ज्ञानानंदस्वरूप निजआत्माने अंतरमां शोधवो–देखवो–श्रद्धवो ते शांतिनो उपाय छे. शांतिनुं स्वधाम स्वतत्त्व
ज छे. ते स्वतत्त्वना शोधन विना जगतमां बहारमां क्यांय शांति मळे तेम नथी.
होय? राग ते साधन नथी, तेना वडे चैतन्यनी शांति पमाती नथी. उपयोगने अंतरमां वाळवो ते ज चैतन्यनी
शांतिनुं साधन छे. शांतिनुं धाम शरीर नथी, शांतिनुं धाम राग नथी, शांतिनुं धाम तो शुद्धचैतन्यरसथी भरेलुं
स्वतत्त्व छे. श्रद्धा–ज्ञान–द्वारा ते स्वतत्त्वमां प्रवेश करवो ते ज शांतिनो उपाय छे.
वळ्यो ते जीव संसारथी पाछो फर्यो, एटले तेणे संसारनुं प्रतिक्रमण कर्युं ने मोक्ष तरफ प्रयाण कर्युं. जेना आश्रये
शांति अने मुक्ति थाय छे एवुं आ शुद्धचैतन्यतत्त्व ते ज निश्चयथी स्वद्रव्य छे, अने ते ज अंर्ततत्त्व होवाथी
परम उपादेय छे; एनाथी बाह्यभावो ते बधाय परद्रव्यो अने परभावो होवाथी हेय छे.
चैतन्यतत्त्वमां परद्रव्यो के परभावो छे ज नहीं–तो हुं तेनो कर्ता केम होउं?–आम जाणतो धर्मी जीव परभावोथी
पाछो वळीने निजस्वभाव तरफ झूकतो जाय छे, ए ज तेनुं निश्चय प्रतिक्रमण छे. आ वीतरागभाव छे;
सामायिक, सर्वज्ञनी परमार्थस्तुति वगेरे बधा आवश्यक (मोक्ष माटे अवश्य करवा योग्य) कार्यो तेमां समाई
जाय छे.
ज्ञायकस्वभाव तरफ वळीने अभेद थयेली पर्याय तो ज्ञायकभावमां भळी गई, अने रागादि विकल्पो
ज्ञायकभावथी बहार रही गया. आ रीते धर्मीना अनुभवमां स्वद्रव्य अने परद्रव्यनो विभाग थई गयो छे.
आवो विभाग करीने जेणे शुद्ध स्वद्रव्यने ज उपादेय कर्युं छे एवो धर्मी जीव जेम जेम स्वभाव तरफ एकाग्र
थतो जाय छे तेम तेम तेने परद्रव्यनुं अवलंबन छूटतुं जाय छे ने परभावो छूटता जाय छे, तेमां ज प्रतिक्रमण
अने मोक्षमार्ग समाई जाय छे.
अने ए सिवायना समस्त बाह्य विषयोना ग्रहणनी चिंता छोडे छे ते जीव मुक्ति पामे छे. आ रीते स्वभाव
अने विभावना भेदनो अभ्यास ते मुक्तिनुं कारण छे. आवा स्वतत्त्वनो आश्रय करवो ते ज आत्मानी रक्षा
करनार बंधु छे. चैतन्यस्वभावनो आश्रय करीने विभावोना उपद्रवथी आत्मानी रक्षा करवी ते ज साचुं
रक्षापर्व छे. विष्णुकुमारमुनिने अकंपनाचार्य आदि ७०० मुनिवरोनी रक्षानो भाव आव्यो ते धर्मना
वात्सल्यनो शुभभाव हतो, ते शुभभावथी पार एवा चिदानंद स्वभावनुं वात्सल्य पण ते वखते साथे वर्ततुं
हतुं. रागथी पण आत्मानी रक्षा करवी (भेदज्ञान करवुं) ते आत्मरक्षा छे. जेटले अंशे रागादि छे तेटले अंशे
आत्माना गुणो हणाय छे, अने ते रागादि विभावो आत्मानी शांतिमां उपद्रव करनारा छे, ते उपद्रवकारी
भावोथी आत्माने बचाववो, कई रीत बचाववो? के ते समस्त विभावोथी भिन्न पोताना शुद्ध स्वतत्त्वमां
प्रवेशीने ते उपद्रवकारी भावोथी आत्माने बचाववो ते आत्मरक्षा छे.