Atmadharma magazine - Ank 193
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म: १९३
७४. समकिती–धर्मात्मा लडाईमां दुश्मन सामे बाण उपर बाण छोडता होय त्यारे पण तेनो
आत्मा खरेखर क्रोधरूपे थतो नथी पण ज्ञानरूपे ज थाय छे; ते वखते य आत्मा क्रोधरूपे थतो
प्रतिभासतो नथी पण ज्ञानरूपे ज थतो प्रतिभासे छे. –आ रीते बंनेने भिन्न भिन्न जाणतो थको ते
वखते ते ज्ञानपणे ज थाय छे, क्रोधपणे थतो नथी; भेदज्ञान एक क्षण पण खसतुं नथी, ज्ञान अने
क्रोधनी एकता जरा पण थती नथी. एटले, ज्ञानपणे परिणमतो ते ज्ञानी क्रोधपणे पण परिणमे छे–
एम कोई रीते सिद्ध थतुं नथी; केमके ज्ञाननुं जे परिणमन छे तेमां क्रोधादिनुं परिणमन नथी, स्वभाव
तरफ ढळती परिणतिमां विभावनुं कर्तृत्व होतुं नथी, स्वभावनी ज्यां रुचि छे त्यां विभावनी रुचि
होती नथी, स्वभाव साथे ज्यां एकता छे त्यां विभाव साथे एकता रहेती नथी. आ रीते स्वभाव
तरफ वळेलुं ज्ञान अने विभावरूप क्रोधादि, ए बंनेने अत्यंत भिन्नता छे. आवी भिन्नता होवाथी
भेदज्ञानी जीवने क्रोधादि साथेना कर्ताकर्मनी प्रवृत्ति होती नथी, एटले तेने बंधन पण थतुं नथी.
७प. अरे भाई! एक वार आवुं भेदज्ञान तो कर.....तो तने खबर पडे के धर्म शुं चीज छे!
विभावोथी भिन्नपणे तारा ज्ञानस्वभावनुं अंदरमां लक्ष करतां तने तारुं ज्ञान क्रोधादिथी जुदुं
अनुभवाशे अंतर्मुख अनुभवमां ‘हुं ज्ञान छुं’ एम प्रतिभासे छे, पण ‘हुं क्रोध छुं’ एम प्रतिभासतुं
नथी; केमके ज्ञानमां क्रोध नथी.
७६. ज्ञानमां रागादि परभाव पण नथी एटले ज्ञानमां तेमनुं पण कर्तृत्व नथी, तो पछी बाह्य
वस्तुना कर्तृत्वनी तो वात ज क््यां रही?
७७. प्रश्न:– ‘ज्ञानमां राग नथी’ एम कह्युं, तो जीवने ज्यांंसुधी राग होय त्यांसुधी ते ज्ञानी
नथी–एम थयुं?
उत्तर:– भाई, जे राग छे ते ज्ञानीने पोताना ज्ञानभावथी एकमेक नथी भासतो पण जुदो ज
भासे छे, एटले ‘ज्ञानी’ खरेखर रागमां नथी पण ज्ञानभावमां ज छे.–आ वात बराबर समजाय तो
तने खबर पडे के ज्ञानी शुं करे छे! राग वखते ज्ञानी राग करे छे के ज्ञान करे छे तेनी खबर अज्ञानीने
नहि पडे, केमके तेने पोताने राग अने ज्ञाननी भिन्नतानुं भान नथी. समकितीने राग थतो होवा छतां
ते ज वखते ज्ञानमां एकतारूपे परिणमन होवाथी, ने रागमां एकतारूपे नहि परिणमता होवाथी, ते
ज्ञानी ज छे.
७८. अज्ञानीने राग वखते आत्मा ते रागरूपे ज प्रतिभासे छे, ते रागथी जुदुं ज्ञान तेने
प्रतिभासतुं नथी, तेथी अज्ञानभावे ते रागादिना कर्तापणे ज परिणमे छे.
–आ रीते भेदज्ञानी अने अज्ञानीनी अंर्तपरिणतिमां मोटुं अंतर छे.
७९. भेदज्ञानीने सतत ज्ञानभवन छे, अज्ञानीने सदा क्रोधादिनुं भवन छे; क्रोध वखते तेनाथी
जुदो कोई आत्मा अज्ञानीने प्रतिभासतो नथी एटले ते तो क्रोधरूपे ज परिणमे छे. ज्ञानीने क्रोध
वखतेय पोतानो ज्ञान स्वभावी आत्मा तेनाथी जुदो प्रतिभासे छे, तेथी ते क्रोध वखतेय ज्ञानरूपे ज
परिणमता थका ते ज्ञानी ज छे.
८०. –आवुं भेदज्ञान करवुं ते अपूर्व छे; एक क्षणनुं भेदज्ञान सिद्धपदना सन्देशा ने मोक्षना
कोलकरार आपे छे. भेदज्ञान थतां अनंतसंसार तूटीने अल्पकाळमां मोक्ष थाय छे.
(चालु)