शरूआत थई त्यारे मंगलाचरणमां श्री कुंदकुंदप्रभुनुं स्मरण
करतां गुरुदेवे भावपूर्वक कह्युं केः जात्रामां मद्रासथी ८०
माईल दूर ‘पोन्नुर हील’ गया हता, ते कुंदकुंदाचार्यदेवनी
भूमि छे; कुंदकुंदाचार्यदेव त्यां रहीने ध्यान करता हता...ने
त्यांथी तेओ विदेहक्षेत्रे सीमंधर परमात्मा पासे गया
हता...पाछा त्यां आवीने तेमणे आ समयसारादि शास्त्रोनी
रचना करी छे.
कुंदकुंदाचार्यदेवना प्राचीन चरणकमळ छे...जुओ, आजे
मांगळिकमां कुंदकुंदाचार्यदेवनी तपोभूमि पोन्नुर तीर्थनुं स्मरण
थाय छे. तेओ विदेह तो गया ज हता, परंतु पोन्नुरथी तेओ गया
हता–ए वात आ जात्रामां नवी जाणवा आवी.
सर्व अंगोपांगमां पुण्य अने पवित्रता बंने देखाई आवे
छे...आंखो एवी ढळती छे...जाणे के पवित्रतानो पिंडलो
थईने अक्रिय ज्ञानानंदनुं ध्यान करी रह्या छे.–एवा भावो
तेमनी मुद्रा उपर तरवरी रह्या छे....एने जोतां तृप्ति थती
नथी....अत्यारे आ दुनियामां एनो जोटो नथी.