ः ४ः आत्मधर्मः १८८
छ महिनामां जरूर
आत्मप्राप्ति थशे
नागपुरमां पू. गुरुदेवनुं मंगळ प्रवचन
(फागण वद १४–१प)
भगवान सीमंधरपरमात्मा सर्वज्ञ–तीर्थंकरपणे अत्यारे विदेहक्षेत्रे पूर्वदिशामां बिराजे छे. आ
भरतक्षेत्रमां २००० वर्ष पहेलां कुंदकुंदाचार्यदेव थया, तेमणे तीर्थंकरना विहरथी सीमंधरपरमात्मानुं ध्यान
कर्युं....ने सदेहे विदेह जईने सीमंधरपरमात्माना साक्षात् दर्शन कर्या अने तेमनी दिव्यध्वनिनुं ८ दिवस श्रवण
कर्युं. तेनो साक्षी कोण? तेनो साक्षी आत्मा ज छे....भगवाननी वाणी सांभळीने पछी भरतक्षेत्रे पधारीने
आचार्यदेवे आ समयसार वगेरे महान शास्त्रो रच्या, तेमां आत्माना अनुभवनुं अलौकिक वर्णन कर्युं छे
आचार्यदेवे विदेहक्षेत्रे जईने समयसारनी जगतने भेट आपी......
आ समयसार आत्मानुं शुद्ध स्वरूप बतावे छे. केवुं छे आत्मानुं स्वरूप?–
चेतनरूप अनुप अमूरत सिद्धसमान सदा पद मेरो”
जेवा सिद्धभगवान, देहरहित, विकाररहित, परिपूर्ण ज्ञान–आनंदस्वरूप छे, एवो ज मारा आत्मानो
स्वभाव छे, एम सम्यग्द्रष्टि–धर्मात्मा पोताना आत्माने अनुभवे छे. हजी वर्तमान अवस्थामां राग छे पण ते
राग जेटलो ज आत्मा नथी; रागथी पार ज्ञानानंदस्वरूपने सम्यग्द्रष्टि धर्मात्मा अनुभवे छे.–कई रीते?
भूतार्थद्रष्टिथी अथवा शुद्धनयना अवलंबनथी; रागदिभावो क्षणिक अवस्थामां विद्यमान छे, पण आत्माना
असली स्वभावनी द्रष्टिथी जोतां तेमां ते रागादिभावोनो अभाव छे तेथी तेओ अभूतार्थ छे, ने आत्मानो
सहजचैतन्य स्वभाव ज भूतार्थ छे. आवा स्वभावपणे आत्माने अनुभववो ते अपूर्वधर्म छे.
आत्माना आव शुद्धस्वभावनी वात जीवे रुचिपूर्वक कदी सांभळी पण नथी. भगवान पासे के ज्ञानी
पासे अनंतवार गयो ने शुद्ध आत्मानी वात काने पडी, परंतु ते वखते रागनी रुचि राखीने सांभळ्युं छे, तेथी
खरेखर तेणे रागकथानुं ज श्रवण कर्युं छे, शुद्धात्मानी कथा तेणे सांभळी नथी. सांभळ्युं तेने कहेवाय के जेवो
शुद्ध आत्मा भगवाने कह्यो तेवो लक्षमां लईने तेनी रुचि करे.
आचार्यभगवान कहे छे केः अरे जीव! अमे जेवो शुद्ध आत्मा कहीए छीए तेवो लक्षमां लईने तेनो
अनुभव कर, तो तारो आत्मा अशरीरी परमात्मा थई जशे.
आ समयसारनी ४१प गाथा छे, तेमांथी ७२मी गाथा अहीं वंचाय छे. भेदज्ञाननो जिज्ञासु शिष्य पूछे
छे के प्रभो! भेदज्ञानथी ज बंधनो निरोध थई जाय छे–ए कई रीते? आवा शिष्यने उत्तर आपतां आचार्यदेव
कहे छे के सांभळ!
अशुचीपणुं विपरीतता ए आस्रवोनां जाणीने,
वळी जाणीने दुःख कारणो एथी निवर्तन जीव करे.
जुओ, आ चैतन्यनो अपूर्व शांतरस बतावनारी वीतरागनी वाणी!
वचनामृत वीतरागनां.....परम शांतरसमूळ.
वीतरागी संतोनी वाणी चैतन्यना परमशांतरसनुं पान करावीने अनादिना भवरोगनो नाश करावे छे.
वीतरागनी