Atmadharma magazine - Ank 194
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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मागशर : २४८६ : १प
परंतु पुरुषार्थना अपूर्व अवसरे ज्यारे ते सम्यग्दर्शन पामे छे अने तेनुं विवेकज्ञान जागृत थाय छे
त्यारे ते पोताना उपशांत चैतन्य–उपवनमां निजानंदमय सुधारसनुं पान करवा लागे छे, अने बाह्य
ईन्द्रियविषयोने अत्यंत नीरस, पराधीन अने हेय समजीने तेमनाथी अत्यंत उदासीन थई जाय छे.
वारंवार चैतन्यना अनुभवमां उपयोग जोडतां, बाह्य पदार्थो प्रत्येनो प्रेम सर्वथा छूटीने ते वीतराग
थई जाय छे, ने पछी पूर्ण परमानंद प्रगट करीने परमात्मा थई जाय छे. माटे कहे छे के हे मुमुक्षु! तुं
तारा चित्तना उपयोगने वारंवार तारा चैतन्यस्वरूपमां जोड.
जुओ, भावलिंगी संतमुनिने समाधिमरणनो अवसर होय, आसपास बीजा मुनिओ बेठा
होय...त्यां ते मुनिने कोईवार तृषाथी कदाच पाणी पीवानी जराक वृत्ति ऊठी जाय ने पाणी
मांगे...के...‘पाणी!’ त्यां बीजा मुनिओ तेने वात्सल्यथी संबोधे छे के अरे मुनि!! अंतरमां निर्विकल्प
रसना पाणी पीओ! अंतरमां अतीन्द्रिय आनंदना सागरमांथी आनंदना अमृत पीओ...ने आ
पाणीनी वृत्ति छोडो...अत्यारे समाधिनो अवसर छे...अनंतवार दरिया भराय एटला जळ
पीधां...छतां तृषा न छीपी...माटे ए पाणीने भूली जाओ...ने अंतरना निर्विकल्प अमृतनुं पान
करो...निर्विकल्प आनंदमां लीन थाओ...
निर्विकल्पसमुत्पन्नं ज्ञानमेव सुधारसम्।
विवेकमंजुलिं कृत्वा तत् पिबंति तपस्वीनः।।
ते मुनि पण तरत पाणीनी वृत्ति तोडीने निर्विकल्प थईने अतीन्द्रिय आनंदना अमृतने पीए
छे...ने ए रीते अखंड आराधनापूर्वक समाधिथी देह छोडे छे.
जिनवरनो मार्ग
* जिनवरनो मार्ग शुं छे?
निज आत्मामां रत थवुं ते जिनवरनो मार्ग छे.
* जिनवरना मार्गने पामीने पंडित शुं करे छे?
पंडित एटले भेदज्ञानी–धर्मात्मा, ते जिनवरना मार्गने
पामीने निज आत्मामां रत थाय छे.
* जे जीव रागमां रत थाय छे अर्थात् रागथी लाभ
माने छे ते जीव जिनमार्गने पाम्यो नथी; निज
आत्मामां जे रत थाय छे ते ज जिनमार्गने पाम्यो छे,
ने ते ज मोक्षने पामे छे. निज आत्मामां रत थया
सिवाय बीजो कोई जिनमार्ग के मोक्षमार्ग नथी.
* निज आत्मामां रत थईने शुद्ध रत्नत्रय प्रगट करवां
ते ज जिनमार्गमां कर्तव्य छे, रागादि भावो ते
जिनमार्गमां कर्तव्य नथी.
(–नियमसार कलश ९ ना प्रवचनमांथी.)