Atmadharma magazine - Ank 193
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म: १९३
अंतरीक्ष पार्श्वनाथ क्षेत्रमां
पू. गुरुदेवनुं प्रवचन
शिरपुरमां अंतरिक्ष पार्श्वनाथ मंदिरमां
पू. श्री कानजीस्वामीनुं प्रवचन ता. १–४–प९
दरेक आत्मा देहथी भिन्न ज्ञानानंदस्वरूप छे, अने तेनामां सर्वज्ञ थवानी ताकात छे.
आत्मा अने परमाणु ए जगतना सत् तत्त्वो छे; ते सत्नो कदी नाश थतो नथी, तेमज तेनी
कदी नवी उत्पत्ति थती नथी, त्रणे काळे ते छे–छे ने छे; त्रिकाळ सत्पणे टकीने क्षणेक्षणे ते पोतानी
अवस्थानुं रूपांतर करे छे. दरेक पदार्थ स्वतंत्रपणे पोतपोतानी अवस्थानुं रूपांतर करे छे, कोई बीजो
तेनो कर्ता नथी.
आत्मा अनादिनो छे, तेणे अत्यारे सुधी शुं कर्युं? –के पोताना स्वभावने भूलीने विकारना
कर्तापणे चार गतिमां ते रखडयो; अनेक जीवो पोताना स्वभावने ओळखीने पूर्णानंद प्रगट करीने
परमात्मा पण थया. जेवा सर्वज्ञ परमात्मा थया तेवी ताकात आ आत्मामां पण छे. जेम
लींडीपीपरमां ६४ पहोरी तीखासनी ताकात भरी छे तेम आत्मामां परिपूर्ण ज्ञान ने आनंद
प्रगटवानी ताकात भरी छे. ते शक्ति पोताना स्वभावना अवलंबने ज खीले छे, बहारथी नथी
आवती. आत्मानो निरालंबी स्वभाव छे. तीर्थंकर भगवान समवसरणमां अंतरीक्ष–आकाशमां–नीचे
बीजा कोई अवलंबन वगर बिराजे छे, तेम आत्मानो स्वभाव पण निरालंबी छे, ते स्वभाव
प्रगटवा माटे बहारनुं के रागनुं अवलंबन नथी.
आवा निरालंबी चैतन्य स्वभावनी सन्मुख थतां अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद आवे छे; जेम
काचा चणानो स्वाद तूरो आवे छे, तेम चैतन्य स्वभावना भान वगर अज्ञानरूपी कचासथी आत्माने
कषायना तूरा स्वादनुं वेदन आवे छे; पण जेम काचा चणाने शेकी नांखता तेना मीठा स्वादनुं वेदन
थाय छे तेम सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञानरूपी तापथी आत्माने शेकतां तेना मीठास्वादनुं एटले के
अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन थाय छे. जेम काचो चणो वावतां ऊगे छे तेम अज्ञानरूपी कचासथी आत्मा
चोरासीना अवतारमां फरीफरी भव धारण करे छे, अने जेम चणो शेकी नांखतां ते फरीने ऊगतो नथी
तेम सम्यग्दर्शन थतां आत्मा अल्पकाळे मुक्ति पामे छे, पछी ते भव धारण करतो नथी.
अहीं आठमां अध्यायना चोथा श्लोकमां श्री ज्ञान–भूषण महाराज कहे छे के:
स्वात्मध्यानामृतं स्वच्छं विकल्पानपसार्य सत्।
पिबन्ति क्लेशनाशाय जलं शैवालवत् सुधी।।
जेम तीव्र तापना कलेशथी संतप्त प्राणी तरसनी शांति माटे सेवाळ दूर करीने स्वच्छ मधुर जळ
पीए छे, तेम जे बुद्धिमान जीव संसारना दुःखथी छूटीने आत्मशांति चाहे छे ते भेदज्ञानवडे समस्त
संसारना विकल्प–