Atmadharma magazine - Ank 191
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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भाद्रपदः २४८पः १३ः
स्थान होय–एवी शोभे छे. हे स्वामी! आवा दिव्य समवसरण वैभवमां पण आपने रागभाव नथी–ए
आपना वैराग्यनी अतिशयता छे, ते आपनी वीतरागता बतावे छे.
हे नाथ! आपनुं शासन पवित्र छे, आप मने पण पवित्र करो.
हे परमेश्वर......आपनो जय हो!
हे जगतगुरु.....आपनो जय हो!
हे सर्वेना हित करनार...आपनो जय हो!
हे अनंत चतुष्टयना नाथ.....आपनो जय हो!
हे जगतना धर्मपिता....आपनो जय हो!
हे जगतबंधु....आपनो जय हो!
हे सर्वज्ञ वीतराग....आपनो जय हो!
हे जगतमां श्रेष्ठ.....आपनो जय हो!
हे मंगलस्वरूप.....आपनो जय हो!
हे परमशरणभूत.....आपनो जय हो!
हे धर्मरथना सारथि....आपनो जय हो!
(कैलास पर्वत उपर धर्मात्मा भरत चक्रवर्ती भगवान ऋषभदेवनी अति भावपूर्वक स्तुति करी रह्या
छेः)
हे परम आनंदमय परमात्मा....आपने नमस्कार हो!
हे लोकालोकप्रकाशक परमात्मा......आपने नमस्कार हो!
हे रत्नत्रयतीर्थप्रवर्तक परमात्मा....आपने नमस्कार हो!
हे जिनेन्द्र! आज आपना दर्शन करवाथी मारुं जीवन धन्य थयुं छे. रत्नत्रयरूपी पवित्र जळथी भरेला
आपना तीर्थ–सरोवरमां आजे घणा काळे स्नान करीने हुं पवित्र थयो छुं. आपना चरणना नखनी कान्ति
मारा मस्तक उपर चडी रही छे तेनाथी मारां पापो धोवाई गया छे. प्रभो! एक तरफ तो मने बीजाना
शासनरहित एवी चक्रवर्तीनी विभूति प्राप्त थई, अने बीजी तरफ आखा लोकने पवित्र करनारी आपना
चरणनी सेवा प्राप्त थई. हे भगवान! ‘दिशाभ्रम’ थवाथी (–मूढताथी अथवा तो दिग्विजय माटे चारे दिशामां
भ्रमण थवाथी) में जे पापोनुं उपार्जन न कर्युं हतुं ते आपना दर्शनमात्रथी (सूर्य–अंधकारवत्) दूर थई गया.
हे नाथ! आपना गुणोनी स्तुतिवडे हुं एटलुं ज चाहुं छुं के आपना पवित्र चरणकमळमां मारी भक्ति सदाय
रह्या करे.”
–आ प्रमाणे स्तुति करीने भरतराजे भक्तिपूर्वक जिनराजने नमस्कार कर्या. त्यारबाद, त्रिलोकनाथ
ऋषभ–जिनेन्द्रना दर्शन–स्तवनथी उपजेला आनंदना आंसुओथी जेनुं मुख थोडुं थोडुं भींजाई रह्युं छे अने
जेना अंतरमां प्रकाश थई रह्यो छे–एवा ते भक्तराज भरते गणधरदेवनी आज्ञापूर्वक श्रीमंडपना अगियारमा
कोठामां (मनुष्योनी सभामां) स्थान लीधुं. आजे समवसरणमां चक्रवर्तीनुं आगमन ए एक नवी वात हती.
चक्रवर्तीना आगमनथी समवसरणना सभाजनो हर्ष पाम्या..धर्मसभामां बेसीने भगवानऋषभदेवना
श्रीमुखथी दिव्यध्वनिद्वारा धर्मनुं स्वरूप सांभळीने महाराजा भरत घणा ज प्रसन्न थया.....खरुं ज छे, पोताना
हितनो प्रसंग प्राप्त थतां कया बुद्धिमानने प्रसन्नता न थाय? भरतने आज ६०, ००० वर्ष बाद पोताना पिता
आदिनाथ भगवानना दर्शन थया...अने भरतना पुत्रो तो पोताना आदिनाथदादाने पहेली ज वार देखीने
परम आश्चर्य पाम्या.
आ रीते, कैलासपर्वत उपर भगवान ऋषभदेवना दर्शन करीने तथा तेमना दिव्यध्वनीनुं श्रवण करीने,
भरत महाराजा अयोध्या तरफ जवा माटे तत्पर थया....भगवाननां पादपीठे मुगट झूकावीने तेमणे पोताना
पिता आदिनाथभगवाननी आज्ञा लीधी तथा गणधरादि मुनिवरो प्रत्ये मस्तक झूकावीने नमस्कार कर्यां.....अने
पछी अयोध्या तरफ जवा माटे, भगवान तरफनी पोतानी प्रसन्न द्रष्टिने मांडमांड हटावीने समवसरणमांथी
प्रस्थान कर्युं. भगवानना दर्शनथी जेना नेत्रकमळ खीली गया छे ने जेना रोमेरोमे हर्ष छवायो छे एवा ते
भरत महाराजानी पाछळ पाछळ १२०० राजकुमारो तथा अनेक राजवीओ कैलासपर्वत उपरथी उतरता
हता...ने रस्तामां आनंदपूर्वक भगवानना समवसरणनी चर्चा करता हता.