेव अने केटलाक भक्तो राते उपर रह्या हता...त्यां
खुल्ला चोकमां स्फ्टिकना महावीरप्रभुजी सन्मुख भक्ति थई हती. ते वखते महावीरप्रभुनुं स्तवन अने
सम्यग्द्रष्टि महिमा संबंधी स्तवन गवडाव्या बाद पू. बेनश्रीबेने नीचेनुं काव्य जाणे के चैतन्यनो आनंदरस
झरतो होय एवा उत्तम भावे गवडाव्युं हतुं’
धन्य रे दिवस आ अहो....
जागी रे शांति अपूर्व
दस वरसे रे धारा उल्लसी
मिटयो उदय–कर्मनो गर्व रे. धन्य रे.....
ओगणीससें ने एकतालीसे
आव्यो अपूर्व अनुसार....
ओगणीससें ने बेंतालीसे
अद्भूत वैराग्य धार रे.....धन्य रे......
ओगणीससे ने सुडतालीसे
समकित
शुद्ध प्रकाश्युं......
श्रुत अनुभव वधती दशा
निज स्वरूप अवभास्युं रे......धन्य रे....
धन्य दिवस’ नुं ए अपूर्व भाववाही काव्य पू. बेनश्रीबेनना श्रीमुखथी सांभळवानो धन्य दिवस प्राप्त
थतां भक्तोने घणो आनंद थयो हतो ने आ अवसरथी तेओ पोताने पण धन्य मानता हता. अहीं पर्वत
वगेरेना अवलोकन वखते गुरुदेव श्रीमद्राजचंद्रजीना अंतरंग ऊंडा भावोनी समजण आपता हता, तेथी
भक्तोने विशेष आनंद थतो हतो. चैत्र वद अमासनी सवारमां स्टेशन पासेनी छतरीओनुं अवलोकन करीने
संघे ईडरथी सोनासण तरफ प्रस्थान कर्युं. ईडरमां संघना भोजनादिनी व्यवस्था अमदावादना भाईओ तरफथी
करवामां आवी हती.
सोनासण
चैत्र वद अमासे पू. गुरुदेव पधारतां सोनासणना समाजे तेमज आसपासना अनेक गामोना गुजराती
भाईओए गुरुदेवनुं भावपूर्वक स्वागत कर्युं...बपोरे प्रवचन बाद अभिनंदनपत्र समर्पण अने रात्रे जिन–