ः १२ः आत्मधर्मः १९२
शरण! क्यांय विसामो!–तो कहे छे के हा, आ ज्ञानस्वरूप आत्मामां ज शरण अने विसामो छे.... पण विकार
तरफना वेगथी जराक पाछुं वाळीने स्वभाव तरफ जुओ त्यारेने!
पप. प्रभो! विकार तने तारा कार्य तरीके भासे, ने तारुं ज्ञानकार्य तने न भासे–ए तो
तारुं अज्ञान छे; पोताना अज्ञानथी ज तुं विकार थई रह्यो छे. कर्मो तने विकार नथी करता.
जाणनार पोते पोतानुं भान भूलीने, पोताने विकारी मानीने विकारी थयो छे. ए रीते अज्ञानरूप
पोताना अपराधथी ज जे क्रोधादिरूप थयो छे एवा आ आत्माने क्रोधादिना निमित्ते कर्मबंधन
थाय छे.
प६. जुओ, आ बंधनुं कारण! क्रोधादिमां वर्तवुं ते ज बंधनुं कारण छे,–अने ज्ञानस्वभावमां वर्तवुं ते ज
मोक्षनुं कारण छे.–आ रीते मोक्षना कारणरूप ज्ञानक्रिया, अने बंधना कारणरूप क्रोधादि क्रिया, ए बंनेनुं
भेदज्ञान करीने, ज्ञानस्वभावमां वर्तवुं. ए रीते ज्ञानस्वभावमां परिणमवाथी ज बंधनो निरोध थई जाय छे.–
आ रीते बंधनुं कारण अने तेना नाशनो उपाय–ए बंने बताव्या.
प७. जीव पोताना अज्ञानभावथी ज स्वयं क्रोधादिरूपे परिणमे छे, कर्मने लीधे नहीं; तेमज जीवना
भावने निमित्त करीने पुद्गलो स्वयं तेमना पोताना भावथी ज कर्मरूपे परिणमे छे, जीवने लीधे नहीं. आ रीते
जीव–पुद्गलनुं स्वतंत्र परिणमन होवा छतां, निमित्त–नैमित्तिक संबंधनो एवो मेळ छे के जेटला प्रमाणमां
जीवनो विकार होय तेटला ज प्रमाणमां कर्मबंधन थाय. परंतु एम नथी के जेटला प्रमाणमां कर्मनो उदय होय
तेटला ज प्रमाणमां जीवने विकार थाय!
प८. हवे जीव अने पुद्गल बंने पोतपोताना भावे स्वयं परिणमता होवा छतां, जीव ज्यारे
अज्ञानभावे क्रोधादिरूपे परिणमे छे, त्यारे तेना निमित्ते पुद्गलो स्वयं कर्मरूपे परिणमे छे;–आ रीते
जीव–पुद्गलना परस्पर संबंधरूप बंध सिद्ध थाय छे. जुओ, सर्वज्ञभगवाने आ रीते जीवने बंधन
कह्युं छे, ते ओळखावीने आचार्यदेव तेनाथी छूटकारानो उपाय पण बतावशे.
प९. त्रण प्रकारना संबंध आ गाथामां आव्या–
(१) ज्ञान अने आत्माने नित्य तादात्म्यरूप संबंध; आ संबंध तो स्वभावरूप छे, ते कदी तूटी शकतो
नथी.
(२) क्रोधादिने अने आत्माने क्षणिक संयोगसिद्ध संबंध छे; ते विभावरूप छे अने तूटी शके छे. ज्ञान
साथे संबंध जोडतां विकार साथेनो संबंध तूटी जाय छे.
(३) जीव ज्यारे क्रोधादि साथे संबंध करे छे त्यारे तेने कर्म साथे संबंधरूप बंधन थाय छे विकार
साथेनो संबंध तूटतां आ संबंध पण छूटी जाय छे.
६०. चैतन्यस्वभावनी सामे जोनार जीव कर्मनी सामे जोतो नथी, एटले तेने कर्म साथेनो संबंध रहेतो
नथी. कर्म साथेनो संबंध कोने रहे?–के जे कर्मनी सामे जुए तेने.
६१. भाई! तुं तारा चिदानंदतत्त्वनी सामे जो, तो तेमांथी तने तारी शांतिनुं वेदन आवशे.
आ देह कोनां? ने कुंटुंब कोनां!–ए तो बधा ताराथी बाह्यतत्त्व छे, तेमां क्यांय तारुं शरण नथी.....
माटे तेनी सामे जोवानुं छोड...ने चैतन्यतत्त्वनी सामे द्रष्टि करीने, तेने ज तारा जीवननुं ध्येय
बनाव.