Atmadharma magazine - Ank 196
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : १९६
स्वकार्यने साधवा माटे
आचार्यदेव मुमुक्षुने शिखामण आपे छे.
नियमसार गा. १पपमां आचार्यदेव कहे छे के हे योगी!
आत्मध्यानस्वरूप निश्चय प्रतिक्रमणादि सत्क्रियाओने जाणीने तुं निरंतर
स्वकार्यमां परायण था...जगतनी निंदा–प्रशंसा सामे न जोतां, मौनपूर्वक निज
कार्यने साधवामां निरंतर तत्पर था.
अहीं मुख्यपणे मुनिने संबोधीने शिखामण आपी छे, ते अनुसार बीजा
मुमुक्षु जीवोने पण ए शिखामण लागु पडे छे. हे मुमुक्षु! पहेलां तो तुं शुद्ध
निश्चयथी प्रतिक्रमणादि क्रियाओनुं स्वरूप जाण! निश्चयथी प्रतिक्रमणादि
सत्क्रियाओ आत्मध्यानस्वरूप छे, आत्माना ध्यानमां ते बधी क्रियाओ समाई
जाय छे, माटे, तुं तारा आत्मस्वरूपने जाणीने तेना ध्यानमां तत्पर था.
आत्मस्वरूपने जाणीने तेनुं ध्यान–ए ज तारुं स्वकार्य छे, तारा आ स्वकार्यमां
ज तुं परायण था. दुनियाना अज्ञानी के मूर्ख जीवो कदाच तारी निंदा करे तोपण
तुं तारा निजकार्यथी च्युत थया वगर, स्वकार्यने साधवामां ज निरंतर तत्पर
रहेजे.–केमके तारुं निजकार्य परम मोक्षसुखनुं कारण छे. दुनियानी निंदाना
भयथी तुं तारा स्वकार्यने छोडीश नहीं.
अहीं आ शिखामण द्वारा मुमुक्षुनी परिणति केवी होय, अने ते पोताना
कार्यने कई रीते साधे ते ओळखाव्युं छे. जे जीव खरेखरो मुमुक्षु छे अने जेने पोतानुं
आत्महित साधवुं ए एक ज निजकार्य भास्युं छे ते मुमुक्षु स्वकार्यने साधवा माटे
निरंतर तत्पर होय छे, तेना हृदयमां निरंतर खटक होय छे के समस्त बहिर्मुख
भावो छोडीने अंतर्मुख थईने हुं मारा स्वकार्यने साधुं.–आवा मुमुक्षुए मौनव्रतपूर्वक
निजकार्यने साधवुं, एटले के जगतमां कोई निंदा करतुं होय तोपण ते सांभळीने खेद
न थवा देवो अने निजकार्यने छोडवुं नहीं. अनंत अनंतकाळमां पूर्वे कदी नहीं साधेलुं
एवुं अपूर्व आत्मकार्य हवे मारे साधवानुं छे तेथी जगतना लौकिक जीवोनी जेम
मारे प्रवर्तवुं योग्य नथी, मारुं जरूरनुं कार्य तो एक ज छे के मारा स्वरूपनी
सावधानी करवी.–आम निजकार्यमां उत्साहित थयेलो मुमुक्षु जीव, जगतनी दरकार
छोडीने पोताना हितकार्यने साधे छे. ते जाणे छे के निजात्माना आश्रये सधातुं आ
निजकार्य ज मने परम सुख देनार छे, तेथी ते पोताना निजकार्यथी डगतो नथी.