पोताना महेलमां दाखल थया. त्यां राणीओनो उत्साह कोई ओर ज हतो, तेओए दीपक वगेरेथी भरतजीनुं
सन्मान कर्युं. अने समवसरणनी पवित्र भूमिथी स्पर्शायेला तेमना चरण– कमलोनुं स्पर्शन कर्युं. कैलासयात्रा
करीने आवेला पुत्रो पण माताओना चरणोमां झूकीझूकीने, समवसरणनुं अने आदिनाथ भगवाननुं हर्षपूर्वक
वर्णन करवा लाग्या.
नमस्कार करवा जोईए.”–माताओ आम कहीने रोकती हती तो पण पुत्रो नमस्कार करता हता. माताओए
पुत्रोना शिरे हाथमूकीने आशीष् आपी अने पुत्रोना मुखेथी कैलासयात्रानुं उल्लासभर्युं वर्णन सांभळीने
तेओने अति प्रसन्नता थई.
आवतां चक्र अटकी जाय छे......भरत बाहुबली
युद्ध थाय छे....बाहुबली वैराग्य पामे छे ने मुनि
थईने एक वर्ष सुधी अडगपणे ध्यानमां रहे छे.
भरतचक्रवर्ती तेमनुं पूजन करवा आवे छे ने
छेवटे बाहुबली केवळज्ञान पामे छे–आ बधुं
वर्णन हवे पछी प्रसिद्ध थशे.
अंतरमां चैतन्यदरियामां तेमने शांतिनी भरती
रोमरोममां समाधि परिणमी गई छे....आवा
मुनि–अहो! जाणे के चालता सिद्ध!