Atmadharma magazine - Ank 189
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959).

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श्री वीतरागाय नमः।।
अध्यात्मयोगी श्री कानजीस्वामीजी के
करकमलों में सादर समर्पित
अभिनंदन पत्र
समयसार–प्रवक्ता!
भारत में प्राचीन धर्म जो जैनधर्म है वह एक समय तामिल प्रान्त में
बहुत ही विशाल रूप से प्रचलित था। इस प्रान्त में कुन्दकुन्द, समन्तभद्र,
भवनंदी आदि कई जैन आचार्योने जन्म लिया। ऐसे पवित्र स्थान में आपके
पधारने से हम लोग कृतकृत्य हुवे हैं।
सद्धर्मप्रचारक!
श्री कुन्दकुन्दाचार्य के समयसार ग्रन्थ के अध्ययन से आपने सत्यधर्म
को पहचाना। अलावा इसके हजारों नरनारियों को आप सन्मार्ग पर लाये
है। आपके इस महान कार्यो से हम लोग आपको कोटिशः धन्यवाद देते हैं।
एलाचार्य के सिद्धान्तभास्कर!
कुन्दकुन्दाचार्य [एलाचार्य] के तपोभूमि एवं स्वर्गभूमि यह जो
स्वर्णगिरि [पोन्नुर मलै] है यहां पर हम लोग आज एकत्र होकर आपका
स्वागत करने का जो सौभाग्य हम लोगों को मिल है उसे हम लोग कभी
भी नहीं भूलेंगे।
शांतमूर्तिन्।
श्री कुन्दकुन्दाचार्य के रचित तिरुक्कुरल नामका जो
तमिल नीतिग्रन्थ है उसका आप अध्ययन कर शिष्यों को बोध
कराने की कृपा करें। इस स्थान सें आपका संघ पधारने की
यादगार में इस पर्वत की सीढी का जीर्णोद्धार एवं पर्वत की
तलहटी में एक बृहत गुरुकुल की स्थापना कर सद्धर्म एवं
सन्मार्गप्रदर्शन करने की कृपा करेंगे तो बहुत ही अच्छा होगा।
पोन्नूरमल्लै आपने आगमन से प्रफुल्लित
१४–३–१९५९ पोन्नूर दि. जैन समाज