Atmadharma magazine - Ank 188
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः ६ः आत्मधर्मः १८८
‘कारणशुद्धपर्याय’ नी लेखमाळा
‘कारणशुद्धपर्याय’ ए नियमसारनो खास महत्वनो विषय छे.
नियमसारना आ विषय उपर पू. गुरुदेवना प्रवचनोनी लेखमाळा
लगभग चार वर्ष पहेलां ‘आत्मधर्म’ मां शरू थई छे अंक १४६ मां तेनो
पांचमो लेख प्रसिद्ध थया बाद ते लेखमाळा मुलतवी रहेल. हवे ते
लेखमाळा आगळ शरू करता पहेलां अहीं तेना पूर्व–प्रकाशीत लेखोनुं
संक्षिप्त अवलोकन करी लईएः
अंक १३९ मां आ लेखमाळानी उत्थानिकारूपे समुद्रना द्रष्टांते
छे.
अंक १४० मां आ लेखमाळानो पहेलो लेख प्रसिद्ध थयो छे, तेमां
नियमसार गा. ३ उपरना प्रवचनो द्वारा ‘कारणनियम अने कार्यनियम’
नुं विस्तृत स्पष्टीकरण कर्युं छे. तेमां कह्युं छे के शुद्धरत्नत्रयरूपी जे तारुं
कर्तव्य, तेनुं कारण तारा स्वभावमां ज वर्ते छे. अंतरमां ज्यारे जो त्यारे
मोक्षमार्गनुं कारण तारामां वर्ती ज रह्युं छे. आ ‘कारण’ ने ओळखीने
तेनी साथे एकता करतां मोक्षमार्गरूपी कार्य थई जाय छे. अंतरमां कारण–
कार्यनी एकता साधतां साधतां...मुनिवरोए अनुभवमां कलम
बोळीबोळीने आ भावो काढया छे......
अंक १४१ मां बीजो लेख प्रसिद्ध थयो छे तेमां पं.
बनारसीदासजीनी ‘परमार्थवचनिका’ मांथी आगम–अध्यात्मना स्वरूप
उपरनुं विवेचन छे. तेमां कह्युं छे के–आत्मामां अध्यात्मरूप
शुद्धचेतनापद्धति त्रिकाळ छे. भाई! तारा आत्मामां विकार अने शुद्धचेतना
ए बंनेनी धारा अनादिपरंपराथी चाली आवे छे. एमांथी ज्यां शुद्धतानी
धाराने कारणपणे स्वीकारी त्यां मोक्षमार्गरूप निर्मळकार्यनी धारा शरू थाय
छे, अने विकारनी धारा तूटी जाय छे. अहो! आ वात जेना आत्मामां
बेठी ते जीव मोक्षमार्गमां आव्यो........
अंक १४२ मां प्रसिद्ध थयेल त्रीजा लेखांकमां नियमसारना
टीकाकारनी शैलिनुं अवलोकन कर्युं छे, अने ‘कारणशुद्धपर्याय’ नो ध्वनि
कई रीते नीकळे छे ते बताव्युं छे.
अंक १४२ पछी प्रथम भादरवाना खास अंकमां, तेमज अंक १४६
मां प्रसिद्ध थयेल १०मी गाथाना प्रवचनोमां ‘कारणस्वभावज्ञान
उपयोग’ नुं वर्णन कर्युं छे; तेमां कह्युं छे के ‘कारण’ तो सदाय शुद्धपणे वर्ते
छे, पण ते कारणनुं अवलंबन लईने ज्यां शुद्ध कार्य थयुं त्यां खबर पडी के
अहो, मारुं कारण तो आ छे! कारणनुं अवलंबन लेनार जाग्यो त्यारे–
एटले के कार्य थयुं त्यारे कारणना महिमानी खबर पडी अने तेने कारण
साथे कार्यनी अपूर्व संधि थई.
आ लेखमाळाना उपरोक्त पांच लाखो पछी हवे छठ्ठो लेख सामे
पानेथी शरू थाय छे.