Atmadharma magazine - Ank 196
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : १९६
बंधनथी छूटकारानो उपाय बतावीने
आचार्यदेव शिष्यनी जिज्ञासा तृप्त करे छे.
(श्री समयसार गा. ६९ थी ७२ उपरनां
प्रवचनोनुं दोहन : गतांकथी चालु)
विदेहक्षेत्रमां आठ आठ वर्षनी बालिकाओ ने
राजकुमारो आवी आत्मप्रतीति करी रह्या छे.–केवी प्रतीति? के
गणधर भगवान जेवी. वाह! आठ वर्षनो बाळ होय...हजी तो
बाळपणाना खेल खेलतो होय...पण अंदर जुओ तो गणधर
जेवो विवेक आत्मामां वर्ततो होय! धन्य ए दशा!–एवी दशा
केम प्रगटे? तेनुं आ वर्णन छे.
(१२२) ज्ञानमात्रथी ज बंधनो निरोध थाय छे–एम आचार्यदेवे कह्युं; ते ज्ञान केवुं छे? के
क्रोधादि आस्रवोथी निवर्तेलुं छे. कारण के जो तेनाथी निवर्तेलुं न होय तो तेने आत्मा अने आस्रवोना
पारमार्थिक भेदज्ञाननी सिद्धि ज थई नथी. माटे क्रोधादि आस्रवोथी निवृत्तिनी साथे जे अविनाभावी छे
एवा ज्ञानथी ज बंधन अटके छे. शास्त्रो वांचीने के सांभळीने एकली धारणा करी जाय, पण अंर्त
स्वभावमां वळीने क्रोधादिथी जुदुं न परिणमे, तो एवा ज्ञानथी (जाणपणाथी) कांई बंधन अटकतुं
नथी, खरेखर ते ज्ञान ज नथी पण अज्ञान छे.
(१२३) आत्माना स्वभावनी ओळखाण–प्रतीत–अनुभव करीने क्रोधादि भावोथी जे जुदो
पडतो नथी, पाछो वळतो नथी, भेद पाडतो नथी तेने भेदज्ञाननी सिद्धि ज थती नथी. पहेलांनी माफक
क्रोधादिमां एकमेकपणे ज वर्त्या करे तो एवा ज्ञानने भेदज्ञान कोण कहे?
(१२४) कोई कहे के पहेलां भेदज्ञान थाय पछी क्रोधादिथी निवर्ते.–तो एम नथी. जे सम्यग्ज्ञान
प्रगटे छे ते क्रोधादिथी निवर्ततुं थकुं ज प्रगटे छे, एटले जे वखते सम्यग्ज्ञान प्रगटे छे ते ज वखते
क्रोधादिथी निवृत्ति थाय छे; आ रीते, भेदज्ञान थवानो अने क्रोधादिथी निवर्तवानो ए बंनेनो एक ज
काळ छे.
(१२प) कोई कहे के अमने भेदज्ञान थयुं छे पण हजी क्रोधादिथी भिन्नपणुं भास्युं नथी,–तो
एनी वात खोटी छे, तेने भेदज्ञान थयुं ज नथी.
बीजो कोई एम कहे के अमने क्रोधादिथी आत्मानुं जुदापणुं भास्युं छे पण हजी भेदज्ञान थयुं
नथी,–तो एनी वात पण खोटी छे, तेने क्रोधादिथी आत्मानुं भिन्नपणुं खरेखर भास्युं ज नथी.