
ज आनंद प्रगटयो छे. ए ज प्रमाणे परम चैतन्यशक्तिरूप वीर्य पण आत्मामां अप्रतिहतपणे त्रिकाळ
निरावरण छे. ते ज पूर्ण आत्मबळनुं दातार छे. वळी यथाख्यात चारित्रनुं दातार एवुं परम चारित्र आत्मामां
सदा अंतर्मुखपणे वर्ती ज रह्युं छे अने ‘श्रद्धा’ पण त्रिकाळ अविच्छिन्नपणे आत्मामां सदा निकट रहेली छे–
तेनो कदी विरह नथी, ते निकटवर्ती श्रद्धाशक्ति ज सम्यक्त्वनी दातार छे. आ रीते भगवान आत्मा
अनंतचतुष्टयनो नाथ छे. आ अनंत चतुष्टयना नाथने सहजज्ञानरूपे विलसतो भाववो. आवा स्वभावनी
भावना ते मोक्षमार्ग छे, ने तेनुं फळ मोक्ष छे.
अनंतचतुष्टयना नाथ आत्माने भाववो–एवो संतानो उपदेश छे.
ब्रह्मोपदेश संसाररूपी लताना मूळने छेदी नांखवा माटे दातरडा जेवो छे. जे जीव आ उपदेश ग्रहण करीने
आत्मानी भावना भावे छे तेनो संसार छेदाई जाय छे, ने पहेलां जे अनाथ हती एवी मुक्तिसुंदरीनो ते नाथ
थाय छे.
कर्यो” ब्रह्मोपदेशमां शुं कह्युं? स्वभाव–चतुष्टयथी सहित एवा कारण परमात्माने भाववो–एम कह्युं. आ
कारणपरमात्मा ते मुक्तिसुंदरीनो नाथ छे; मोक्ष वगेरे निर्मळ पर्यायोनो बीजो कोई नाथ नथी, बीजा कोईनुं
तेने अवलंबन नथी; आत्मा ज तेनो नाथ छे, आत्मानुं ज तेने अवलंबन छे.–आवा आत्माने भाववो–एम
वीतरागी संतोनो ब्रह्मोपदेश छे. आनाथी विरुद्ध रागनी के व्यवहारनी भावना करवानो जे उपदेश छे ते
ब्रह्मोपदेश नथी पण मिथ्याद्रष्टिनो भ्रमोपदेश छे. अहीं तो भ्रमणा छेदवानो ब्रह्मोपदेश कर्यो के राग के व्यवहार
ते कोई उपादेय नथी, माटे तेनी भावना छोडावी, ने अंतर्मुख थईने सहज चैतन्यस्वरूप आत्मानी भावना
करवी. भावना एटले सम्यग्दर्शन–ज्ञान ने लीनता, तेना वडे संसारनुं मूळ छेदाई जाय छे, संसारनुं मूळ
भ्रमणा छे, ते भ्रमणा आ ब्रह्मोपदेशवडे छेदाई जाय छे.
महामुनि कहे छे के ‘.....आ ब्रह्मोपदेश कर्यो....” हजी पंदरमी गाथा सुधी कारणशुद्धपर्याय संबंध सरस वात
आवशे...पंदरमी गाथामां तो कारणशुद्धपर्यायनी अलौकिक वात कहेशे. अहो! संतोना हृदय बहु ऊंडा छे.
‘आमां बहु सूक्ष्म उपदेश छे’ एम बताववाना आशयथी टीकाकारे आने ‘ब्रह्मोपदेश’ कह्यो छे. ब्रह्म–
आनंदस्वरूप जे आत्मा तेनी भावनानो आ उपदेश छे. आ ब्रह्मोपदेश समजीने जे जीव आत्मस्वभावनी
भावना करशे तेने संसारनुं मूळ छेदाई जशे......ने ते मुक्ति पामशे.