: १६ : आत्मधर्म: १९प
सद्भावमां प्रथम तो ममत्वपरिणामरूप मूर्छा होय छे, बीजुं ते वस्त्रादिने धोवा–साचववा वगेरे प्रकारे
ते परिग्रहनी व्यवस्थाना परिणामरूप आरंभ पण होय छे;–आ रीते मूर्छा अने आरंभना सद्भावमां
मुनिपणुं क््यांथी होय? अथवा ते परिग्रहवाळा जीवने परद्रव्यमां प्रवृत्तिरूप अशुद्धता छे अने ते
अशुद्धतावडे शुद्धात्मस्वरूपनी हिंसा थाय छे, तेथी तेने शुद्धात्मस्वरूपनी हिंसारूप असंयम जरूर होय
छे; ते असंयमीने मुनिपणुं क््यांथी होय? –न ज होय.
प्रश्न:– वस्त्रादि परिग्रह केवो छे?
उत्तर:– वस्त्रादि परिग्रह आत्माने परद्रव्य छे.
प्रश्न:– जेणे वस्त्रादि परिग्रह ग्रहण कर्यो होय ते जीव केवो छे?
उत्तर:– जेणे वस्त्रादि परिग्रहनुं ग्रहण कर्युं छे ते जीव परद्रव्यमां रत छे.
प्रश्न:– परद्रव्यमां रत जीवने साधुंपणुं केम न होय?
उत्तर:– जे जीव परद्रव्यमां रत होय ते स्वद्रव्यरूप शुद्धात्माने कई रीते साधे? परद्रव्यमां
रतपणाने लीधे तेने शुद्धात्मद्रव्यना साधकपणानो अभाव होय छे, तेथी तेने साधुपणुं होतुं नथी.
प्रश्न:– मुनिपणामां परिणमनार जीव केवो होय छे?
उत्तर:– प्रथम तो, मारो शुद्ध आत्मा ज मने धु्रव छे, ए सिवाय बधाय परद्रव्योनो संयोग मने
अधु्रव छे, तेथी शुद्धात्मा ज मारे उपलब्ध करवा जेवो छे–एम निर्णय करीने शुद्धात्मामां प्रवृत्ति द्वारा जेणे
मिथ्यात्वनो नाश कर्यो छे, अने पछी ते शुद्धात्मामां ज प्रवृत्तिद्वारा रागद्वेषनो पण नाश करीने जे जीव
सुखदुःखमां समभावी थयो छे ते जीव श्रामण्यमां परिणमे छे, एटले के ते मोक्षमार्गी मुनिराज छे.
प्रश्न:– मोक्षमार्गी मुनिवरोने शुं उपलब्ध करवा जेवुं छे?
उत्तर:– मोक्षमार्गी मुनिवरोने पोतानो शुद्ध आत्मा ज उपलब्ध करवा जेवो छे. शुद्धात्मानी
उपलब्धिथी ज मोक्षमार्ग होय छे.
प्रश्न:– शुद्धात्मानी उपलब्धि कई रीते थाय छे?
उत्तर:– हुं परनो नथी, पर मारां नथी, हुं एक ज्ञान छुं, शुद्धज्ञान ज मारुं स्व छे–आम
स्वपरने अत्यंत भिन्न जाणीने जे जीव परद्रव्यथी भिन्न पोताना शुद्धात्माने ध्यानमां ध्यावे छे तेने
शुद्धात्मानी उपलब्धि थाय छे. आ शुद्धात्मानी उपलब्धिनी रीत छे. मोक्षार्थी जीव आ रीते पोताना
शुद्धात्माने ज उपलब्ध करे छे.
प्रश्न:– शुद्धात्मानी उपलब्धिथी शुं थाय छे?
उत्तर:– शुद्धात्मानी उपलब्धिथी मोहनो क्षय थईने मोक्षना अक्षयसुखनी प्राप्ति थाय छे.
आ रीते शुद्धात्मानी उपलब्धिवडे मोक्षमार्गी मुनिवरो मोहनो क्षय
करीने मुक्ति पामे छे. एवा मुनिवरोने अमारा नमस्कार हो.
स म कि ती–हं स
आत्माना चैतन्य सरोवरना शांतजळमां केलि करनार समकिती हंसने चैतन्यना शांतरस
सिवाय बहारमां पुण्य पापनी वृत्तिनी के ईंद्रियविषयोनी रुचि ऊडी गई छे; चैतन्यना शांत–
आनंदरसनो एवो निर्णय (वेदन सहित) थई गयो छे के बीजा कोई रसना वेदनमां तेने स्वप्नेय
सुख लागतुं नथी. आवो समकिती–हंस निरंतर शांतरसना सरोवरमां केली करे छे.