Atmadharma magazine - Ank 194
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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मागशर : २४८६ : १३ :
–परम शांति दातारी–
अध्यात्म भावना
भगवान श्री पूज्यपादस्वामीरचित ‘समाधिशतक’ उपर परमपूज्य सद्गुरुदेव
श्री कानजीस्वामीनां अध्यात्मभावना भरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार
(‘आत्मधर्म’ नी अध्यात्मरस भरपूर सहेली चालु लेखमाळा)

३८मी गाथामां कह्युं के जेनुं चित्त चैतन्यमां स्थिर नथी तेने ज मान–अपमानना विकल्पो
सतावे छे; परंतु जेनुं चित्त चैतन्यमां स्थिर छे तेने मान–अपमानना विकल्पो थता नथी. हवे ते मान–
अपमान संबंधी विकल्पो कई रीते दूर करवा? ते कहे छे–
यदा मोहात्प्रजायेते रागद्वेषौ तपस्विनः।
तदैव भावयेत्स्वस्थमात्मानं शाम्यतः क्षणात् ।।३९।।
मान–अपमान संबंधी रागद्वेष थवानो प्रसंग आवतां, ते ज क्षणे बहारथी चित्तने पाछुं
वाळीने अंतरमां स्वस्थ आत्माने–शुद्ध आत्माने भाववो. शुद्ध आत्मानी भावनाथी क्षणमात्रमां
रागद्वेष शांत थई जाय छे.
पहेलां तो रागादिथी रहित, ने परथी रहित शुद्ध ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानी ओळखाण करवी
जोईए, पछी विशेष समाधिनी आ वात छे. शुद्ध आत्मानी भावना सिवाय रागद्वेष टाळवानो ने
समाधि थवानो बीजो कोई उपाय नथी. अंतर्मुख थईने चैतन्यने स्पर्शतां ज रागादि अलोप थई जाय
छे...ने उपशांत रसनी ज धारा वहे छे. आनुं नाम वीतराग समाधि छे.
(२४८२ जेठ वद ११)
राग–द्वेष, क्रोध–मान–माया–लोभनी उत्पत्तिनुं मूळ कारण अज्ञान छे. ज्यां मूळमां अज्ञान
पडयुं छे त्यां राग–द्वेषादि विभावनुं झाड फाल्या विना रहेशे नहि. भेदविज्ञानवडे देह अने आत्माने
भिन्न भिन्न जाणीने आत्मानी भावना करवी ते ज राग–द्वेषादि विभावोना नाशनो उपाय छे.
समकितीने राग–द्वेषना काळे पण तेनाथी भिन्न चैतन्यनुं भेदज्ञान तो साथे वर्ती ज रह्युं छे. ते
भेदज्ञान उपरांत, अस्थिरताना रागद्वेष टाळवा माटे ज्ञानी चैतन्यस्वभावनुं चिंतन करे छे.
अरे! पहेलां अंदरमां आत्मानी खटक जागवी जोईए के मारा आत्माने कई रीते शांति थाय!!
मारा आत्माने कोण शरणरूप छे!! संतो कहे छे के आ देह के राग कोई तारुं शरण नथी. प्रभो! अंदर
एक समयमां ज्ञानानंदथी परिपूर्ण भरेलो तारो आत्मा ज तने शरण छे; तेने ओळख भाई!
बे सगा भाई होय, बेय नरकमां एक साथे होय, एक समकिती होय ने बीजो मिथ्याद्रष्टि
होय! त्यां समकितीने तो नरकनी घोर प्रतिकूळतामां पण चैतन्यना आनंदनुं अंशे वेदन पण साथे
वर्ती रह्युं छे. मिथ्याद्रष्टि एकला संयोगोनी सामे जोईने दुःखनी वेदनामां तरफडे छे...तेना भाईने पूछे
छे के ‘अरे भाई! कोई