फागण: २४८६ : १७:
आचार्य भगवान मोक्षनुं साधन बतावे छे
(मलकापुरमां पू. श्री कानजीस्वामीनुं प्रवचन: ता. ३१–३–प९)
आत्माने बंधनथी छूटवानुं साधन शुं, मोक्षनुं साधन शुं ते वात चाले छे. जिज्ञासु शिष्य पूछे
छे: प्रभो! आ आत्माने रागादि साथे एकतारूप जे बंधन छे ते दुःखदायक छे, ते बंधनथी छूटकारो केम
थाय? कया साधनवडे आत्मा अने बंधन जुदा पडे? आचार्य–महाराज तेनो उत्तर आपे छे के हे
शिष्य! सांभळ! आत्मा चैतन्यलक्षणवाळो छे ने बंध तो रागादिक लक्षणवाळो छे, ए रीते भिन्नभिन्न
लक्षणवडे बंनेने जुदा ओळखीने, प्रज्ञाने अंतरमां ज्ञान–स्वभावमां एकाग्र करतां बंधन वगरनो–
राग वगरनो ज्ञान–स्वभावी आत्मा अनुभवमां आवे छे ने रागादि जुदा पडी जाय छे. आ रीते
प्रज्ञारूपी साधनवडे आत्मा अने बंधन जुदा पडी जाय छे.
रागादि परभावो साथे एक्ता करीने आत्मा पोताना स्वभावथी खस्यो तेनुं नाम संसार छे;
बहारना संयोगमां के देहमां संसार नथी, संसार तो जीवनी मलिन अवस्था छे. अने मोक्ष पण
बहारमां नथी, मोक्ष ते जीवनी पूर्ण शुद्ध अवस्था छे. आ रीते संसार अने मोक्ष जीवमां ज छे, ने तेनुं
साधन पण जीवमां ज छे. मोक्षनुं साधन बहारमां नथी, तेम संसारनुं कारण पण बहारमां नथी.
मोक्षनुं साधन अंतरमां छे, तेने भूलीने जीवे बहारना ज लक्षे बधुं करीने तेने मोक्षनुं साधन
मान्युं छे. जीवे शुं शुं कर्युं? तो कहे छे के–
यम नियम संयम आप कि््यो,
पुनि त्याग विराग अथाग लयो;
वनवास लह्यो मुख मौन रह्यो
द्रढ आसन पद्म लगाय दियो.
जप भेद जपे तप त्योंही तपे
उरसेंही उदासी लही सबपें,
सब शास्त्रनके नय धारी हिये,
मत मंडन खंडन भेद लिये;
मन पौन निरोध स्वरबोध कि््यो,
हठ जोग प्रयोग सुतार भयो.
वह साधन बार अनंत कि््यो,
तदति कछु हाथ हजु न पर्यो;
अब कयों न विचारता है मनमें
कछु ओर रहा उन साधनमें.
अरे जीव! तुं जराक विचार तो कर के आटला आटला साधन पूर्वे अनंतवार करी चूक््यो छतां
हित केम न थयुं? हितनुं खरुं साधन कयुं बाकी रही गयुं? आचार्यदेव कहे छे के रागादिथी भिन्न
आत्मस्वरूप शुं चीज छे तेनुं यथार्थ ज्ञान (भेदज्ञान) तें पूर्वे कदी एक क्षण पण नथी कर्युं, अने ते
भेदज्ञान ज मोक्षनुं साधन छे.
अहीं आचार्यदेव जिज्ञासुं शिष्यने ए ज साधन समजावे छे: हे जीव! प्रज्ञाछीणी एटले के
आत्मा अने रागनुं भेदज्ञान ते ज मोक्षनुं साधन छे.
आवा भेदज्ञान माटे पहेलां आत्मानी लगनी लागवी जोईए. जेम मातानी आंगळीथी विखूटुं
पडेलुं बाळक पोतानी माताने ज रटे छे; कोई पूछे के तारुं नाम शुं? तो कहे के “मारी बा!” कोई पेंडो
आपे तो न ल्ये ने कहे के “मारी बा!” मातानी लगनी आडे ते बीजुं कांई जोतुं नथी. तेम चैतन्य
स्वभावथी विखूटो पडेलो बाळक जेवो शिष्य पोताना चैतन्यस्वभावनो अनुभव करवा झंखे छे, तेनुं
ज रटण करे छे, तेना रटण