नथी. कोई जीवो तीव्र अज्ञानने लीधे सत्नो विरोध पण करे के निंदा पण
अवलंबनरूप निजकार्य ज कर्तव्य छे. सत्नी निंदा के विरोध करनारा साथे
वादविवाद करीने तेमने हरावी दऊं, के बीजा जीवोने समजावी दऊं,–आवी
बाह्यवृत्तिना वेगने शमावीने, अंतर्मुख थईने निजात्माना आश्रये हितकार्य
साधवामां ज मुमुक्षुए निरंतर परायण रहेवुं, एवी आचार्यदेवनी शिखामण
छे.
त्यम ज्ञानी परजनसंग छोडी ज्ञाननिधिने भोगवे.
छे. तेम अनंतकाळथी नहीं पामेल एवी अपूर्व सहजज्ञाननिधिने श्री गुरुना
उपदेशवडे कोई आसन्नभव्यजीव पाम्यो, ते जीव जगतमां ढंढेरो नथी पीटतो
के अमने आम थयुं छे; ते तो अंतरमां ऊतरीने पोताना ज्ञाननिधानने
भोगवे छे. आ रीते परजनोनी अपेक्षा छोडीने, मुमुक्षु जीव पोताना
सहजतत्त्वनी आराधना करे छे. निजस्वरूपनो संग छोडीने, परजनोनो संग
करवा जतां स्वात्मध्यानमां विघ्न ऊभुं थाय छे, माटे ज्ञानी धर्मात्मा ते
परजनोनो संग छोडीने स्वात्मध्यानमां तत्पर थाय छे, ने निजकार्यने
थया,...हवे अमे अंतरमां ऊतरीने अमारा आनंदनिधानने भोगवशुं, जगत
पासेथी अमारे कांई लेवुं नथी तेमज जगतमां कोईनो बोजो अमारा उपर
नथी. “–आ रीते धर्मी जीव अव्यग्र अने निर्भ्रांतपणे पोताना
आनंदनिधानने भोगवतो थको तेनी रक्षा करे छे, एटले पोताना
सहजतत्त्वनी आराधनाने टकावी राखे छे. जगत प्रत्येनो सहज वैराग्य अने
आचार्यदेवे शिखामण आपी छे के