Atmadharma magazine - Ank 189
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः १२ः आत्मधर्मः १८९
परम शांति दातारी
अध्यात्म भावना
भगवान श्री पूज्यपादस्वामीरचित
‘समाधिशतक’ उपर परमपूज्य
सद्गुरुदेव श्री कानजीस्वामीनां
अध्यात्मभावना, भरपूर वैराग्यप्रेरक
प्रवचनोनो सार
‘आत्मधर्म’ ना घणा जिज्ञासु वांचको
तरफथी सहेला लेखोनी मांगणी थतां, अंक
१प८थी आ लेखमाळा शरू करवामां आवी छे.
आ प्रवचनो अध्यात्मरसथी भरपूर होवा
छतां सरळ अने सहेलाइथी समजी शकाय तेवां
छे;–आथी वांचकवर्गने आ लेखमाळा विशेष
पसंद पडी छे, अने ते पुस्तकाकारे छपाववानी
अनेक मांगणी आवी छे.
आ ‘समाधिशतक’ ना रचनार श्री
पूज्यपादस्वामी लगभग १४०० वर्ष पहेलां
थई गयेला महान दिगंबर संत छे, तेमनुं
बीजु नाम देवनंदी हतुं; तेओ विदेहक्षेत्रे
सीमंधर भगवान पासे गया हता–एवो पण
शिलालेखोमां उल्लेख छे. तेमणे तत्त्वार्थसूत्रनी
‘सर्वार्थसिद्धि’ टीका तथा जैनेन्द्रव्याकरण
वगेरे महान ग्रंथो रच्या छे. तेमनी अगाध
बुद्धिने लीधे योगीओए तेमने ‘जिनेन्द्रबुद्धि’
कह्या छे.–आवा महान आचार्यना रचेला
समाधिशतक उपरनां आ प्रवचनो छे.
(अंक १८२–८३मां प्रसिद्ध थयेला आ
लेखमाळाना छेल्ला बे लेखो आडाअवळा
छपाई गया छे; गाथा ३४–३पना प्रवचनो अंक
१८३मां छे अने गा. ३६–३७ना प्रवचनो अंक
१८२मां छे. एटले अंक १८१ पछीनुं अनुसंघान
अनुक्रमे अंक १८३, १८२ अने पछी १८८ ए
रीते मेळववुं.)