Atmadharma magazine - Ank 191
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः १४ः आत्मधर्मः १९१
कैलासयात्रा करीने भरतजी ज्यारे सेनाना पडावनी नजीक आवी पहोंच्या त्यारे समस्त सेनाए
उत्साहपूर्वक तेमनुं स्वागत कर्युं. आ सर्वे जीवो धर्म पामे एवी भावनापूर्वक तेमनो उत्साह जोतांजोतां सम्राट
पोताना महेलमां दाखल थया. त्यां राणीओनो उत्साह कोई ओर ज हतो, तेओए दीपक वगेरेथी भरतजीनुं
सन्मान कर्युं. अने समवसरणनी पवित्र भूमिथी स्पर्शायेला तेमना चरण– कमलोनुं स्पर्शन कर्युं. कैलासयात्रा
करीने आवेला पुत्रो पण माताओना चरणोमां झूकीझूकीने, समवसरणनुं अने आदिनाथ भगवाननुं हर्षपूर्वक
वर्णन करवा लाग्या.
जे वखते माताओना चरणोमां ते पुत्रो नमस्कार करी रह्या हता ते वखते माताओ कहेती हती के “तमे
आजे अमने नमस्कार न करो, केमके आजे तमे अमारा पुत्र नथी पण तीर्थपथिक छो, तेथी अमारे तमने
नमस्कार करवा जोईए.”–माताओ आम कहीने रोकती हती तो पण पुत्रो नमस्कार करता हता. माताओए
पुत्रोना शिरे हाथमूकीने आशीष् आपी अने पुत्रोना मुखेथी कैलासयात्रानुं उल्लासभर्युं वर्णन सांभळीने
तेओने अति प्रसन्नता थई.
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कैलासयात्रा बाद भरत महाराजा त्यांथी
अयोध्या तरफ प्रस्थान करे छे....अयोध्यानी नजीक
आवतां चक्र अटकी जाय छे......भरत बाहुबली
युद्ध थाय छे....बाहुबली वैराग्य पामे छे ने मुनि
थईने एक वर्ष सुधी अडगपणे ध्यानमां रहे छे.
भरतचक्रवर्ती तेमनुं पूजन करवा आवे छे ने
छेवटे बाहुबली केवळज्ञान पामे छे–आ बधुं
वर्णन हवे पछी प्रसिद्ध थशे.
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चालता सिद्ध!
मुनिवरोनी अद्भुतदशानो महिमा करतां
एकवार गुरुदेवे भावभीना चित्ते कह्युंः
भगवाननो भेटो करवा नीकळेला
मुनिवरो आनंदना सागरमां झुली रह्या छे.
अंतरमां चैतन्यदरियामां तेमने शांतिनी भरती
आवी छे.....आनंदनो समुद्र उछळ्‌यो छे.....एना
रोमरोममां समाधि परिणमी गई छे....आवा
मुनि–अहो! जाणे के चालता सिद्ध!
–आवी अद्भुत ए मोक्षमार्गी मुनिवरोनी
दशा छे.