भान नथी ने विषयोनी भावना छूटी नथी, तारो संसार जराय छूटयो नथी; ने धर्मात्माने अंतरमां
धर्मात्माने व्रत–तप न होवा छतां ते मोक्षमार्गी छे. छतां एने ताराथी हलका मानीने, ने पोताने तेनाथी
अधिक मानीने तुं मोक्षमार्गनी मोटी विराधना करी रह्यो छे.
अनुकूळतामां सुख लागे छे, एटले व्रत–तपमां तेने कलेश–बोजो लागे छे. घणा उपवास थाय त्यां घणो
कलेश लागे छे, ने ज्ञानी मुनिने तो आत्माना आनंदनी लीनतापूर्वक आहारादिनी ईच्छा तूटी जतां
सहेजे अनेक उपवासादि तप थई जाय छे. ज्ञानीने आत्माना आनंद सिवाय बहारना कोई पण
विषयोमां सुखबुद्धि नथी तेथी तेने तेनी भावना नथी. अज्ञानीने आत्माना आनंदनुं भान नथी एटले
अज्ञानीनी अंर्तभावनामां आकाश–पाताळनुं अंतर छे.ाा ४२ाा
तो आत्मामां छे, आत्मानी शक्तिओ कांई बहारमां
नथी; तो बहारमां शा माटे शोधवुं पडे?–अंतरमां
कहे छे के अरे जीव! तारो आत्मा असंख्यप्रदेशमां
अनंतशक्तिथी पूर्ण छे, तेनी सन्मुख जो...पोताथी ज
तारी परिपूर्णता छे; तारा स्वरूपमां एवी कई कमीना
छे के तारे बहार बीजा पासे शोधवुं पडे? तारा
स्वभावमां शी खोट छे के तुं बीजामां गोतवा जाय
छे? आत्मानी स्वभावशक्तिमां जे पूर्ण ज्ञान–आनंद–
कर्युं छे, कयांय बहारथी नथी लाव्या...तारा आत्मामां
पण अमारा जेवुं ज सामर्थ्य छे तेने तुं जाण...तेनो
विश्वास करीने तेनी सन्मुख था...एटले तारी
आत्मशक्तिमांथी परिपूर्ण ज्ञान–आनंद ने प्रभुता
खीली जशे. पोतामां ज जे चीज छे तेने बहारमां शा
माटे शोधवी पडे?