पण साध्यपर्याय पोते स्वभावनो आश्रय करीने स्वतः परिणमे छे.
साधक कह्या छे, पण केवळज्ञान कांई मतिश्रुतज्ञानने आधीन नथी. मति–श्रुतज्ञान वगेरे साधक भावपण
बळजोरथी केवळज्ञानादि साध्यभावने नथी परिणमावता, तो पछी व्यवहार–राग के निमित्त वगेरेनी तो शी
वात! अहीं तो एकदम अंतर्मुखनी वात करे छे के अरे जीव! तारा केवळज्ञानना कारणने तारा स्वभावमां ज
शोध.....तारो कारणस्वभाव ज केवळज्ञाननुं कारण छे. ज्यां अंतर्मुख थईने आवा कारणमां लीन थयो त्यां
‘आ मारुं कारण ने आ कार्य एवा कारण–कार्यना भेदना विकल्पो पण नथी, त्यां तो कारण–कार्यनी एकतारूप
आनंदनुं ज वेदन छे.
(३–६)
श्रुतज्ञान
अवधिज्ञान
कुश्रुतज्ञान
(नियमसारनी आ ११–१२ गाथामां नीचे मुजब छ विषयो छे–
(१) ज्ञान उपयोगना ९ प्रकारनुं वर्णन (२ स्वभावज्ञान, ४ सम्यग्ज्ञान अने ३ मिथ्याज्ञान)
(२) कयुं ज्ञान कया जीवोने होय छे? तेनुं वर्णन.
(३) कया ज्ञानो ‘प्रत्यक्ष’ छे ने कया ज्ञानो‘परोक्ष’ छे? तेनुं वर्णन.
(४) कयुं ज्ञान उपादेय (अर्थात् मोक्षनुं मूळ) छे तेनुं वर्णन
(प) आत्माने केवो भाववो तेनुं वर्णन
(६) ‘आ ब्रह्मोपदेश छे’ एम कहीने आ विषयनो महिमा.
उपर्युक्त छ विषयोमांथी पहेलो विषय अहीं पूरो थयो. बीजा विषयो हवे पछी.