Atmadharma magazine - Ank 195
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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जे ज्ञाता छे तेने कर्मबंधन थतुं नथी; जे रागादिनो कर्ता छे तेने ज कर्मबंधन थाय छे.
९प प्रश्न:– तो पछी ज्ञानी शेनोय कर्ता छे ज नहीं?
उत्तर:– ज्ञानी पोतानी सम्यक्त्वादि निर्मळ पर्यायोरूपे परिणमतो थको तेनो कर्ता छे, अने ते
निर्मळपर्याय तेनुं कर्म छे. आ रीते तेने कर्ताकर्मनी एकता छे. निर्मळपर्यायथी बहारना बीजा
कोई कार्य साथे ज्ञानीने एकता नथी तेथी ज्ञानी तेनो कर्ता नथी. राग पण निर्मळपर्यायथी
बहार छे, ज्ञानी तेनो पण कर्ता नथी.
९६ ज्यारे पोताना निर्दोष स्वभावनुं अने विकारीभावनुं भेदज्ञान करीने जीव पोताना स्वभावमां
प्रवर्ते छे त्यारे ते अबंध थाय छे एटले के तेने बंधन थतुं नथी; अने ज्यांसुधी विकारीभावने
पोताना मानीने तेमां प्रवर्ते छे त्यांसुधी तेने बंधन थाय छे, मुक्ति थती नथी.
९७ अनंतकाळथी जीवे बधुं कर्युं छे पण विकारीभावथी छूटा पडवानो प्रयत्न कदी कर्यो नथी.
अविकारी अबंधस्वरूप आत्माने समज्ये ज मोक्षनो पंथ प्रगटे छे. स्वभाव अने विभावनुं
भेदज्ञान ते ज मोक्षने साधवानी दोरी छे, भेदज्ञान थतांवेंत मोक्षने साधवानी दोरी हाथमां
आवे छे, एटले के आत्मामां मोक्षनी निःशंकता थई जाय छे.
९८ जुओ भाई, आ अपूर्व सत्य वात छे. दुनियाना घणा जीवो न माने के विरोध करे तेथी कांई
‘सत्’ ते असत् न थई जाय; अने दुनियाना घणा जीवो माने तेथी कांई ‘असत्’ ते सत् न
थई जाय. दुनिया तो अनादिथी ऊंधे मार्गे छे ज, ते ऊंधुंं कहे ज; परंतु ज्ञानी पोताना अंतरमां
सत्यमार्गमां निःशंक छे, दुनियाने ताबे थईने ते बीजुं माने नहीं. संसारमां रखडनार जीवोना
अने मोक्षने साधनार जीवोना रस्ता जुदा ज होय, संसारमार्गी अने मोक्षमार्गी ए बंनेना
रस्ता एकबीजाथी उलटा ज होय, उलटा न होय तो संसार–मोक्ष ज न होय.
९९ स्वभाव अने विभावनुं भेदज्ञान करीने जेटलो स्वभावमां रोकाणो तेटलो आत्मा,
तेटलो धर्म, अने तेटलुं ज जिनशासन छे; ए सिवाय रागद्वेषमां रोकावुं ते धर्म नथी, ते
आत्मा नथी, ते जिनशासन नथी, परंतु ते अधर्म छे, अनात्मा छे, विभाव छे, आस्रव
छे, बंधन छे, संसार छे.
१०० ज्यारे जीव पोताना स्वभावना श्रद्धा–ज्ञान–आचरणरूपे परिणमे छे त्यारे तेने राग–द्वेष–क्रोधादि
भावो पोतामां थता देखाता नथी; ‘हुं ज्ञान छुं’ एवा वेदनमां एकाग्र थतां ‘हुं क्रोध छुं’ एवुं
वेदन थतुं नथी; आ रीते ज्ञान अने क्रोधादि भेगां नथी ज, भिन्न ज छे. जेणे भिन्न जाण्या ते
क्रोधादिनो कर्ता थतो नथी पण ज्ञाता ज रहे छे. ज्ञातापणुं पोतानो स्वभाव छे, अने क्रोधादि
पोतानो स्वभाव नथी एम भेदज्ञानथी बंनेने जुदा जाणीने, पोते ज्ञातापणे ज रहेतो थको
क्रोधादिथी जुदो ज परिणमे छे; ते क्रोधादिने पोताथी भिन्न जाण्या तेथी तेनो कर्ता थतो नथी.
१०१ पोतानी स्वभावपर्याय (सम्यग्दर्शनादि) ऊघाडुं तो ज खरो संतोष छे एम नहि मानतां
अज्ञानी जीव अशुभमांथी शुभ राग थाय तेमां ज संतोष मानी ल्ये छे, एटले शुभरागथी
ज ते संतोष मानी ल्ये छे, तेथी खरेखर तेने रागनो लोभ छे, ए अनंतानुबंधी लोभ छे.
१०२ रागनो ज्यां आदर छे त्यां वीतरागस्वभावनो अनादर छे. अने ज्यां वीतरागस्वभावनो
अनादर छे त्यां, ते वीतरागस्वभावने पामेला सर्वज्ञनो, तेने साधनारा साधुओनो, तेमज
तेनुं प्रतिपादन करनारा शास्त्रनो पण अनादर ते ऊंधा अभिप्रायमां सेवाई जाय छे.
वीतरागी देव–गुरु–शास्त्रनी आज्ञा तो वीतरागभावनी ज पोषक छे, तेने बदले जेणे
पोताना अभिप्रायमां रागनुं पोषण कर्युं तेणे खरेखर वीतरागनी आज्ञानुं उल्लंघन कर्युं छे.
बहारथी भले वीतरागना भक्ति–पूजा–बहुमाननो शुभभाव करतो होय परंतु अंतरमां
वीतरागस्वरूपना अज्ञानने लीधे ते पोताना अभिप्रायमां तो रागनुं ज सेवन ने रागना ज
भक्ति–पूजा–बहुमान करी रह्यो छे. आ ऊंधो अभिप्राय