Atmadharma magazine - Ank 196
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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महा : २४८६ : ९ :
–परम शांति दातारी–
अध्यात्म भावना
भगवान श्री पूज्यपादस्वामीरचित ‘समाधिशतक’ उपर परमपूज्य सद्गुरुदेव
श्री कानजीस्वामीनां अध्यात्मभावना
भरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार
बहिरात्मा शुं ईच्छे छे ने धर्मात्मा शुं ईच्छे छे ते हवे कहे छे–
शुभं शरीरं दिव्यांश्च विषयानभिवांछति।
उत्पन्नात्ममतिर्देहे तत्त्वज्ञानी ततश्च्युतिम्।।४२।।
अज्ञानीने देहमां ज आत्मबुद्धि होवाथी ते शुभ शरीरने अने स्वर्गना विषयभोगोने ज वांछे
छे, ने ज्ञानी तो शरीरथी ने विषयोथी छूटवा चाहे छे, बाह्य विषयोथी छूटीने अंतरना
चैतन्यस्वभावमां ज ठरवा मांगे छे.
जेने शुभरागनी भावना छे तेने ते रागना फळरूप स्वर्गना भोगनी ने शरीरनी ज
अभिलाषा छे; जेने पुण्यनी रुचि छे तेने जडनी रुचि छे, तेने आत्माना धर्मनी रुचि नथी.
दिव्यशक्तिवाळो अतीन्द्रिय आत्मा छे तेने भूलीने अज्ञानी जीव दिव्य शरीरने अने ईंद्रियविषयोने ज
वांछे छे. ज्ञानी तो रागादिनी वृत्तिने दुःखदायक जाणीने तेनाथी छूटवा चाहे छे.
शुभराग ते भोगनो हेतु छे; जे जीव शुभरागने धर्म मानीने श्रद्धे छे,–आदरे छे ते जीव
भोगहेतु धर्मने ज श्रद्धे पण मोक्षना हेतुभूत धर्मने ते जाणतो नथी. समयसारमां आचार्य भगवान
कहे छे के–
ते धर्मने श्रद्धे, प्रतित, रुचि अने स्पर्शन करे,
ते भोगहेतु धर्मने, नहि कर्मक्षयना हेतुने.
रागरहित ज्ञानचेतनामात्र जे परमार्थधर्म तेने तो अज्ञानीजीव श्रद्धतो नथी, परंतु भोगना
निमित्तरूप एवा शुभकर्मने ज धर्म मानीने ते श्रद्धे छे; तेथी खरेखर मोक्षना कारणरूप धर्मने ते नथी
आराधतो, परंतु स्वर्गादिना भोगना कारणरूप एवा रागने ज ते आराधे छे. अने जे धर्मात्मा छे ते
तो रागमां के रागना फळरूप विषयोमां कयांय स्वप्नेय सुख मानता नथी, रागथी पार एवा चिदानंद
स्वभावने ज तेओ आराधे छे; तेथी राग अने रागना फळरूप विषयोथी तो ते दूर थवा चाहे छे ने
रागरहित थईने अंर्तस्वभावमां एकाग्र थवा मांगे छे. चैतन्यना अतीन्द्रिय आनंद सिवाय जगतमां
कांई पण तेने प्रिय नथी. स्वर्गना दिव्यभोगोने पण ते पुद्गलनी रचना जाणे छे. चैतन्यना अचिंत्य
आनंद पासे ते बधाने तुच्छ जाणे छे, तेथी अंतर्मुख थईने ते पोताना ध्येयने सिद्ध करे छे.