Atmadharma magazine - Ank 193
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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कारतक: २४८६ : २१:
अज्ञानी पोताना आत्माने भूलीने एम माने छे के कोई मने तारे ने कोई मने डूबाडे;
भगवान तारे ने कर्म डूबाडे–परंतु एम नथी. भाई! तुं तारी ज भूलथी रखडयो छे, ने तुं ज तारी
भूल भांगीने ते रखडवानुं टाळी शके छे. पूजामां पण कहे छे के–
कर्म बिचारे कौन भूल मेरी अधिकाई,
अग्नि सहे घनधात लोहकी संगति पाई.
जेम लींडीपीपरना दाणेदाणामां चोसठपोरी तीखासनी ताकात छे, तेम प्रत्येक आत्मामां
सर्वज्ञता ने पूर्णानंदनी ताकात छे. पोताना स्वभावनी ताकातने भूलीने आत्मा पोते अज्ञानथी दुःखी
थाय छे; अने पोताना स्वभावनी ताकातनो विश्वास करीने तेनी संभाळथी आत्मा पोते ज परमात्मा
थाय छे.
जेने आत्मशांतिनी झंखना जागी छे ते संतो पासे जईने तेनो उपाय पूछे छे, ने संतो तेने
आत्मशांतिनो उपाय बतावीने शांति पमाडे छे.–‘शांति पमाडे सो संत कहीए.’
जिज्ञासु शिष्य श्रीगुरु पासे जईने विनयथी पूछे छे के हे प्रभो! आ आत्मा तो ज्ञानस्वरूप छे
ने रागादि बंधभावो तेने कलेशरूप छे; तो आ आत्माने अने बंधने जुदा कई रीते पाडवा? कया
साधनवडे आत्माने बंधनथी जुदो पाडवो? तेना उत्तरमां साधन बतावतां आचार्यभगवान कहे छे के:
जीव बंध बंने नियत,
निज निज लक्षणे छेदाय छे;
प्रज्ञा छीणीथकी छेदतां,
बंने जुदा पडी जाय छे.
जुओ, आ भेदज्ञाननुं साधन! भेदज्ञाननुं साधन बहारमां क््यांय नथी, अंतरमां प्रज्ञारूपी
छीणी ते ज साधन छे, ते साधनवडे ज आत्मा बंधनने छेदीने मुक्ति पामे छे. त्रणेकाळे आ एक ज
मुक्तिनो पंथ छे,–एक होय त्रण काळमां परमारथनो पंथ.’
शिष्य कहे छे: प्रभो! आपे अंतरमां भेदज्ञान करीने बंधथी भिन्न शुद्ध आत्माने जाण्यो छे ने
तेनी पूर्ण प्राप्तिनुं साधन आप करी रह्या छो, तो मने पण कृपा करीने ते साधन बतावो. आवा पात्र
शिष्यने आचार्यदेवे भेदज्ञाननुं साधन समजाव्युं छे. आवुं भेदज्ञान करवुं ते ज मोक्षनो पंथ छे.
***
* तारा जीवनमां अतीन्द्रिय आनंदनी उषा ऊगशे *
जीव अनादिथी शुभाशुभ रागने आधीन थई रह्यो छे,
तेने रागथी भिन्न तेनुं स्वाधीनस्वरूप संतो ओळखावे छे: अरे
जीव! हुं परनुं कार्य करुं ने पर मारुं कार्य करे–एवी पराधीनता
वगरनो एक पण दिवस खरो?–एक क्षण पण खरी? एक दिवस
तो पराधीनता वगरनो लाव! अरे, एक क्षण तो पर साथेनो
संबंध तोडीने अने स्वभाव साथेनो संबंध जोडीने स्वाधीन था.
–आवी स्वाधीनताथी तारा जीवनमां अतीन्द्रिय आनंदनी उषा
ऊगशे एना वगर कदी पण सुख के शांति थाय तेम नथी. आवी
स्वाधीनतानी एक क्षण तो लाव!