Atmadharma magazine - Ank 195
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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पोष: २४८६ : ११ :
एवा ज्ञानने (–प्रत्याख्यानस्वरूप ज्ञानने) ओळखी पण शकता नथी.
११७ पहेलां ज्ञानस्वभाव शुं चीज छे ते ओळखे तो सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान थतां ज अनंतो
बंध छूटी जाय छे; पछी जे अल्प बंध रहे छे ते पण ज्ञानथी जुदापणे ज रहेतो होवाथी तेने
गणतरीमां गणवामां आवतो नथी. अल्पकाळमां ज्ञान पोताना स्वरूपमां ठरतां ते अल्पबंध
पण छूटी जशे, ने आत्मा सर्वथा अबंध साक्षात् परमात्मा थई जशे.–आ रीते
चैतन्यस्वरूप आत्माने ओळखीने तेमां ज्ञाननी लीनता ते ज संसारनाशनो अने
परमात्मपदप्राप्तिनो एकमात्र अमोघ उपाय छे.
११८ भेदज्ञानी एम जाणे छे के हुं विज्ञानघन छुं; विभावो विभावोने जाणता नथी अने विभावो
मने पण जाणता नथी; हुं विभावोने जाणुं छुं अने मने पण जाणुं छुं, आ रीते स्व–परने
जाणनार विज्ञानघन हुं छुं. मारो विज्ञानघन स्वभाव विभावोथी जुदो ज छे.–आम
जाणनार भेदज्ञानी जीव विभावोथी पाछो वळीने स्वभावना श्रद्धा–ज्ञान–रमणतामां प्रवर्ते
छे, एटले के मोक्षमार्गमां वर्ते छे, तेथी तेने बंधन थतुं नथी.
११९ लोको बहारनी देहादिनी प्रवृत्ति उपरथी धर्मनुं माप काढे छे, पण भाई, आत्मानो धर्म ते
आत्माना भावमां होय के जडमां होय? देहथी भिन्न अने रागनी भिन्न एवा आत्माना
श्रद्धा–ज्ञान–गृहस्थपणामां थई शके छे. आचार्यदेव कहे छे के अहो! ज्ञानघन आत्मानी श्रद्धा
थतां अनंता कर्मोनी निर्जरा थई जाय छे; अने पछी तेमां स्थिरता थतां केवळज्ञान थाय छे;
आवो भेदज्ञाननो महिमा छे.
१२० शुभभावथी स्वर्ग मळे अने अशुभथी नरकादि मळे, परंतु बंने भावो छे तो बंधनरूप;–
एनो अर्थ एवो नथी के पुण्यभाव छोडीने पापभाव करवो.–एवी तो वात होय नहि, एवुं
तो कोई ज्ञानीनुं वचन होय ज नहि.
–परंतु पुण्यभाव करतां करतां धर्म थशे एम कोई दिवस बन्युं नथी, बनतुं नथी, बनशे पण
नहि, पुण्यपापना भाव ते कांई स्वभाव साथे जोडाणनुं कार्य नथी, ते तो कर्म साथे जोडाणनुं
कार्य छे, अने दुःखनुं कारण छे.
१२१ पाप के पुण्य ए बन्ने भावो आकुळता उपजावनारा छे, वर्तमान समयमां पण ते भावो
दुःखरूप छे अने भविष्यमां पण ते दुःखनां ज कारणो छे; त्यारे भगवान आत्मा तो सदाय
निराकुळस्वभावी छे, आनंदस्वरूपी छे, तेना अवलंबनथी आनंदनो ज अनुभव थाय छे, ते
दुःखनुं कारण नथी पण सुखनुं ज कारण छे, अने तेना सुखकार्यने कर्म साथे जरा पण संबंध
नथी. रागादि आस्रवो ते कर्म साथे संबंधवाळा छे.–आ रीते आत्मा अने आस्रवोने
जुदापणुं छे. आवुं जुदापणुं जाणीने हे जीव! तुं रागादिथी निवृत्त था....ने अंतर्मुख थईने
तारा ज्ञानस्वभावमां ज प्रवृत्ति कर. आम करवाथी तारा भवबंधन तूटी जशे, ने तने तारा
सुखनो अनुभव थशे.
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