प्रश्न:– मोक्षमार्गी मुनिवरो केवा होय छे?
उत्तर:– जेणे सम्यग्दर्शन ज्ञान–चारित्ररूप शुद्ध परिणति प्रगट करीने अंतरमां तो अशुद्ध
उत्तर:– वस्त्रादिनुं ग्रहण होय त्यां मुनिदशा होय नहीं, ए नियम छे.
प्रश्न:– वस्त्रादिनुं ग्रहण होय त्यां सम्यग्दर्शन होय के नहीं.
उत्तर:– वस्त्रादिनुं ग्रहण होय त्यां सम्यग्दर्शन होई शके.
प्रश्न:–वस्त्रादि परिग्रह सहित मुनिपणुं माने तेने सम्यग्दर्शन होय?
उत्तर:– ना, वस्त्रादि परिग्रह सहित जे मुनिपणुं माने तेने सम्यग्दर्शन होतुं नथी, केम के ते
उतर:– अंतरमां जेने मुनिदशाने योग्य शुद्धपरिणति प्रगटी होय तेने अशुद्ध परिणति छूटी गई
होय–एवो नियम छे. अने ज्यां वस्त्रादिनुं ग्रहण होय त्यां ते प्रकारनी अशुद्धपरिणति पण होय ज छे,
तेथी तेने मुनिपणुं होतुं नथी. अने छतां जो मुनिपणुं माने तो सम्यग्दर्शन पण होतुं नथी.
उत्तर:– जेम बहारना फोतरांना सद्भावमां चोखाने अंदरनी रताश छूटी नथी, तेम ज्यां बाह्य
छूटी गई होय तेने बहारनुं फोतरुं पण छूटी ज गयुं होय, तेम जे आत्माने अंतरमांथी रागरूपी
रताश छूटी गई होय तेने बहारमां वस्त्रादि परिग्रह पण छूटी ज गयो होय. हजी एम बने के चोखानुं
उपरनुं फोतरुं छूटयुं होय पण अंदरनी रताश न छूटी होय; तेम बहारथी वस्त्रादि परिग्रह छूटी गयो
होय पण अंदरमां मोह न छूटयो होय–एम बनी शके; परंतु अंदरथी जेनो मोह छूटयो तेने बहारमां
वस्त्रादि परिग्रह होय–एम तो कदी बने ज नहीं.