Atmadharma magazine - Ank 195
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 16 of 21

background image
पोष: २४८६ : १प :
(श्री प्रवचनसार उपरना प्रवचनोमांथी; गाथा २२०–२२१ तथा १९१ थी १९प)

प्रश्न:– मोक्षमार्गी मुनिवरो केवा होय छे?
उत्तर:– जेणे सम्यग्दर्शन ज्ञान–चारित्ररूप शुद्ध परिणति प्रगट करीने अंतरमां तो अशुद्ध
उपयोगने छोड्यो छे, अने बहारमां समस्त परिग्रहने छोड्यो छे,–आवा मोक्षमार्गी मुनिवरो होय छे.
प्रश्न:– वस्त्रादिनुं ग्रहण होय त्यां मुनिदशा होय के नहीं?
उत्तर:– वस्त्रादिनुं ग्रहण होय त्यां मुनिदशा होय नहीं, ए नियम छे.
प्रश्न:– वस्त्रादिनुं ग्रहण होय त्यां सम्यग्दर्शन होय के नहीं.
उत्तर:– वस्त्रादिनुं ग्रहण होय त्यां सम्यग्दर्शन होई शके.
प्रश्न:–वस्त्रादि परिग्रह सहित मुनिपणुं माने तेने सम्यग्दर्शन होय?
उत्तर:– ना, वस्त्रादि परिग्रह सहित जे मुनिपणुं माने तेने सम्यग्दर्शन होतुं नथी, केम के ते
कुगुरुने गुरु माने छे. देव–गुरु–शास्त्रनी व्यवहारश्रद्धा पण तेने नथी.
प्रश्न:– बहारमां भले वस्त्रादि होय पण अंतरमां शुद्ध परिणति प्रगटी होय, तो मुनिपणुं केम न होय?
उतर:– अंतरमां जेने मुनिदशाने योग्य शुद्धपरिणति प्रगटी होय तेने अशुद्ध परिणति छूटी गई
होय, अने अशुद्ध परिणति छूटी जतां तेना निमित्तरूप वस्त्रादिनुं ग्रहण पण त्यां सहेजे छूटी ज गयुं
होय–एवो नियम छे. अने ज्यां वस्त्रादिनुं ग्रहण होय त्यां ते प्रकारनी अशुद्धपरिणति पण होय ज छे,
तेथी तेने मुनिपणुं होतुं नथी. अने छतां जो मुनिपणुं माने तो सम्यग्दर्शन पण होतुं नथी.
आ रीते ज्यां बाह्य परिग्रहनुं ग्रहण छे त्यां अंतरंग अशुद्धि पण छूटी नथी,–फोतरावाळा
चोखाना द्रष्टांते.
प्रश्न:– चोखानुं द्रष्टांत कई रीते छे?
उत्तर:– जेम बहारना फोतरांना सद्भावमां चोखाने अंदरनी रताश छूटी नथी, तेम ज्यां बाह्य
परिग्रहनो सद्भाव छे त्यां अंदरमां ते संबंधी अशुद्ध परिणति छूटी नथी. जे चोखाने अंदरनी रताश
छूटी गई होय तेने बहारनुं फोतरुं पण छूटी ज गयुं होय, तेम जे आत्माने अंतरमांथी रागरूपी
रताश छूटी गई होय तेने बहारमां वस्त्रादि परिग्रह पण छूटी ज गयो होय. हजी एम बने के चोखानुं
उपरनुं फोतरुं छूटयुं होय पण अंदरनी रताश न छूटी होय; तेम बहारथी वस्त्रादि परिग्रह छूटी गयो
होय पण अंदरमां मोह न छूटयो होय–एम बनी शके; परंतु अंदरथी जेनो मोह छूटयो तेने बहारमां
वस्त्रादि परिग्रह होय–एम तो कदी बने ज नहीं.
प्रश्न:– वस्त्रादि तो परद्रव्य छे, ने परद्रव्य तो कोई आत्माने नडतुं नथी–एवो सिद्धांत छे, तो
पछी जेने वस्त्रादिनुं ग्रहण होय तेने मुनिपणुं न होय–एम शा माटे कहो छो?
उत्तर:– ज्यां वस्त्रादि परिग्रहनो सद्भाव छे त्यां मुनिपणुं होतुं नथी, केम के, ते वस्त्रादि परिग्रहना