शिष्यने आत्मामांथी प्रश्न ऊठ्यो के प्रभो! संसारना कारणरूप ए अज्ञाननो नाश क््यारे थाय? मारो
आत्मा आ दुःखरूप अज्ञानप्रवृत्तिमांथी क््यारे छूटे?
शिष्य कहे छे के प्रभो!
–ए ज रीते अहीं, बंधनुं कारण जाणीने तेनाथी छूटवानो उपाय समजवानी जेने झंखना जागी
आ अज्ञान अने दुःख मटे? त्यारे श्रीगुरु तेने बंधनथी छूटवानो उपाय बतावतां कहे छे के:
दुःखनुं वेदन करी रह्या छे!–छतां तेना ज उपर मीट मांडीने बेठा छे.....चैतन्य उपर मीट मांडे तो तो
क्षणमां बधा दुःख छूटी जाय. चैतन्यनी रुचि करीने, द्रष्टिने अंतरमां वाळीने, चैतन्यस्वभाव उपर मीट
मांडवा जेवुं छे. जीवनना ध्येयनी पण जीवोने खबर नथी, ने एम ने एम ध्येय वगर संसारमां
रखडी रह्या छे. अहीं तो जे जीव अंतरनी धगशथी चैतन्यने पोताना जीवननुं ध्येय बनाववा तैयार
थयो छे तेने आचार्यदेव भेदज्ञान करावीने चैतन्यध्येय बतावे छे.
भगवाननी सभामां जाय छे ने भगवाननी वाणीमां चिदानंद तत्त्वनी वात सांभळता अंतरमां
ऊतरी जाय छे: अहो! आवुं अमारुं चिदानंद तत्त्व! तेने ज ध्येय बनावीने हवे तो तेमां ज ठरशुं, हवे
अमे आ संसारमां पाछा नहीं जईए......आम वैराग्य पामीने माता पासे आवीने कहे छे के: हे
माता! अमने रजा आपो.....हवे अमे मुनि थईने चैतन्यना पूर्णानंदने साधशुं. माता! आ संसारमां
तुं अमारी छेल्ली माता छो, हवे अमे बीजी माता नहीं करीए.......आ संसारथी हवे अमारुं मन
विरक्त थयुं छे. हे माता! हवे तो चैतन्यना आनंदमां लीन थईने अमे अमारा सिद्धपदने साधशुं, ने
आ संसारमां फरीने नहि आवीए. आ रीते माता पासे रजा लईने, जेना रोमे रोमे