(१) पूज्य पिताजी ऋषभदेवने केवळज्ञान उत्पन्न थयुं छे.
(२) अंतःपुरमां राणीने पुत्रनो जन्म थयो छे.
(३) आयुधशाळामां चक्ररत्न प्रगट थयुं छे.
उपरोक्त त्रणे कार्यनी वधामणी एक साथे ज आवतां राजा भरत क्षणभर तो विचारमां पडी गया
राजेन्द्र भरते सौथी पहेलां जिनेन्द्र भगवाननी पूजा करवानो निश्चय कर्यो... अयोध्यानगरमां आनंदभेरी
वागी....अनेक प्रजाजनो अने परिवार सहित राजा भरत भगवानना समवसरणमां जई
पहोच्यां.....महान भक्तिपूर्वक भगवान आदिनाथप्रभुनी पूजा तथा स्तुति करी.....अने भगवानना
दिव्यध्वनिनुं श्रवण करीने अयोध्यापुरीमां पाछा फर्या. त्यारबाद चक्ररत्ननी उत्पत्तिनो तथा पुत्रजन्मनो
उत्सव कर्यो. अने पछी छखंडनो दिग्विजय करवा माटे नीकळ्या. आपणे अहीं जे प्रसंग वर्णववानो छे ते
दिग्विजयथी पाछा फरती वखतनो छे.
देशो, नदीओ अने पर्वतोनुं उल्लंघन करता करता तेओ कैलासपर्वतनी नजीक आवी पहोंच्या. ए वखते
भगवान ऋषभदेव कैलासपर्वत उपर बिराजता हता. कैलासपर्वतने नजीकमां ज देखीने चक्रवर्तीए सेनाने
त्यां रोकी, अने पोते जिनेन्द्रभगवाननी पूजा करवा माटे कैलास तरफ प्रस्थान कर्युं. तेनी पाछळ पाछळ
१२०० कुमारो तथा अनेक मुकुटबंधी राजाओ जई रह्या हता. उज्जवळ कान्तिने लीधे जे
जिनेन्द्रभगवानना यशना पिंड जेवो देखाय छे एवा ए कैलासपर्वत पासे शीघ्र पहोंचतां भरतमहाराज
घणा ज प्रसन्न थया. अहा, महाराजा भरत केवा भाग्यशाळी छे के दिग्विजय माटे जतां पहेलां तो
भगवानना केवळज्ञाननी वधामणी मळी हती...ने दिग्विजय करीने पाछा फरतां पण भगवान
त्रिलोकनाथना साक्षात् दर्शन थया.....अंतरमां सदाय जेओ परमात्म–भावना भावी रह्या छे एवा
महात्माने परमात्माना साक्षात् दर्शन थया एमां शुं आश्चर्य छे! भगवान ऋषभदेवना दर्शन करवा माटे
भरत महाराजा हर्षपूर्वक कैलासयात्रा करी रह्या छे.
किनारा परना झरणांओ द्वारा ए कैलासपर्वत एवो लागे छे–जाणे के चारे बाजुथी जिनेन्द्र भगवानना दर्शन
करवा माटे आवी रहेला भव्य जीवोने पग धोवा माटे पाणी देतो होय! चारे बाजु फळ–फूलथी खीलेलां वृक्षोवडे
ए पर्वत प्रसन्न देखाय छे, स्फटिक मणि जेवा उज्जवळ गगनचूंबी शिखरोनी प्रभाथी ते शोभी रह्यो
छे.....अनेकविध देवो त्यां क्रीडा करी रह्या छे. कैलास पर्वतनी आवी अद्भुत शोभा देखीने चक्रवर्ती भरत
आनंदित थया. जेम भरतचक्रवर्ती राजाओना अधिपति होवाथी ‘भूभृत’ छे तेम कैलासपर्वत पण पर्वतोनो
अधिपति होवाथी ‘भूभृत’ छे. धर्मबुद्धिने धारण करनार महाराजा भरत पर्वतनी नीचे दूरथी ज सवारी वगेरे
परिकरने छोडीने पैदळ चालवा लाग्या. भगवाननादर्शन माटे पैदळ ज पर्वत उपर चढता भरतने थोडो पण
खेद थयो न हतो;–ए ठीक ज छे, केमके कल्याण चाहनारा पुरुषोने आत्मानुं हित करनारी क्रियाओ खेदनुं कारण
थती नथी. महाराजा भरत ते कैलासपर्वत उपर जई रह्या हता...के ज्यां केवळज्ञानसाम्राज्यना स्वामी भगवान
ऋषभदेव बिराजता हता. धर्मचक्री पिता पासे तेमनो चक्रवर्तीपुत्र विनयपूर्वक दर्शन माटे जई रह्यो छे,–अहा!
केवुं ए अद्भुत भक्तिनुं द्रश्य! जेमणे पोताना दादाने (ऋषभदेवने) कदी जोया नथी एवा १२०० भरतपुत्रो
पण “चालो, दादाना दरबारमां जईए ने भगवान ऋषभदेवनां दर्शन करीए” एवी होंशपूर्वक भरतनी
पाछळ पाछळ जई रह्या छे.