आत्मबोधनी ज लगनी लागी छे, भेदज्ञान करीने शुद्ध आत्मानो अनुभव करवा मांगे छे, ए सिवाय
संसार संबंधी बीजी कोई भावनानुं शल्य जेना अंतरमां नथी, एवो शिष्य आचार्य– भगवान पासे
जईने तेनी ज वात पूछे छे अने आचार्यभगवान तेनी पात्रता जोईने करुणापूर्वक तेने भेदज्ञाननुं
स्वरूप समजावे छे.
चैतन्यस्वभाव शांतअनाकुळ छे, माटे राग हुं नथी, रागने जाणनारुं जे ज्ञान ते हुं छुं, राग साथे मारी एकता
नथी पण ज्ञान साथे ज मारी एकता छे–आम भेदज्ञान करीने अंतर्मुख थईने ज्ञानस्वभाव तरफ ढळे छे ते क्षणे
ज रागथी भिन्न पोताना शुद्धआत्मानो अनुभव थाय छे, ने रागादि परभावो जुदा पडी जाय छे. आवुं
भेदज्ञान ते ज बंधनथी छूटवानो उपाय छे. आव उपाय सिवाय बीजी कोई रीते बंधनथी छूटकारो नथी, माटे
प्रथम आवा भेदज्ञाननो अभ्यास करवो जोईए.
पवित्र छे अने रागादि विकारी भावो मलिन छे, चैतन्य मूर्ति आत्मा ते रागादिथी जुदो छे. आ प्रमाणे
भेदज्ञान करीने, शुद्धचिदानंदस्वरूप आत्मा तरफ ढळतां ज रागादि परभावो जुदा रही जाय छे. शुद्ध आत्मा
पोताना स्वानुभवथी प्रकाशमान छे. अंतरना अनुभववडे शुद्ध आत्मानी प्राप्तिथी ज कर्मोनो संवर अने
निर्जरा थाय छे, ते शुद्धात्मानो अनुभव भेदज्ञानथी ज थाय छे; माटे–
तस्यैवाभावतो बद्धाः बद्धाः ये किल केचन।।
उपाय छे.
तो अंतर्मुहूर्तमां ज तेनी प्राप्ति थई जशे. कोई जीवने कदाच बहु कठण लागे तोपण वधारेमां वधारे छ महिना
लागशे. आत्मानी खरेखरी तालावेलीपूर्वक अमे कहीए छीए ते प्रमाणे जे जीव निरंतर अभ्यास करशे तेने छ
महिनामां जरूर शुद्धात्मानी प्राप्ति थशे.