Atmadharma magazine - Ank 188
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः १४ः आत्मधर्मः १८८
आश्रये थाय छे? ते अहीं बताववुं छे. पूर्वनो साधकभाव कांई साध्यने पराणे–बरजोरीथी नथी परिणमावतो,
पण साध्यपर्याय पोते स्वभावनो आश्रय करीने स्वतः परिणमे छे.
प्रश्नः– जो साधकभाव छे ते साध्यभावने नथी परिणमावतो तो पछी ते पूर्वभावने ‘साधक’ केम
कह्यो?
उत्तरः– केमके पूर्वे एवा साधकभावपूर्वक ज साध्यभाव प्रगटे छे, तेथी पूर्वभावने साधक कह्यो छे. जेमके
सम्यक् मतिश्रुतज्ञानपूर्वक ज केवळज्ञान थाय छे, एवो पूर्व–उत्तरभाव बताववा माटे मति–श्रुतने केवळज्ञानना
साधक कह्या छे, पण केवळज्ञान कांई मतिश्रुतज्ञानने आधीन नथी. मति–श्रुतज्ञान वगेरे साधक भावपण
बळजोरथी केवळज्ञानादि साध्यभावने नथी परिणमावता, तो पछी व्यवहार–राग के निमित्त वगेरेनी तो शी
वात! अहीं तो एकदम अंतर्मुखनी वात करे छे के अरे जीव! तारा केवळज्ञानना कारणने तारा स्वभावमां ज
शोध.....तारो कारणस्वभाव ज केवळज्ञाननुं कारण छे. ज्यां अंतर्मुख थईने आवा कारणमां लीन थयो त्यां
‘आ मारुं कारण ने आ कार्य एवा कारण–कार्यना भेदना विकल्पो पण नथी, त्यां तो कारण–कार्यनी एकतारूप
आनंदनुं ज वेदन छे.
आत्मा ज्ञानस्वभावी छे. तेनुं ज्ञान ‘स्वभाव’ अने ‘विभाव’ एम बे प्रकारनुं छे; ने तेना कुल नव
प्रकार थाय छे, ते आ प्रमाणे–
(१–२)कारणस्वभावज्ञानआ बे प्रकार स्वभावज्ञानना छे.
कार्यस्वभावज्ञान
विभावज्ञान ‘सम्यक’ अने मिथ्या एम बे जातनुं छे.
(३–६)
मतिज्ञान
श्रुतज्ञान
अवधिज्ञान
आ चार प्रकार सम्यग्ज्ञानना छे.
मनःपर्ययज्ञान
(७–९)कुमतिज्ञान
कुश्रुतज्ञान
आ त्रण प्रकार मिथ्याज्ञानना छे,
विभंगज्ञान
आ प्रमाणे ज्ञानना कुल नव प्रकार छे. आमांथी कयुं ज्ञान कया जीवोने होय छे ते हवे कहेशे.
(नियमसारनी आ ११–१२ गाथामां नीचे मुजब छ विषयो छे–
(१) ज्ञान उपयोगना ९ प्रकारनुं वर्णन (२ स्वभावज्ञान, ४ सम्यग्ज्ञान अने ३ मिथ्याज्ञान)
(२) कयुं ज्ञान कया जीवोने होय छे? तेनुं वर्णन.
(३) कया ज्ञानो ‘प्रत्यक्ष’ छे ने कया ज्ञानो‘परोक्ष’ छे? तेनुं वर्णन.
(४) कयुं ज्ञान उपादेय (अर्थात् मोक्षनुं मूळ) छे तेनुं वर्णन
(प) आत्माने केवो भाववो तेनुं वर्णन
(६) ‘आ ब्रह्मोपदेश छे’ एम कहीने आ विषयनो महिमा.
उपर्युक्त छ विषयोमांथी पहेलो विषय अहीं पूरो थयो. बीजा विषयो हवे पछी.
(चालु)