Atmadharma magazine - Ank 193
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म: १९३
शिष्यने आत्मामांथी प्रश्न ऊठ्यो के प्रभो! संसारना कारणरूप ए अज्ञाननो नाश क््यारे थाय? मारो
आत्मा आ दुःखरूप अज्ञानप्रवृत्तिमांथी क््यारे छूटे?
६प. जेम ‘आत्मसिद्धि’ मां (९प गाथा सुधी) पांच बोल (आत्मा छे, ते नित्य छे, कर्ता छे,
भोक्ता छे अने तेनो मोक्ष छे, ए पांच बोल) सांभळ्‌या पछी मोक्षनो उपाय समजवानी झंखनाथी
शिष्य कहे छे के प्रभो!
“पांचे उत्तरथी थयुं समाधान सर्वांग;
समजुं मोक्ष उपाय तो उदय उदय सद्भाग्य.” (९६)
त्यारे श्रीगुरु कहे छे के–
“पांचे उत्तरनी थई आत्मा विषे प्रतीत,
थाशे मोक्षउपायनी सहज प्रतीत ए रीत.” (९७)
–एम कहीने पछी तेने मोक्षनो उपाय समजावे छे, अने शिष्य ते समजी जाय छे.
–ए ज रीते अहीं, बंधनुं कारण जाणीने तेनाथी छूटवानो उपाय समजवानी जेने झंखना जागी
छे एवो शिष्य पूछे छे: प्रभो! आ बंधनथी छूटवानो कोई उपाय?–कई रीते आ बंधन छूटे? कई रीते
आ अज्ञान अने दुःख मटे? त्यारे श्रीगुरु तेने बंधनथी छूटवानो उपाय बतावतां कहे छे के:
आ जीव ज्यारे आस्रवोनुं तेम निज आत्मातणुं
जाणे विशेषांतर, तदा बंधन नहि तेने थतुं. ७१
ज्यारे आ जीव आत्माना अने आस्रवोना तफावत अने भेदने जाणे त्यारे तेने बंध थतो
नथी.
६६. जेने बंधनना दुःखनो त्रास लाग्यो होय ने तेनाथी छूटवानी धगश जागी होय एवा
जीवने आ वात समजावे छे. अरे जुओने! दुनियाना प्राणी केटलां संकटमां पड्या छे, ने केवा केवा
दुःखनुं वेदन करी रह्या छे!–छतां तेना ज उपर मीट मांडीने बेठा छे.....चैतन्य उपर मीट मांडे तो तो
क्षणमां बधा दुःख छूटी जाय. चैतन्यनी रुचि करीने, द्रष्टिने अंतरमां वाळीने, चैतन्यस्वभाव उपर मीट
मांडवा जेवुं छे. जीवनना ध्येयनी पण जीवोने खबर नथी, ने एम ने एम ध्येय वगर संसारमां
रखडी रह्या छे. अहीं तो जे जीव अंतरनी धगशथी चैतन्यने पोताना जीवननुं ध्येय बनाववा तैयार
थयो छे तेने आचार्यदेव भेदज्ञान करावीने चैतन्यध्येय बतावे छे.
६७. जुओ भाई, आठ–आठ वर्षनां बाळको पण आ वात समजी शके छे, ने चैतन्यने पोतानुं
ध्येय बनावीने तेमां लीनताथी परमात्मा थई जाय छे. नानी नानी उमरना सुंदर राजकुमारो
भगवाननी सभामां जाय छे ने भगवाननी वाणीमां चिदानंद तत्त्वनी वात सांभळता अंतरमां
ऊतरी जाय छे: अहो! आवुं अमारुं चिदानंद तत्त्व! तेने ज ध्येय बनावीने हवे तो तेमां ज ठरशुं, हवे
अमे आ संसारमां पाछा नहीं जईए......आम वैराग्य पामीने माता पासे आवीने कहे छे के: हे
माता! अमने रजा आपो.....हवे अमे मुनि थईने चैतन्यना पूर्णानंदने साधशुं. माता! आ संसारमां
तुं अमारी छेल्ली माता छो, हवे अमे बीजी माता नहीं करीए.......आ संसारथी हवे अमारुं मन
विरक्त थयुं छे. हे माता! हवे तो चैतन्यना आनंदमां लीन थईने अमे अमारा सिद्धपदने साधशुं, ने
आ संसारमां फरीने नहि आवीए. आ रीते माता पासे रजा लईने, जेना रोमे रोमे