Atmadharma magazine - Ank 191
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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भाद्रपदः २४८पः ७ः
शांतिनुं धाम एवुं स्वतत्त्व
जे शांतरसथी भरेलुं छे....ने....दुःखनो जेमां प्रवेश नथी
भाई! दुःखना दहाडा अनंतकाळथी तारा
उपर वीत्या....पण हवे ए बधुं भूलीने
शांतिचित्ते एकवार तारा चैतन्यनी सामे जो.
भाई, तारे तारा दुःखना दहाडानो अंत लाववो
होय ने साची आत्मशांति जोईती होय तो
तारा शुद्ध निजतत्त्वने तुं लक्षमां ले. तारुं
निजतत्त्व आत्मरसथी भरेलुं छे, चैतन्यनो
परमशांतरस तेमां भर्यो छे, त्यां दुःख कदी
प्रवेशी शकतुं नथी; माटे दुःखथी बचवा तुं तारा
स्वतत्त्वनुं ज शरण ले.
आ नियमसारना ‘पंचरत्न’ (गाथा ७७थी ८१) वंचाय छे.
देहथी भिन्न चैतन्यतत्त्व शुं चीज छे–के जेनां श्रद्धा, ज्ञान ने आचरणथी मोक्षमार्ग सधाय? तेनी
आ वात छे. प्रथम तो देहादि पदार्थो जड अचेतन छे, तेओ जीवथी भिन्न छे; जीवनी हयातीमां ते देहादि
नथी, ने ते देहादिमां जीव नथी, बंने तत्त्वो पृथक्पृथक् छे. जीवतत्त्व शुं छे ते जीवे कदी लक्षमां नथी लीधुं;
पोताने भूलीने देहादि ते हुं एवी अज्ञानबुद्धिथी राग–द्वेष ज कर्या छे, तेथी ते संसारपरिभ्रमणमां दुःखी
थई रह्यो छे.
आत्मा देहथी तो भिन्न छे, ते उपरांत अहीं तो अंदरना राग–द्वेषादि अरूपी विकारीभावोथी पण भिन्न
स्वभाववाळुं शुद्ध जीवतत्त्व छे ते ज स्वद्रव्य छे, एम बताववुं छे. भेदना लक्षे जेटलुं वृत्तिनुं उत्थान थाय ते पण
खरेखर जीवतत्त्वथी बहार छे; भेदनी वृत्तिना उत्थानवडे शुद्ध जीवतत्त्वमां प्रवेशातुं नथी. शुद्ध–जीव–तत्त्वने
लक्षमां लईने तेमां एकाग्र थवाथी ज शांति अने आनंदनो अनुभव थाय छे. पहेलां आवा निजतत्त्वने श्रद्धामां
लेवुं ते अनादिना मिथ्यात्वपापनुं प्रतिक्रमण छे. मिथ्यात्वना प्रतिक्रमण वगर अव्रतादिनुं प्रतिक्रमण होय नहीं,
अर्थात् सम्यग्दर्शन वगर खरेखर व्रतादि होय नहीं.
स्वद्रव्यरूप शुद्ध आत्मा केवो छे,–के जेना आश्रये प्रतिक्रमण थाय छे? तेनुं आ वर्णन छे. शुद्ध आत्मा
जेनी द्रष्टिमां आव्यो छे ते धर्मात्माने सकळ बर्हिभावोनुं अकर्तृत्व वर्ते छे, एटले ते बर्हि भावोथी पाछी
वळीने तेनी परिणति अंर्तस्वरूपमां खेंचाणी छे. परिणतिने परद्रव्यथी पाछी वाळीने स्वद्रव्यमां खेंच्या विना
त्रण काळ त्रण लोकमां बीजो कोई शांतिनो उपाय नथी.
भाई, दुःखना दहाडा अनंतकाळथी तारा उपर वीत्या, पण हवे ए बधुं भूलीने शांतचित्ते एक
वार आ वात तो सांभळ! भाई, तारे तारा दुःखना दहाडानो अंत लाववो होय ने साची आत्मशांति
जोईती होय तो तारा शुद्ध निजतत्त्वने तुं लक्षमां ले. तारुं निजतत्त्व आत्मरसथी भरेलुं छे, चैतन्यनो
परम शांत रस तेमां भर्यो छे, त्यां दुःख कदी प्रवेशी शकतुं नथी, माटे दुःखथी बचवा तुं तारा स्वतत्त्वनुं
ज शरण ले.
हे जीव! तुं जे शांति शोधे छे ते शांति तारामां ज भरेली छे. तारुं शुद्ध स्वतत्त्व दुःख वगरनुं छे;
नरक, तिर्यंच, देव के मनुष्य ए कोई विभावपर्यायनुं कर्तृत्व तेनामां नथी. नरकमां रहेल सम्यग्द्रष्टि जीव
पण पोताना आत्माने निश्चयथी आवो ज जाणे छे. शुद्ध आत्मानो आश्रय करनार धर्मात्मा
मोहादिभावोनो कर्ता थतो नथी