Atmadharma magazine - Ank 190
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः १४ः आत्मधर्मः १९०
आत्मानो परमस्वभाव ज मोक्षनुं निश्चयकारण छे, ने निश्चयरत्नत्रय मोक्षमार्ग ते मोक्षनुं व्यवहारकारण छे.
आत्मा सहजज्ञानना विलासरूप छे; तेनो विलाससदा आनंदरूप छे. सम्यग्दर्शन थतां के केवळज्ञान थतां
जे आनंदनुं वेदन थयुं ते आनंद क्यांथी आव्यो? परम वीतराग आनंद साथे आत्मा सदा एकमेक छे तेमांथी
ज आनंद प्रगटयो छे. ए ज प्रमाणे परम चैतन्यशक्तिरूप वीर्य पण आत्मामां अप्रतिहतपणे त्रिकाळ
निरावरण छे. ते ज पूर्ण आत्मबळनुं दातार छे. वळी यथाख्यात चारित्रनुं दातार एवुं परम चारित्र आत्मामां
सदा अंतर्मुखपणे वर्ती ज रह्युं छे अने ‘श्रद्धा’ पण त्रिकाळ अविच्छिन्नपणे आत्मामां सदा निकट रहेली छे–
तेनो कदी विरह नथी, ते निकटवर्ती श्रद्धाशक्ति ज सम्यक्त्वनी दातार छे. आ रीते भगवान आत्मा
अनंतचतुष्टयनो नाथ छे. आ अनंत चतुष्टयना नाथने सहजज्ञानरूपे विलसतो भाववो. आवा स्वभावनी
भावना ते मोक्षमार्ग छे, ने तेनुं फळ मोक्ष छे.
आ रीते अनंत चतुष्टयना नाथ भगवान आत्माने सहजज्ञानना विलासरूपे भाववानो संतोनो उपदेश
छे. हवे ‘आ उपदेश केवो छे–ते कहेशे.
(आ गाथाओना छ विषयोमांथी पांचमो विषय अहीं पूरो थयो.)
* ब्रह्मोपदेश *
ज्ञायकमूर्ति आत्माना स्वभावरूप जे कारणस्वभाव ज्ञान छे ते सहज छे, स्वरूप–प्रत्यक्ष छे, साक्षात्
मोक्षनुं मूळ छे, जीवना परमस्वभावरूप छे, अने ते ज उपादेय छे; माटे आवा सहजज्ञानना विलासरूपे
अनंतचतुष्टयना नाथ आत्माने भाववो–एवो संतानो उपदेश छे.
जुओ, आ वीतरागी संतोनो ब्रह्मोपदेश! केवो छे आ ब्रह्मोपदेश! के संसाररूपी लतानुं मूळ छेदी
नांखनारो छे. जेम दातरडुं वेलाना मूळने छेदी नांखे छे तेम चैतन्यविलासरूप आत्मानी भावनानो आ
ब्रह्मोपदेश संसाररूपी लताना मूळने छेदी नांखवा माटे दातरडा जेवो छे. जे जीव आ उपदेश ग्रहण करीने
आत्मानी भावना भावे छे तेनो संसार छेदाई जाय छे, ने पहेलां जे अनाथ हती एवी मुक्तिसुंदरीनो ते नाथ
थाय छे.
बार गाथा टीका करतां करतां टीकाकार प्रद्मप्रभ मुनिराजने आत्माना सहज स्वभावनी भावनानो
आह्लाद आवतां कहे छे के–“आम संसाररूपी लतानुं मूळ छेदवाने दातरडारूप आ उपन्यासथी ब्रह्मोपदेश
कर्यो” ब्रह्मोपदेशमां शुं कह्युं? स्वभाव–चतुष्टयथी सहित एवा कारण परमात्माने भाववो–एम कह्युं. आ
कारणपरमात्मा ते मुक्तिसुंदरीनो नाथ छे; मोक्ष वगेरे निर्मळ पर्यायोनो बीजो कोई नाथ नथी, बीजा कोईनुं
तेने अवलंबन नथी; आत्मा ज तेनो नाथ छे, आत्मानुं ज तेने अवलंबन छे.–आवा आत्माने भाववो–एम
वीतरागी संतोनो ब्रह्मोपदेश छे. आनाथी विरुद्ध रागनी के व्यवहारनी भावना करवानो जे उपदेश छे ते
ब्रह्मोपदेश नथी पण मिथ्याद्रष्टिनो भ्रमोपदेश छे. अहीं तो भ्रमणा छेदवानो ब्रह्मोपदेश कर्यो के राग के व्यवहार
ते कोई उपादेय नथी, माटे तेनी भावना छोडावी, ने अंतर्मुख थईने सहज चैतन्यस्वरूप आत्मानी भावना
करवी. भावना एटले सम्यग्दर्शन–ज्ञान ने लीनता, तेना वडे संसारनुं मूळ छेदाई जाय छे, संसारनुं मूळ
भ्रमणा छे, ते भ्रमणा आ ब्रह्मोपदेशवडे छेदाई जाय छे.
जेम समयसारमां १२ गाथा सुधी पीठिका छे ने पछी पंदर गाथा सुधी अलौकिक वात छे.... पंदरमी
गाथामां तो ‘जिनशासन’ नी अलौकिक वात करी छे; तेम आ नियमसारमां पण १२ गाथा पूरी थतां टीकाकार
महामुनि कहे छे के ‘.....आ ब्रह्मोपदेश कर्यो....” हजी पंदरमी गाथा सुधी कारणशुद्धपर्याय संबंध सरस वात
आवशे...पंदरमी गाथामां तो कारणशुद्धपर्यायनी अलौकिक वात कहेशे. अहो! संतोना हृदय बहु ऊंडा छे.
‘आमां बहु सूक्ष्म उपदेश छे’ एम बताववाना आशयथी टीकाकारे आने ‘ब्रह्मोपदेश’ कह्यो छे. ब्रह्म–
आनंदस्वरूप जे आत्मा तेनी भावनानो आ उपदेश छे. आ ब्रह्मोपदेश समजीने जे जीव आत्मस्वभावनी
भावना करशे तेने संसारनुं मूळ छेदाई जशे......ने ते मुक्ति पामशे.
वीतरागी संतोनो ब्रह्मोपदेश जयवंत वर्तो