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(१३६) सम्यग्द्रष्टि नियमथी ज्ञान अने वैराग्यसंपन्न होय छे. ‘सम्यग्दृष्टेर्भवति नियतं
ज्ञानवैराग्य शक्तिः’ ज्ञान अने वैराग्य ए बे सम्यग्द्रष्टिनी खास शक्तिओ छे के जेने लीधे तेने बंधन
थतुं नथी पण निर्जरा ज थाय छे. आत्मस्वभाव तरफ ज्ञान वळे अने रागादिथी विरक्त न थाय–
एम बने ज केम? ज्ञानीनुं हृदय विषयोथी ने रागनी अत्यंत विरकत होय छे, तेने (रागादिने के
विषयोने) पोताना आत्मा साथे जाणे स्वप्नेय लागतुंंवळगतुं न होय–एम तेनाथी आत्मानी अत्यंत
भिन्नता प्रतिभासे छे. ज्ञानीने जराक रागादि थता देखाय त्यां स्थूळ अज्ञानीने एम थई जाय छे के
आ ज्ञानीने पण आपणी जेम ज रागादि थाय छे.–पण राग वखते सम्यग्द्रष्टिनुं हृदय बीजुं कार्य करे
छे–के जे रागथी तद्न जुदुं छे, तेने ते अज्ञानी ओळखी शकतो नथी. सम्यग्द्रष्टिनुं हृदय ऊंडु छे; घणी
पात्रता वगर ते पकडातुं नथी. अहा! ज्ञानी तो महावैराग्यनुं पूतळुं छे...एना रोमे रोमे चैतन्यना
प्रदेशे प्रदेशे रागथी उदासीनता परिणमी गई छे...रागथी तेनुं हृदय अत्यंत विरक्त छे...सम्यग्द्रष्टिनुं
हृदय आखा जगतथी उदास छे, तेथी ज कह्युं के:
‘दास भगवंतको....उदास रहे जगतसों,
सुखियां सदैव एसे...जीव समकिती है.’
(१३७) पोताना चैतन्यस्वरूपने पवित्र जाणतो थको, रागथी पृथक् थईने समकिती–हंस
पोताना आत्म–आराममां....चैतन्यबागमां निजानंद केलि करे छे. वच्चे राग आवे ते दुर्गंध जेवो
अपवित्र भासे छे, तेना वेदननी तेने होंश नथी. तेने चैतन्यस्वभाव तरफनो ज उत्साह छे, राग
तरफनो उत्साह तेने तूटी गयो छे. तेथी उत्साह वगरनो जे थोडोक राग रह्यो छे तेनी कांई गणतरी
नथी; स्वभाव तरफना उत्साहना वेगने लीधे तेने बंधन तूटतां ज जाय छे. माटे कह्युं के भेदज्ञान थया
पछी ज्ञानीने बंधन थतुं नथी.
(१३८) ज्ञानीनी परीक्षा करवानी ने ओळखाण करवानी रीते पण जगतना जीवोने आवडती
नथी, एटले पोतानी कल्पना अनुसार माप काढे छे. पहेला नंबरना अज्ञानी एवा छे के मात्र
बहारना वेषथी परीक्षा करे छे. बीजा नंबरना अज्ञानी एवा छे के बहारनी क्रिया देखीने परीक्षा करे
छे. त्रीजा नंबरना अज्ञानी एवा छे के कषायनी मंदता उपरथी माप काढे छे. पण ते कोई ज्ञानीने
ओळखवानी खरी रीत नथी. जे साचो जिज्ञासु छे ते तो अंतरनी तत्त्वद्रष्टिथी परीक्षा करे छे के सामा
जीवने श्रद्धा–ज्ञान केवां छे? तेने स्वाश्रय चैतन्यभगवाननी श्रद्धा छे के नहीं? रागथी भिन्नचैतन्य
स्वभावनी प्रतीत छे के नहीं? राग थाय तेनाथी लाभ माने छे के तेनाथी जुदो रहे छे?–एनी रुचिनुं
जोर कई तरफ काम करे छे? एना वेदनमां शेनी मुख्यता छे? आ रीते अंतरना श्रद्धा–ज्ञान उपरथी
ज्ञानी धर्मात्माने जे जीव ओळखे छे ते सुपात्र छे.
(१३९) कोई ज्ञानी होय छतां पुण्ययोगे बहारमां संयोग घणो होय, कोई अज्ञानी होय छतां
बहारमां संयोग थोडो होय;–तेथी संयोग उपरथी ज्ञानी–अज्ञानीनुं माप थतुं नथी.
कोई जीवे वस्त्रादि छोडीने मुनिनुं द्रव्यलिंग धारण कर्युं होय छतां अभिप्रायमां मिथ्यात्व
सेवातुं होय एम पण बने, अने कोई जीव वस्त्रादि सहित गृहस्थपणामां होय छतां अंतरमां
सम्यग्द्रष्टि होय;–माटे बाह्यवेष उपरथी पण ज्ञानी–अज्ञानीनी परीक्षा थई शकती नथी.
कोई अज्ञानी जीव मंदकषायने लीधे एवो शांत देखातो होय के कोई बाळी मूके तोय क्रोध न
करे, छतां अंतरमां कषायथी भिन्न चिदानंद आत्मानुं भान तेने न होय; ते बंधमार्गमां ज पड्यो छे,
मोक्षमार्गनी तेने खबर पण नथी. अने कोई ज्ञानीने अस्थिरताजनित क्रोध थतो होय पण ‘मारो
क्षमावंत वीतरागी चैतन्य स्वभाव आ क्रोधथी जुदो छे’ एवुं भान तेना अंतरमां वर्ते छे एटले
खरेखर ते बंधमार्गमां नथी पण मोक्षमार्गमां वर्ते छे.–आ रीते मात्र कषायनी मंदता उपरथी पण
ज्ञानी–अज्ञानीनी साची ओळखाण थती नथी.