Atmadharma magazine - Ank 189
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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अशाडः २४८पः ९ः
(श्री कषायप्राभृत–जयधवलाना आ विषय उपर पू. गुरुदेवनुं अद्भुत प्रवचन थयेल, ते “
आत्मधर्म” ना बीजा वर्षमां” श्रुतपंचमीना वधाराना अंक” तरीके प्रसिद्ध थयेल छे. जिज्ञासुओए ते
वांचवा लायक छे.)
मति–श्रुतज्ञानने परोक्ष कह्यां छतां ते ज्ञान पण कांई ईंद्रियोथी थता नथी, ते ज्ञान पण पोताथी ज थाय
छे. जुओ, व्यंजनअवग्रह ते मतिज्ञाननो नानामां नानो प्रकार छे, ते पण पोताथी ज थाय छे. ईंद्रियोथी के
शब्दोथी ज्ञान थाय ए वात तो क्यांय गई! ते तो स्थूळभूल छे. अहीं तो एकदम अंतरना ऊंडाणनी वात
छे....ज्ञाननुं मूळकारण शुं छे ते अहीं बताव्युं छे.......केवळज्ञाननुं मूळीयुं बताव्युं छे. अहो! परिपूर्ण सामर्थ्यरूपे
सदाय वर्ततुं स्वरूप–प्रत्यक्षज्ञान ज मारा केवळज्ञाननुं कारण छे–एम जे जाणे ते ईंद्रिय वगेरेने पोताना ज्ञाननुं
कारण माने नहि; एटले तेने परोक्षपणुं टळीने, स्वरूप–प्रत्यक्षज्ञानना आधारे सकल–प्रत्यक्ष एवुं केवळज्ञान
प्रगटी जाय.
आ रीते ज्ञानना प्रत्यक्ष अने परोक्षपणानुं वर्णन कर्युं. हवे आ ज्ञानोमांथी कयुं ज्ञान आदरणीय छे ते
कहेशे.
(आ गाथाओना जे छ विषयो कह्या हता तेमांथी त्रीजो विषय अहीं पूरो थयो.)
*अज्ञानीने धर्म थतो नथी, केमके *
अज्ञानीने शुभराग तो होय छे, पण तेने
धर्म होतो नथी. केमके शुभराग ते धर्म नथी.
जो शुभराग ते धर्म होय के धर्मनुं साधन होय
तो, शुभरागवाळा अज्ञानीने केम धर्म न थाय?
अने तेने केम मोक्षमार्ग न थाय? माटे स्पष्ट छे
के अशुभरागनी जेम शुभराग पण धर्म नथी के
धर्मनुं साधन पण नथी. परंतु ते रागथी विलक्षण
एवा सम्यक् श्रद्धा, ज्ञान ने चारित्र ते ज धर्म
छे ने ते ज मोक्षमार्ग छे.
–प्रवचनमांथी