Atmadharma magazine - Ank 193
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म: १९३
व्यवहारने लक्षमां ल्ये छे त्यारे ज; निश्चयथी तो दरेक जीव ‘ज्ञायकस्वभावी अरूपी अमर’ छे, ते तो
मरतो नथी, तेमज ‘ज्ञायकस्वभावने हुं हणुं’ एवो विकल्प पण कोईने आवतो नथी. सिद्ध भगवानने
मारुं एवो भाव शुं कोईने आवे? न ज आवे. भरत–बाहुबलीने एक बीजा सामे लडवानो भाव
आव्यो पण शुं सिद्ध भगवाननी साथे लडवानो भाव कोईने आवे?–ना; केमके तेमने शरीर साथे
संबंधरूप व्यवहार ज नथी रह्यो. एटले हिंसादिनो भाव ज त्यां छे के ज्यां व्यवहार छे. निश्चयमां तो
हिंसादिभाव होता नथी, अथवा निश्चयस्वभावने लक्षमां लईने तेमां जे ठरी गयो होय तेने
हिंसादिभावो न होय. पण ज्यां हिंसादिभाव छे त्यां व्यवहार छे, बंधन छे,–एम जाणवुं जोईए. अने
ज्यां बंधन छे त्यां ते बंधनथी छूटवानो उपाय पण जाणवो जोईए. आ रीते बंधन अने तेनाथी
छूटवानो उपाय, ए बंने व्यवहार वगर सिद्ध थता नथी. माटे भगवानना आगममां व्यवहार पण
दर्शाव्यो छे.–भले भगवाने व्यवहार दर्शाव्यो–छतां ते व्यवहार छे तो अभूतार्थ! अभूतार्थ होवा छतां
व्यवहारी जीवोए ते व्यवहारने पण जाणवो जोईए.–एकला व्यवहारने जाणवानी वात नथी, परंतु
‘व्यवहारने पण’ एम कहीने निश्चय सहित व्यवहारने पण जाणवानी वात करी छे. निश्चयने जाण्या
वगर एकला व्यवहारमां जे मशगूल छे ते तो व्यवहारमूढ छे, तेने तो व्यवहारनुं के निश्चयनुं एकेयनुं
भान नथी. अने पर्यायमां जे जे प्रकारनो व्यवहार छे तेने जे नथी स्वीकारतो ते पण स्वच्छंदी
शुष्कज्ञानी छे.
निश्चयना लक्षवाळो जीव पोतानी पर्यायमां जेवो जेवो व्यवहार होय तेने पण जाणे छे. निश्चय
अने व्यवहार बंनेने जाणवा छतां तेने सततपणे निश्चयस्वभावनो ज आदर रहे छे. ‘निश्चयथी मारो
आत्मा राग–द्वेष–मोह वगरनो छे’ एवुं यथार्थ भान होवा छतां, पर्यायमां जेटला राग–द्वेष–मोह छे
तेने पण व्यवहारे पोतानां जाणीने तेने टाळवानो उद्यम पण वर्ते छे. शास्त्रो पण उपदेश आपे छे के
“अरे जीव! राग–द्वेष–मोहथी तारो आत्मा बंधाय छे माटे तेनुं तुं छोड....ने मोक्षनो उपाय अंगीकार
कर...वीतरागी मोक्षमार्गनी आराधना करीने तारा आत्माने बंधनथी छोडाव!” आ रीते व्यवहारे
जीवने बंधन छे ते बतावीने तेनाथी छूटवानो उपदेश भगवाने कर्यो छे, ते न्यायसंगत ज छे.
जुओ, आमां निश्चय–व्यवहारनी सरस संधि छे. ‘भाई! तारा आत्माने बंधनथी छोडाववा
माटे तुं मोक्षनो उपाय कर’–आम मोक्षमार्गना ग्रहणनो उपदेश करवो ते व्यवहारनयथी छे.–परंतु
मोक्षमार्गनुं ग्रहण कई रीते थाय? ते कांई व्यवहारना अवलंबने थतुं नथी, ते तो निश्चयस्वभावना
अवलंबने ज थाय छे. माटे सार ए छे के, जाणवा तो निश्चय अने व्यवहार बंनेने,–पण आश्रय
करवो एक निश्चयनो.–आ मोक्षमार्ग साधवानी रीत छे.
(आ ४६ मी गाथा उपरना प्रवचननुं टेप–रेकोंर्डीग करवानी कलकत्ताना शेठश्री वछराजजी
गंगवालनी खास मांगणीथी, तेना उपर फरीने प्रवचनो थया हता....तेमांथी जिज्ञासुओने उपयोगी
महत्त्वनो सार अहीं प्रसिद्ध कर्यो छे. जेमने वधु विस्तारथी आ गाथाना प्रवचनो वांचवा ईच्छा होय
तेमणे पू. बेनश्रीबेनलिखित समयसार प्रवचनो भाग ३ मांथी वांचवा,–तेमां ४० पानानां विस्तारमां
अने द्रष्टांत वगेरेथी निश्चय–व्यवहारनुं स्पष्टीकरण छे आ उपरांत आ गाथामां बीजां केटलाक
प्रवचनो आत्मधर्म अंक ४४मां पण छपायेला छे, ते पण वांचवा)
व्यवहारनय अभूतार्थदर्शित, शुद्धनय भूतार्थ छे;
भूतार्थने आश्रित जीव सुद्रष्टि निश्चय होय छे. ११.
समयसारनी आ गाथामां जैनशासननुं हार्द छे.