Atmadharma magazine - Ank 194
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : १९४
करे करम सोही करतारा, जो जाने सो जाननहारा;
जाने सो करता नहि होइ, करे सो जाने नहीं कोइ।
भगवान कहे छे: अरे जीव! तारा ज्ञानस्वभावनी वात एक वार सांभळ तो खरो!
धर्मात्मा जाणे छे के हुं गमे त्यां होउं पण ‘हुं तो शुद्ध चिद्रूप छुं–‘शुद्धचिद्रूपोऽहं;’ शुद्ध
चैतन्यस्वरूप सिवाय बीजुं कांई पण मारुं नथी. जेम लींडीपीपरना एकेक दाणामां चोसठपोरी
परिपूर्ण तीखासनी ताकात छे, तेम दरेक आत्मामां परिपूर्ण सर्वज्ञतानी ताकात छे, तेने
ओळखीने तेमां एकाग्रतावडे सर्वज्ञता ने पूर्णानंद प्रगटे छे. सर्वज्ञता के पूर्णानंद क्यांय
बहारथी के रागमां एकाग्रताथी प्रगटता नथी. मारा स्वभावमां ज पूर्णानंदने सर्वज्ञता
प्रगटवानी ताकात छे–एवा अंतर्विश्वासथी सम्यग्दर्शन प्रगट करतां ज अनंतभवनुं मूळ कपाई
जाय छे; जेम झाडनुं मूळ कपाई गया पछी डाळ–पान लांबो वखत रहेता नथी पण अल्पकाळमां
ज सुकाई जाय छे, तेम सम्यग्दर्शन थतां ज्यां संसारनुं मूळ छेदाई गयुं त्यां धर्मीने लांबो संसार
रहेतो नथी; ते अल्पकाळमां मुक्ति पामे छे. आवुं सम्यग्दर्शन दरेक जीवे करवा जेवुं छे.
ज्ञान दीवडा
ज्ञानने अंतर्मुख करीने आत्मामां जेणे प्रकाश
कर्यो...ज्ञानना दीवडाथी आत्माने प्रकाशित कर्यो ते
जीव खरेखर ‘धर्म–दीवाकर’ छे...ते ज ‘ज्ञानदीवाकर’
छे; तेने आत्माना असंख्य प्रदेशे ज्ञानदीवडा प्रगटी
गया छे ने अज्ञान–अंधकारनो नाश थई गयो छे.
हजी तो जेने ज्ञानप्रकाशी आत्मानुं भान पण नथी,
आत्मामां ज्ञानदीवडो प्रगटाव्यो नथी ने अज्ञाननुं
अंधारुं टाळ्‌युं नथी ते ‘धर्मदीवाकर’ शेनो?
चिदानंदतत्त्वमां सम्यक्श्रद्धानी चीनगारीवडे जेमणे
अतीन्द्रिय ज्ञानथी झगमगता दीवडा प्रगटाव्या
एवा धर्मात्मा ज खरेखरा धर्मदीवाकर छे.