Atmadharma magazine - Ank 192
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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आसोः २४८पः ९ः
क्रोधादिमां लीनपणे वर्ततो ते अज्ञानी मोह–राग–द्वेषरूपे परिणमतो थको कर्मने बांधे छे.–आ रीते बंधनुं कारण
होवाथी आ क्रोधादि क्रिया निषेधवामां आवी छे.
३४. जुओ, बे क्रिया थई.
(१) ज्ञानक्रिया,
(२) क्रोधादि क्रिया,
(१) ‘ज्ञान ते हुं’ एम ज्ञान साथे एकत्वपरिणमनरूप ज्ञानक्रिया, ते तो स्वभावभूत छे.
(२) ‘क्रोध ते हुं’ एम क्रोधादि साथे एकत्वपरिणमनरूप क्रोधादि क्रिया ते परभावभूत छे.
(१) स्वभावभूत ज्ञानक्रियानो तो निषेध थई शकतो नथी. (आ ज्ञानीनी क्रिया छे.)
(२) परभावभूत क्रोधादि क्रियानो निषेध करवामां आव्यो छे. (आ अज्ञानीनी क्रिया छे.)
(३) त्रीजी जडनी क्रिया छे; तेनी साथे जीवने कर्ताकर्मपणानो संबंध नथी.
३प. ज्ञान साथे आत्माने त्रिकाळ एकता (नित्य तादात्म्य) छे; पण क्रोधादि साथे त्रिकाळ एकता नथी,
ते क्षणिक संबंधमात्र होवाथी संयोगसिद्धि. संबंधरूप छे. छतां अज्ञानी आ बंनेने (ज्ञानने अने क्रोधने)
एकमेक मानीने वर्ते छे, तेमना भेदने देखतो नथी, त्यांसुधी ते मोहादिभावे परिणमतो थको कर्मबंधन करे छे
एम सर्वज्ञभगवान कहे छे.
३६. आत्मानो ज्ञानस्वभाव छे; ते ज्ञानस्वभावमां अंतर्मुख थईने परिणमनारने तो पोताना
ज्ञानआनंदनुं ज कर्तापणुं होय, विकारनुं कर्तापणुं तेने न होय; अने ज्यां विकारनुं कर्तापणुं न होय त्यां
बंधन, दुःख के संसार पण न होय,. परंतु अज्ञानी पोताना ज्ञानस्वभावने भूलीने, तेनाथी विमुख
वर्ततो थको, विकारनो कर्ता थईने परिणमे छे, तेथी तेने बंधन, दुःख अने संसार छे.
३७. अहीं आचार्यदेव तेने समजावे छे के हे भाई! तारा त्रिकाळी ज्ञानस्वभावने तुं क्षणिक विकारथी
जुदो देख. ज्ञान साथे तारे जेवी एकता छे तेवी रागादि विकार साथे एकता नथी, माटे ते रागादि विकार
साथेनी एकताबुद्धि छोड.....तेनी साथे तारे कर्ताकर्मपणुं खरेखर नथी. ते विकारना कर्तृत्व वगरना तारा
ज्ञानस्वभावने तुं लक्षमां ले.
३८. चिदानंदतत्त्व अंतरमां छे ने रागादिवृत्तिओ बहिर्लक्षी छे. जेने बहिर्लक्षी एवी रागादिवृत्तिनुं
बहुमान–रुचि–आदर वर्ते छे ते जीवने त्रिकाळ चिदानंदतत्त्व प्रत्ये अनादर–अरुचि–क्रोध छे, ते ज महापाप छे.
भेदज्ञानवडे ते महापापथी केम बचवुं तेनी आ वात छे.
३९. भेदज्ञान शुं चीज छे तेना भान वगर अनंतवार जीवे बाह्य त्याग कर्यो, दयादिना शुभभाव
कर्या, ने ते बाह्यक्रियानुं के रागनुं ज कर्तापणुं मानीने, अज्ञानीपणे संसारमां ज रखडयो ने दुःखी थयो;
तेथी आ रागादि साथे एकतारूप जे क्रोधादिक्रिया छे ते निषेधवामां आवी छे. ज्ञानक्रियानो ज कर्ता हुं,
क्रोधादि क्रियानो कर्ता हुं नहीं,–एम ज्ञान अने क्रोधनुं भेदज्ञान करवुं ते प्रथम अपूर्व धर्म छे.
४०. विकारना कर्तापणारूप क्रिया आत्माना स्वभावनी बहार छे, तो पण जाणे के ते मारो स्वभाव ज
होय,–एम अज्ञानीने टेव पडी गई छे, तेथी ते विकारना कर्तापणे परिणमे छे. कर्मना उदयने लीधे विकारपणे
परिणमे