जाने सो करता नहि होइ, करे सो जाने नहीं कोइ।
परिपूर्ण तीखासनी ताकात छे, तेम दरेक आत्मामां परिपूर्ण सर्वज्ञतानी ताकात छे, तेने
ओळखीने तेमां एकाग्रतावडे सर्वज्ञता ने पूर्णानंद प्रगटे छे. सर्वज्ञता के पूर्णानंद क्यांय
बहारथी के रागमां एकाग्रताथी प्रगटता नथी. मारा स्वभावमां ज पूर्णानंदने सर्वज्ञता
प्रगटवानी ताकात छे–एवा अंतर्विश्वासथी सम्यग्दर्शन प्रगट करतां ज अनंतभवनुं मूळ कपाई
जाय छे; जेम झाडनुं मूळ कपाई गया पछी डाळ–पान लांबो वखत रहेता नथी पण अल्पकाळमां
ज सुकाई जाय छे, तेम सम्यग्दर्शन थतां ज्यां संसारनुं मूळ छेदाई गयुं त्यां धर्मीने लांबो संसार
रहेतो नथी; ते अल्पकाळमां मुक्ति पामे छे. आवुं सम्यग्दर्शन दरेक जीवे करवा जेवुं छे.
जीव खरेखर ‘धर्म–दीवाकर’ छे...ते ज ‘ज्ञानदीवाकर’
छे; तेने आत्माना असंख्य प्रदेशे ज्ञानदीवडा प्रगटी
गया छे ने अज्ञान–अंधकारनो नाश थई गयो छे.
हजी तो जेने ज्ञानप्रकाशी आत्मानुं भान पण नथी,
आत्मामां ज्ञानदीवडो प्रगटाव्यो नथी ने अज्ञाननुं
अंधारुं टाळ्युं नथी ते ‘धर्मदीवाकर’ शेनो?
चिदानंदतत्त्वमां सम्यक्श्रद्धानी चीनगारीवडे जेमणे
अतीन्द्रिय ज्ञानथी झगमगता दीवडा प्रगटाव्या
एवा धर्मात्मा ज खरेखरा धर्मदीवाकर छे.