पोष: २४८६ : ७ :
बंधनथी छूटकारानो
उपाय बतावीने
आचार्यदेव शिष्यनी
जिज्ञासा तृप्त करे छे
(श्री समयसार गा. ६९ थी ७२ उपरनां प्रवचनोनुं दोहन: गतांकथी चालु)
आत्मानो स्वभाव, अने रागादि विभाव, ए
बंनेनुं जुदापणुं जाणीने हे जीव! तुं रागादिथी निवृत्त
था...ने अंतर्मुख थईने तारा ज्ञानस्वभावमां ज प्रवृत्ति
कर. आम करवाथी तारो भवबंधन तूटी जशे, ने तने
तारा सुखनो अनुभव थशे.
९२ *मारो आत्मा पवित्र स्वभावी छे, आस्रवो अशुचीरूप छे.
* मारो आत्मा स्वपरप्रकाशक ज्ञानस्वभावी छे, आस्रवो तेनाथी विपरीत एटले के स्वपरने
नहि जाणनार छे, तेओ तो पोताथी भिन्न एवा बीजावडे जणाय छे; आस्रवोथी जुदुं एवुं
ज्ञान ज तेने जाणे छे.
* मारो आत्मा सहजसुखस्वभावी छे, तेमां दुःखनुं नाम पण नथी, आस्रवो तो आकुळता–
जनक होवाथी दुःखनां कारण छे, तेमनामां शांति नथी.
–आवुं जाणनारुं ज्ञान शुद्धआत्मामां प्रवर्तीने आस्रवोथी निवृत्त थई जाय छे.
९३ *शुद्ध आत्माने जाणे अने तेमां ज्ञाननी प्रवृत्ति न थाय एम कदी बने नहि. ए ज रीते,
आस्रवोने दुःखरूप जाणे अने छतां ज्ञान तेमां ज लीनपणे प्रवर्ते–ने तेनाथी निवृत्त न थाय–
एम कदी बने नहीं. क्रोधादिथी छूटुं पड्या विना अने स्वभावसन्मुख थईने तेमां एकता
कर्या विना खरेखर आत्माने के आस्रवोने जाणी शकाता नथी.
९४ ज्ञातापणुं अने कर्तापणुं एक साथे होतुं नथी, ते आ प्रमाणे: आत्मा अने आस्रवोना भिन्न
भिन्न स्वरूपनो जे ज्ञाता छे ते रागादिनो कर्ता नथी, अने जे रागादिनो कर्ता छे ते आत्मा
अने आस्रवोनी भिन्नतानो ज्ञाता नथी. आ रीते जे ज्ञाता छे ते कर्ता नथी, अने जे कर्ता छे
ते ज्ञाता नथी.–
करे करम सोई करतारा,
जो जाने सो जाननहारा;
जाने नहि करता जो सोई,
जाने सो करता नहि होई
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