Atmadharma magazine - Ank 187
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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जात्रानां मीठां संभारणां
(पोन्नुर–तीर्थधामस्थित श्री कुंदकुंदप्रभुना
चरणकमळना पूजन–भक्ति थई रह्या छे तेनां द्रश्यो)
अनेक तीर्थधामोनी महामंगल यात्रा करीने वैशाख सुद
तेरसे सोनगढ पधार्या बाद प्रवचनमां श्री समयसारनी
शरूआत थई त्यारे मंगलाचरणमां श्री कुंदकुंदप्रभुनुं स्मरण
करतां गुरुदेवे भावपूर्वक कह्युं केः जात्रामां मद्रासथी ८०
माईल दूर ‘पोन्नुर हील’ गया हता, ते कुंदकुंदाचार्यदेवनी
भूमि छे; कुंदकुंदाचार्यदेव त्यां रहीने ध्यान करता हता...ने
त्यांथी तेओ विदेहक्षेत्रे सीमंधर परमात्मा पासे गया
हता...पाछा त्यां आवीने तेमणे आ समयसारादि शास्त्रोनी
रचना करी छे.
पोन्नुर पर्वत बहु रमणीय छे...एकांत शांत धाम छे...त्यां
ध्यान धरवानी बे गूफाओ छे...चंपाना झाड नीचे
कुंदकुंदाचार्यदेवना प्राचीन चरणकमळ छे...जुओ, आजे
मांगळिकमां कुंदकुंदाचार्यदेवनी तपोभूमि पोन्नुर तीर्थनुं स्मरण
थाय छे. तेओ विदेह तो गया ज हता, परंतु पोन्नुरथी तेओ गया
हता–ए वात आ जात्रामां नवी जाणवा आवी.
जात्रामां घणा घणा तीर्थो जोया.....तेमांय आ
बाहुबलीनी मुद्रा तो जाणे वर्तमान जीवंतमूर्ति होय! एना
सर्व अंगोपांगमां पुण्य अने पवित्रता बंने देखाई आवे
छे...आंखो एवी ढळती छे...जाणे के पवित्रतानो पिंडलो
थईने अक्रिय ज्ञानानंदनुं ध्यान करी रह्या छे.–एवा भावो
तेमनी मुद्रा उपर तरवरी रह्या छे....एने जोतां तृप्ति थती
नथी....अत्यारे आ दुनियामां एनो जोटो नथी.