आमंत्रण आपे छे: शेनुं आमंत्रण आपे छे? शांतरसनो स्वाद लेवानुं.
पोताना अंतरमां शांतरसनो समुद्र उल्लसी रह्यो छे तेना अनुभवपूर्वक
धर्मात्मा–संत जगतना बधा जीवोने आमंत्रण आपे छे के हे जगतना
जीवो! आवो...आवो...अहीं भगवान ज्ञानसमुद्रमां शांतरस ऊछळी रह्यो
छे...तेमां मग्न थईने तेनो अनुभव करो. दूधपाक–जांबु वगेरेनो रस ते तो
जड छे, तेना अनुभवमां तो अशांति छे, ने ते तो अनंतवार भोगवाई
गयेली एठ छे...माटे एवा जडना स्वादनी रुचि छोडो...ने आ चैतन्यना
शांतरसने आस्वादो. आ शांतरसनो दरियो एटलो बधो ऊछळ्यो छे के
आखा लोकने पोतामां डुबाडी द्ये...माटे जगतना बधाय जीवो एकसाथे
आवीने आ शांतरसमां निमग्न थाओ...बधाय जीवो आवो...कोई बाकी
रहेशो नहीं–आम आखा जगतने आमंत्रण आपीने खरेखर तो धर्मात्मा
पोतानी शांतरसमां लीन थवानी भावनाने मलावे छे.
आलोकमुच्छलति शांतरसे समस्ताः।
आप्लाव्य विभ्रमतिरस्करिणीं भरेण
प्रोन्मग्न एष भगवान अवबोधसिंधुः ।।३२।।
आचार्य भगवाने मोक्षमार्ग खुल्लो करीने समजाव्यो...शांतरसनो समुद्र देखाड्यो...ते समजीने
ज्ञानसमुद्र भगवान आत्मा विभ्रमरूप आडी चादरने समूळगी दूर करीने पोते सर्वांग प्रगट थयो छे;
तेथी हवे समस्त लोक तेना शांतरसमां एकीसाथे ज मग्न थाओ. आ शांतरस आखा लोकपर्यंत
ऊछळी रह्यो छे.