Atmadharma magazine - Ank 197
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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फागण: २४८६ : १प:
पहेलां पोते भेदज्ञान अने सम्यग्दर्शन शुं चीज छे ते ओळखे तो तेने अनुसार ज्ञानी–
अज्ञानीनी ओळखाण करी शके. ए सिवाय पोते अज्ञानमां ऊभो रहीने ज्ञानीनी वास्तविक ओळख
क््यांथी करी शके?
(१४०) ऋषभदेव भगवानना पुत्रो भरत अने बाहुबली बंने भाईओ समकिती धर्मात्मा
हता ने बंने चरमशरीरी हता. लडाईमां बंने भाईओ एकबीजा सामे लडया....तेमां भरत जीती
शक््या नहि एटले क्रोधमां आवीने छेवटे बाहुबली उपर चक्र छोडयुं. चारेकोर हा–हा कार थई गयो.
परंतु बाहुबली तो भरतना भाई, अने वळी चरमशरीरी, तेथी तेना उपर चक्र चाल्युं नहि. गोत्रना
माणसो उपर के चरमशरीरी जीवो उपर चक्र चाली शकतुं नथी. एटले भरते छोडेलुं चक्र बाहुबलीने
कांई न करी शक््युं. –पण बाहुबलीने ए प्रसंगे संसार उपरथी वैराग्य आव्यो के अरे, आ शुं? आवा
क्षणभंगुर राज्यने माटे भरतने मारा उपर चक्र छोडवुं पडे!! धिक्कार आ राजने! धिक्कार आ
मोहने! आ जीवनमां राजने माटे आ शुं? –आम वैराग्य पामी, मुनि थई, एक वर्ष अडगपणे ध्यान
करीने केवळज्ञान पामी मोक्षे गया. साधारण जीवोने तो एम लागे के अरे, ज्ञानी थईने लडाई करे–
आ शुं! आ रीते बाह्यबुद्धिवाळा साधारण जीवोने एटलुं ज देखाय छे के बंने सामसामा लडाई करे
छे; परंतु, ते वखतेय पोताना शुद्ध पवित्र आनंदघन ज्ञातास्वभावनुं बंनेने भान वर्ते छे, भेदज्ञानना
बळे ते वखतेय तेमनी परिणति लडाईना भावथी जुदी ज्ञाताभावे परिणमी रही छे, तेने ते
बाह्यबुद्धि जीवो देखी शकता नथी. लडाई वखते पण भरत अने बाहुबली ए बंनेनुं ज्ञान, ‘हुं
चिदानंद आत्मा, परथी भिन्न छुं’ एवा ज्ञानपणे परिणमे छे,–के ‘हुं क्रोध छुं’ एम लडाईना भावपणे
परिणमे छे?–ए कोण नक्की करशे? जेने क्रोध अने ज्ञाननुं भेदज्ञान हशे ते ज तेनो निर्णय करी शकशे.
मींदडी जे मोढेथी पोताना बच्चांने पकडे छे ते ज मोढेथी ऊंदरने पकडे, पण ‘पक्कड पक्कड में फेर है.’
तेम बहारनी क्रिया ज्ञानी अने अज्ञानीने एकसरखा जेवी देखाती होय तो पण तेमना अंतरना
परिणमनमां महान आंतरो होय छे. अज्ञानी तो रागमां ज लयलीन वर्ते छे, राग वखते तेनाथी
जराय भिन्नता तेने रहेती नथी; त्यारे ज्ञानीने तो रागथी अत्यंत भिन्नतानुं भेदज्ञान उदय पाम्युं छे,
एटले तेने रागथी भिन्नता ज रहे छे.
(१४१) आत्मानो ज्ञानस्वभाव, अने क्रोधादि परभाव, ए बंनेने जुदां पाडतुं भेदज्ञान उदय
पाम्युं छे. केवी रीते भेदज्ञान उदय पाम्युं छे?–के ‘चिदानंद स्वभाव ते हुं’ एम स्वभावनी अखंडताने
साधतुं, अने ‘आ रागादि परभावो ते हुं नहि’ एम परपरिणतिने छोडतुं, भेदज्ञान उदय पाम्युं छे. वळी
ज्ञान कर्ता अने क्रोधादि तेनुं कर्म,–एवो जे कर्ता–कर्मनो भेद तेने तोडी पाडतुं अत्यंत प्रचंडपणे ते ज्ञान
उदय पाम्युं छे. अत्यंत प्रचंड एटले तीखुं ज्ञान, ज्यां स्वभावने साधतुं झगझगाट करतुं प्रगट थयुं त्यां
रागादि साथे कर्ताकर्मनी प्रवृत्तिनो अवकाश क्यांथी होय?–अने कर्मनुं बंधन पण केम थाय? ‘हुं आत्मा
निर्मळ चिदानंदमूर्ति छुं ने रागादि भावो मारा स्वरूपथी बहार छे’–आम स्वभावनी अखंडताने साधतुं
ने परपरिणतिने छोडतुं जे भेदज्ञान उदय पाम्युं तेमां परभावो साथे कर्ताकर्मपणुं होतुं नथी तेमज कर्मनुं
बंधन पण थतुं नथी. स्वभावमां परिणमतुं अने परभावने छोडतुं ते ज्ञान कर्मबंधनने छेदीने आत्माने
मुक्ति पमाडे छे. आ रीते भेदज्ञान ते ज बंधनथी छूटवानो उपाय छे.
नोंध:– गाथा ६९ थी ७२ उपरना पू. गुरुदेवना सुंदर प्रवचनोना आ दोहनमां, पू.
बेनश्रीबेनलिखित प्रवचनोमांथी णप केटलोक भाग उमेर्यो छे, तेनी साभार नोंध लईए छीए.
–: सं पू र्ण:–