आपना वैराग्यनी अतिशयता छे, ते आपनी वीतरागता बतावे छे.
हे परमेश्वर......आपनो जय हो!
हे जगतगुरु.....आपनो जय हो!
हे सर्वेना हित करनार...आपनो जय हो!
हे अनंत चतुष्टयना नाथ.....आपनो जय हो!
हे जगतना धर्मपिता....आपनो जय हो!
हे जगतबंधु....आपनो जय हो!
हे सर्वज्ञ वीतराग....आपनो जय हो!
हे जगतमां श्रेष्ठ.....आपनो जय हो!
हे मंगलस्वरूप.....आपनो जय हो!
हे परमशरणभूत.....आपनो जय हो!
हे धर्मरथना सारथि....आपनो जय हो!
(कैलास पर्वत उपर धर्मात्मा भरत चक्रवर्ती भगवान ऋषभदेवनी अति भावपूर्वक स्तुति करी रह्या
हे लोकालोकप्रकाशक परमात्मा......आपने नमस्कार हो!
हे रत्नत्रयतीर्थप्रवर्तक परमात्मा....आपने नमस्कार हो!
हे जिनेन्द्र! आज आपना दर्शन करवाथी मारुं जीवन धन्य थयुं छे. रत्नत्रयरूपी पवित्र जळथी भरेला
मारा मस्तक उपर चडी रही छे तेनाथी मारां पापो धोवाई गया छे. प्रभो! एक तरफ तो मने बीजाना
शासनरहित एवी चक्रवर्तीनी विभूति प्राप्त थई, अने बीजी तरफ आखा लोकने पवित्र करनारी आपना
भ्रमण थवाथी) में जे पापोनुं उपार्जन न कर्युं हतुं ते आपना दर्शनमात्रथी (सूर्य–अंधकारवत्) दूर थई गया.
हे नाथ! आपना गुणोनी स्तुतिवडे हुं एटलुं ज चाहुं छुं के आपना पवित्र चरणकमळमां मारी भक्ति सदाय
रह्या करे.”
जेना अंतरमां प्रकाश थई रह्यो छे–एवा ते भक्तराज भरते गणधरदेवनी आज्ञापूर्वक श्रीमंडपना अगियारमा
चक्रवर्तीना आगमनथी समवसरणना सभाजनो हर्ष पाम्या..धर्मसभामां बेसीने भगवानऋषभदेवना
श्रीमुखथी दिव्यध्वनिद्वारा धर्मनुं स्वरूप सांभळीने महाराजा भरत घणा ज प्रसन्न थया.....खरुं ज छे, पोताना
आदिनाथ भगवानना दर्शन थया...अने भरतना पुत्रो तो पोताना आदिनाथदादाने पहेली ज वार देखीने
परम आश्चर्य पाम्या.
पछी अयोध्या तरफ जवा माटे, भगवान तरफनी पोतानी प्रसन्न द्रष्टिने मांडमांड हटावीने समवसरणमांथी
प्रस्थान कर्युं. भगवानना दर्शनथी जेना नेत्रकमळ खीली गया छे ने जेना रोमेरोमे हर्ष छवायो छे एवा ते
हता...ने रस्तामां आनंदपूर्वक भगवानना समवसरणनी चर्चा करता हता.