भाई! तारा आत्मानो स्वभाव कोई समये अधूरो नथी, वर्तमान पण परिपूर्ण स्वभाव छे माटे तेनो ज
महिमा लावीने तेमां अंतर्मुख था, तेना उपर जोर आप,–एटले के तेनी प्रधानता कर, तेने ज मुख्य कर, तेनुं ज
आराधना कर, तेनुं ज ध्यान कर, तारो आ स्वभाव सर्वशक्तिमान प्रभु छे, तेने कोई दबावनार नथी, तेमां
कोई नडतर नथी, तेने काळ के कर्मो आवरी शकता नथी, अनादिअनंत ज्यारे जो त्यारे वर्तमानमां ज ते पूरो
पकड ते समय तारो पोतानो छे, ते स्वसमय छे. आत्मामां हरेक समये परिपूर्णता पडी छे; पूरुं कार्य प्रगटाववा
माटे आत्मामां वर्तमान पूरुं कारण नथी–एवुं कोई क्षणे बनतुं नथी. ‘पूरुंकारण’ दरेक समये विद्यमान छे, ते
कारणना स्वीकारथी कार्य प्रगटी जाय छे.
पछी प्रगटे छे. अने कारणस्वभाव ते धु्रवरूप परिणाम छे, ते सदाय विद्यमान छे, तेनामां उत्पाद–व्यय नथी.
केवळज्ञानना कारणरूप जे धु्रवज्ञानपरिणाम छे तेने सहजस्वभावज्ञान अथवा स्वरूप–प्रत्यक्षज्ञान कहे छे.
थतां ते वर्तमान पर्याय पण पूरा सामर्थ्यरूपे परिणमी जाय छे.
* ध्रुवना आश्रये ज उत्पाद थाय छे,
* द्रव्यमांथी पर्याय आवे छे,
* कारणना आश्रये कार्य थाय छे,
* शक्तिमांथी व्यक्ति थाय छे,
* ‘प्राप्त’ नी प्राप्ति थाय छे,
* निश्चयना आश्रये मुक्ति थाय छे,
* ज्ञायकस्वभावी आत्मा विकारनो अकर्ता छे,
* आत्मानी शक्तिओ बाह्य कारणोथी अत्यंत निरपेक्ष छे,
* आत्मा अने पर दरेक द्रव्यनुं परिणमन स्वतंत्र छे,
–आमांथी कोई पण बोलनो निर्णय करतां बधाय बोलनो निर्णय थई जाय छे; ने आ जैनशासननी
समजाय नहीं.
कारणसमयसार कहे छे, ते ज कारणपरमात्मा छे, ने ते त्रिकाळ एकरूप छे, तेना आश्रये अनंतचतुष्टयरूप कार्य
समयसारपणुं प्रगटे छे. अने ‘समयसार’ वगेरेमां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूपे परिणमेला आत्माने
आत्मा परिणम्यो तेथी तेने ‘कारणसमयसार’ कह्यो. खरेखर जे धु्रवरूप कारणसमयसार छे ते ज मोक्षनुं
निश्चयकारण छे, अने जे आ मोक्षमार्गरूप कारणसमयसार छे ते मोक्षनुं कारणव्यवहारे छे. मोक्षमार्ग तरीके तो
ते निश्चय छे, परंतु मोक्षना कारण तरीके ते व्यवहार छे.
ए नियम छे, पण ते मोक्ष कोना