
एटले के ते भेदोनो आश्रय करवा योग्य नथी, केमके तेनो आश्रय करवाथी राग थाय छे पण मुक्ति थती
नथी. आत्माना परमस्वभावरूप जे सहजज्ञान छे ते ज उपादेय छे, तेना आश्रये केवळज्ञान अने मोक्षदशा
थई जाय छे, तेथी ते ज मोक्षनुं मूळ छे; अने ते ज्ञान आत्माना परम तत्त्वमां सदाय वर्ती रह्युं छे. अहीं
तो महामुनिराज स्पष्ट कहे छे के अहो! आवा ज्ञान सिवाय बीजुं कांई उपादेय नथी. आ सहजज्ञाननो
आश्रय करवो ते ज साक्षात् मोक्षनुं मूळ छे; आ सिवाय व्यवहारनो–रागनो–निमित्तनो आश्रय करवो ते
मोक्षनुं कारण नथी पण संसारनुं कारण छे.
कारण नथी. अने केवळज्ञान तो पोते मोक्षस्वरूप छे; परंतु साधकने ते केवळज्ञान होतुं नथी. सहजज्ञान सदाय
पारिणामिकस्वभावे वर्ती रह्युं छे, ते त्रिकाळ मोक्षस्वरूप छे, ने तेमां लीन थईने उपादेय करतां मोक्षपर्याय
प्रगटी जाय छे. आ रीते मोक्षना मूळरूप एवुं आ सहजज्ञान ज उपादेय छे.
पडतुं नथी. जेनो कदी विरह नथी एवुं आ स्वरूपप्रत्यक्ष सहजज्ञान ज साक्षात् मोक्षनुं मूळ छे, तेनामां ज
मुक्ति आपवानुं सामर्थ्य छे, माटे तारा श्रद्धा–ज्ञानमां तेने ज तुं उपादेय कर. केवळज्ञान तो वर्तमानदशामां
छे नहि, ते तो प्रगट करवानुं छे, साधकने सम्यग्मति श्रुतज्ञान छे ते परंपरा मोक्षनुं कारण छे पण ते
साक्षात् मोक्षनुं कारण नथी. तो साक्षात् मोक्षना कारणरूपे कयुं ज्ञान विद्यमान छे–ते अहीं बतावे छे.
पारिणामिकभावे आत्माना निजतत्त्वमां त्रिकाळ लवलीन वर्ततुं एवुं सहजज्ञान ज मोक्षनुं साक्षात् कारण
छे, माटे ते ज उपादेय छे. जेम निश्चय व्यवहारना अनेक पडखां जाणीने तेमां शुद्ध निश्चय ज उपादेय छे,
तेम अहीं ज्ञानना अनेक प्रकारो बतावीने मुनिराज प्रद्मप्रभ भगवान कहे छे के ज्ञानना बधा प्रकारोमां आ
परमस्वभावरूप सहजज्ञान ज उपादेय छे, ए सिवाय बीजुं कांई उपादेय नथी. ज्ञानना क्षणिकभावो उपादेय
नथी, पण ते सिवाय ज्ञाननो एक एवो सहजभाव छे के जे सदाय सद्रशरूप वर्ते छे, धु्रवरूप छे,
परमस्वभावरूप छे; आवो परमस्वभावभाव ज उपादेय छे
दर्शन–आनंद–वीर्य–सुख–चारित्र वगेरे बधा गुणोमां पोतपोतानो सहजभाव एकरूप सद्रश परिणतिथी
अनादिअनंत वर्ते छे, अने ते ‘वर्तमान वर्ततो सहजभाव’ ज ते ते गुणनी पूर्णदशानो दातार छे. चोथा
गुणस्थाने सम्यग्दर्शन थतां जे सहज आनंदनुं वेदन थयुं, तथा तेरमा गुणस्थाने तेवा परिपूर्ण आनंदनुं वेदन
थयुं, ते आनंदनो दातार कोण? ‘आनंदनो जे सदाय एकरूप सहजभाव वर्ते छे ते ज प्रगट आनंदनो दातार
छे. आनंदनो जे आ सहजभाव त्रिकाळ वर्ते छे ते पोते वेदनरूप नथी पण तेना आश्रयथी आनंदनुं वेदन नवुं
प्रगटे छे, तेथी ते सहजभाव आनंदनुं मूळ छे.
तेना आत्मामां मोक्षनां बीज रोपाई गयां.
के केवळज्ञान वखते ते सदा एकरूपे वर्ते छे, तेनुं परिणमन सद्रशरूप छे, तेनामां हीनाधिकता थती