क्षायिक ते भावो धर्म छे पण ते भावो पंचम–परमभावने आश्रये ज प्रगटे छे; माटे एवा परमस्वभावे
आत्माने भाववो एवो उपदेश छे. आमां ‘भावना’ ते मोक्षमार्ग छे, सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र तेमां
आवी जाय छे.
त्रिकाळी छे, ते कारणशक्तिने कांई आवरण नथी; पण ज्यारे ते कारणशक्तिनुं अवलंबन लईने
सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान–चारित्ररूप कार्य करवामां आवे त्यारे ते कारणशक्तिनुं कारणपणुं सार्थक थाय छे.–आम
कारण–कार्यनी संधि छे.
रूपे परिणमाववानो प्रयत्न करे. आत्मानी खरेखरी लगनीपूर्वक स्वभाव तरफना घणा प्रयत्नथी अंतरमां
परिणमन थतां अपूर्व आनंदनुं वेदन थाय छे ने आत्मामां मोक्षना निःशंक कोलकरार आवी जाय छे. पछी ते
जीव पराश्रये धर्म शोधतो नथी; मारा धर्मनुं, मारा सुखनुं, मारा मोक्षनुं साधन मारी पासे वर्तमानमां हाजरा–
हजूर छे, एम ते धर्मात्मा जाणे छे. पोतानो स्वभाव पोतानी पासे ज छे, ते कांई पोताथी दूर नथी; अंतरमां
नजर करीने पोताना स्वभावनो आश्रय करे तो धर्म थाय, ए सिवाय बहारना आश्रये अनंतकाळे पण धर्म
थतो नथी. आ रीते स्वभावने लक्षमां लईने तेनो महिमा करतां करतां तेमां एकाग्र थई जवा उपर ज्ञानीओ
जोर मूके छे.
करवुं जोईए. आत्मार्थी–जिज्ञासु एम विचारे के अरेरे! अत्यार सुधी सम्यग्दर्शन वगर हुं अनंत संसारमां
रखडी रखडीने बहु दुःखी थयो. हवे सर्व उद्यमथी सम्यग्दर्शन प्रगट करवुं ते ज मारे करवा योग्य पहेलुं कर्तव्य
छे. अंतरमां मारो आत्मा छे तेने हुं लक्षमां लउं,–ए सिवाय बीजा कोने मानवुं ने कोनुं जोवुं? दुनिया तो चाली
ज जाय छे. आखी दुनिया मारा अंर्तआत्माथी बहार छे. मारा कार्यनो संबंध अंतरमां मारा कारण साथे छे.
बहारमां कोई साथे नथी.
भावोथी अगोचर छे. चार क्षणिक भावोनो आश्रय छोडाववा माटे तेमनाथी अगम्य कहीने पंचम
भावनो आश्रय कराव्यो छे. समकितीने ते स्वभाव अंतरमां अनुभवगम्य थई गयो छे.
पारिणामिकभावने चार भावोथी अगोचर कहेवानो आशय एवो छे के चार भावोना आश्रये ते
पंचमभाव जणातो नथी, परम पारिणामिक स्वभावना आश्रये ज ते जणाय छे.–जणाय तो छे
क्षायोपशमिक वगेरे भावोथी–पण ते भाव ज्यारे अंतरमां परमपारिणामिक स्वभावनो आश्रय करे
त्यारे ज ते परमस्वभावने जाणे छे.
केवळज्ञान पर्याय प्रगटी तेने जाणवा माटे कोई ईंद्रिय–प्रकाश वगेरेनी अपेक्षा नहि होवाथी निरपेक्ष
कहेवाय, ते जुदी अपेक्षा छे, परंतु ते केवळज्ञानपर्यायमां कर्मना क्षयनी अपेक्षा आवे छे, पहेलां ते
केवळज्ञान न हतुं ने पछी कर्मनो क्षय थतां प्रगटयुं–ए रीते तेमां निरपेक्षता नथी, एकरूपता नथी,
एटले ते क्षायिकभावनो