Atmadharma magazine - Ank 196
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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महा : २४८६ : प :
कंई प्रतिकूळता आवे तो तारा प्रयत्नने छोडी न दईश, परंतु मरण जेटली प्रतिकूळता सहन करीने पण
तुं आत्मानो ताग लेजे...तेनो अनुभव करजे. मारे मारा आत्मामां ज जवुं छे तेमां वच्चे परनी
डखलगीरी केवी? प्रतिकूळता केवी? बहारनी प्रतिकूळतानो आत्मामां अभाव छे–एम उपयोगने
पलटावीने आत्मामां वाळ.–आम करवाथी पर साथे एकता–बुद्धिरूप मोह छूटी जशे...ने तने परथी
भिन्न तारुं चैतन्यतत्त्व आनंदना विलाससहित अनुभवमां आवशे.
३८मी गाथा सुधी परथी भिन्न शुद्धजीवनुं स्वरूप घणाघणा प्रकारे स्पष्ट करीने समजाववा छतां
जे नहि समजे अने देहादिने ज आत्मा मानशे; तेने आचार्यदेव कडक संबोधन करीने समजावशे के,
अमे आटलुं आटलुं समजाव्युं छतां जे जीव देहने–कर्मने तथा रागने ज आत्मानुं स्वरूप माने छे ते
जीव मूढ छे, अज्ञानी छे, पुरुषार्थहीन छे, परने ज आत्मा मानी मानीने ते आत्माना पुरुषार्थने हारी
बेठो छे. रे पशु जेवा मूढ! तुं समज रे समज! भेदज्ञान करीने तारा आत्माने परथी जुदो
जाण...रागथी जुदा चैतन्यनो स्वाद ले.
–आ रीते जेम माता बाळकने शिखामण आपे तेम आचार्यदेव शिष्यने अनेक प्रकारे समजावे
छे...तेमां तेना हितनो ज आशय छे.
आचार्यदेव कहे छे के भाई! जडनी क्रियामां तारो धर्म गोतवो मूकी दे. आ चैतन्यमां तारो धर्म
छे ते कोई दिवस जड थयो नथी. जड ने चैतन्य बंने द्रव्यना भागला पाडीने हुं तने कहुं छुं के आ
चैतन्यद्रव्य ज तारुं छे. माटे हवे जडथी भिन्न तारा शुद्ध चैतन्यतत्त्वने जाणीने तुं सर्व प्रकारे प्रसन्न
था...तारुं चित्त उज्जवळ करीने सावधान था...अने “आ स्वद्रव्य ज मारुं छे” एम तुं अनुभव कर.
अहा! आवुं चैतन्यतत्त्व अमे तने देखाडयुं...हवे तुं आनंदमां आव...प्रसन्न था!
जेम बे छोकरा कोई वस्तु माटे बाझे तो माता वच्चे पडीने भाग आपे छे ने समाधान करावे
छे. तेम अहीं आचार्यदेव जड–चेतनना भाग पाडीने, बाळक जेवा अज्ञानीने समजावे छे के ले, आ
तारो भाग! जो...आ चैतन्य छे ते तारो भाग छे ने आ जड छे ते जडनो भाग छे. तारो
चैतन्यभाग एवो ने एवो आखे आखो शुद्ध छे, तेेमां कांई बगडयुं नथी; माटे तारो आ चैतन्यभाग
लईने हवे तुं प्रसन्न था...आनंदित था...तारा मननुं समाधान करीने तारा चैतन्यने आनंदथी
भोगव...तेना अतीन्द्रिय सुखना स्वादनो अनुभव कर.
अज्ञानीनुं भेदज्ञान केम टळे, ने तेने चैतन्यना सुखनो अनुभव केम थाय, ते माटे आचार्यदेव
उपदेश आपे छे. कडक संबोधन करीने नथी कहेता पण कोमळ संबोधन करीने कहे छे के हे वत्स! शुं
आ जड देह साथे एकमेकपणुं तने शोभे छे? ना, ना. तुं तो चैतन्य छो...माटे जलदीथी जुदो था...तेनो
पाडोशी थईने तेनाथी भिन्न तारा चैतन्यने देख. दुनियानी दरकार छोडीने तारा चैतन्यने देख. जो तुं
दुनियानी अनुकूळता के प्रतिकूळता जोवा रोकाईश तो तारा चैतन्यभगवानने तुं नहीं जोई शके, माटे
दुनियानुं लक्ष छोडी तेनाथी एकलो पडी अंतरमां तारा चैतन्यने जो...अंतर्मुख थतां ज तने खबर
पडशे के चैतन्यनो केवो अद्भुत विलास छे!
हे बंधु! तुं चोरासीना अवताररूपी कूवामां पडयो छे, तेमांथी बहार नीकळवा माटे जगतना
गमे तेटला परिसहो के उपसर्गो आवे, मरण जेटलां कष्टो आवे, तोपण तेनी दरकार छोडीने तारा
चैतन्यदळने देख. देह के शुभाशुभभावो ते मारा स्वघरनी चीज नथी पण तेओ तो मारा पाडोशी छे,
तेओ मारी नजीकमां रहेनारा छे पण मारी साथे एकमेक थईने रहेनारा नथी,–आम एकवार तेमनो
पाडोशी थईने जुदा आत्मानो अनुभव कर. बे–घडी तो तुं आम करी जो! बे–घडीमां ज तने तारा
चैतन्यनो अपूर्व विलास देखाशे.
आ वात सहेली छे, केमके तारा स्वभावनी छे अने ताराथी थई शके तेवी छे. ने आम करवामां
ज तारुं हित छे...माटे सर्वप्रकारना उद्यमथी तुं आवा चैतन्यनो अनुभव कर.–आम संतोनो उपदेश छे.
(पू. गुरुदेवना प्रवचनोमांथी)