Atmadharma magazine - Ank 188
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 6 of 21

background image
जेठः २४८पः पः
वाणी तो विषय–कषायनो रस छोडावीने चैतन्यना शांतरसनो अनुभव करावे छे.
धर्मात्मा–ज्ञानी–संतो पासे जईने शुद्ध आत्माना अनुभव सिवाय लक्ष्मी–पुत्र वगेरेनी आशा जे
जीव करे छे ते जीव, कंदोईनी दुकाने जईने झेरनी मागणी करनारा जेवो छे. अहीं तो जेने एक
आत्मबोधनी ज लगनी लागी छे, भेदज्ञान करीने शुद्ध आत्मानो अनुभव करवा मांगे छे, ए सिवाय
संसार संबंधी बीजी कोई भावनानुं शल्य जेना अंतरमां नथी, एवो शिष्य आचार्य– भगवान पासे
जईने तेनी ज वात पूछे छे अने आचार्यभगवान तेनी पात्रता जोईने करुणापूर्वक तेने भेदज्ञाननुं
स्वरूप समजावे छे.
आत्मा तो चैतन्यस्वरूप स्व–परनो जाणनार छे, ने रागादि भावो अचेतन छे, तेओ स्वपरने जाणता
नथी. राग पोते पोताने जाणतो नथी, रागने जाणनारो रागथी जुदो छे. राग तो आकुळतारूप छे, ने
चैतन्यस्वभाव शांतअनाकुळ छे, माटे राग हुं नथी, रागने जाणनारुं जे ज्ञान ते हुं छुं, राग साथे मारी एकता
नथी पण ज्ञान साथे ज मारी एकता छे–आम भेदज्ञान करीने अंतर्मुख थईने ज्ञानस्वभाव तरफ ढळे छे ते क्षणे
ज रागथी भिन्न पोताना शुद्धआत्मानो अनुभव थाय छे, ने रागादि परभावो जुदा पडी जाय छे. आवुं
भेदज्ञान ते ज बंधनथी छूटवानो उपाय छे. आव उपाय सिवाय बीजी कोई रीते बंधनथी छूटकारो नथी, माटे
प्रथम आवा भेदज्ञाननो अभ्यास करवो जोईए.
*
भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवे साक्षात् तीर्थंकरभगवान सीमंधर परमात्मानी वाणी सांभळी हती अने
आत्माना आनंदना साधनमां लाग्या हता, तेओ आ समयसारमां कहे छे के भगवान चैतन्यमूर्ति आत्मा
पवित्र छे अने रागादि विकारी भावो मलिन छे, चैतन्य मूर्ति आत्मा ते रागादिथी जुदो छे. आ प्रमाणे
भेदज्ञान करीने, शुद्धचिदानंदस्वरूप आत्मा तरफ ढळतां ज रागादि परभावो जुदा रही जाय छे. शुद्ध आत्मा
पोताना स्वानुभवथी प्रकाशमान छे. अंतरना अनुभववडे शुद्ध आत्मानी प्राप्तिथी ज कर्मोनो संवर अने
निर्जरा थाय छे, ते शुद्धात्मानो अनुभव भेदज्ञानथी ज थाय छे; माटे–
भावयेत् भेदविज्ञानम् इदं अच्छिन्नधारया।
तावत् यावत् परात्च्युत्वा ज्ञानं ज्ञाने प्रतिष्ठितम्।।
आ भेदज्ञान त्यां सुधी अच्छिन्नधाराथी भाववुं माटे के ज्यां सुधी ज्ञान ज्ञानमां ज स्थिर थाय.
आ भेदज्ञान एक ज सिद्धिनो उपाय छे, ते बतावतां आचार्यदेव कहे छे के–
भेदविज्ञानतः सिद्धाः सिद्धा ये किल केचन।
तस्यैवाभावतो बद्धाः बद्धाः ये किल केचन।।
अत्यार सुधीमां जे कोई अनंता जीवो सिद्धि पाम्या छे ते बधाय जीवो भेदज्ञानथी ज सिद्धि पाम्या छे;
अने जे कोई जीवो बंधाया छे तेओ ते भेदज्ञानना अभावने लीधे ज बंधाया छे. आ रीते भेदज्ञान ज सिद्धिनो
उपाय छे.
कोई पूछे के आवुं भेदज्ञान क्यारे थाय?–तेने केटलो वखत लागे? तो आचार्यदेव उत्तर आपे छे के हे
भाई! जगतनो कोलाहल छोडीने, ने आत्मानो अर्थी थईने जो तुं अंतरमां शुद्धात्माना अनुभवनो प्रयत्न कर
तो अंतर्मुहूर्तमां ज तेनी प्राप्ति थई जशे. कोई जीवने कदाच बहु कठण लागे तोपण वधारेमां वधारे छ महिना
लागशे. आत्मानी खरेखरी तालावेलीपूर्वक अमे कहीए छीए ते प्रमाणे जे जीव निरंतर अभ्यास करशे तेने छ
महिनामां जरूर शुद्धात्मानी प्राप्ति थशे.