फागण: २४८६ : प:
राजकोट शहेरमां पू. गुरुदेवनां
प्रवचनोनो थोडोक नमूनो
(राजकोट शहेरमां समयसार गा. ९२ अने पछीनी गाथा उपरनां वचनोमांथी)
(१) कर्ताकर्मपणुं
आ आत्मा ज्ञानस्वरूप छे. ज्ञानस्वरूप आत्माने वास्तविक कर्ताकर्मपणुं कोनी साथे छे तेनी
ओळखाण विना, अज्ञानने लीधे रागादि परभावो साथे एकता मानीने तेना ज कर्ताकर्मपणे
परिणमतो थको जीव संसारपरिभ्रमण करी रह्यो छे. ते संसारभ्रमण केम टळे? ते माटे आचार्यदेव
आत्मानुं वास्तविक कर्ताकर्मपणुं समजावे छे.
(२) दशांतर थाय...द्रव्यांतर न थाय
आ जगतमां अनंता जीव अने अजीव द्रव्यो छे, दरेक द्रव्य स्वतंत्र भिन्न भिन्न छे. कोई द्रव्य
पलटीने बीजा द्रव्यरूपे थई जतुं नथी. द्रव्यपणे नित्यटकीने तेनी दशा पलटाया करे छे. एटले द्रव्यनुं
द्रव्यांतर थतुं नथी पण दशांतर थाय छे. जेमके जीव द्रव्यमां तेनी अज्ञानदशा पलटीने ज्ञानदशा थाय,
संसारदशा पलटीने सिद्धदशा थाय, ए रीते दशांतर थाय, पण जीवी पलटीने अजीव थई जाय एम न
बने, अर्थात् द्रव्यांतर न थाय.–आ रीते भिन्न भिन्न द्रव्यो पोतपोतानी दशा पलटता होवा छतां भिन्न
भिन्न स्वरूपे ज रहे छे.
(३) धर्मनुं मूळ छे–भेदज्ञान
ज्ञानस्वरूप आत्मा कर्ता थईने ज्ञानभावने करे ते तो तेनुं वास्तविक कर्ताकर्मपणुं छे; परंतु
ज्ञानस्वरूप आत्मा कर्ता थईने रागादि परभावोने करे तो ते तेनुं वास्तविक कर्ताकर्मपणुं नथी, परंतु
अज्ञानथी ज ते कर्ताकर्मपणुं ऊभुं थयुं छे. ज्ञानरूप निजभावने अने रागादि परभावने भिन्न भिन्न
ओळखीने भेदज्ञान करवाथी रागादिनुं कर्तापणुं छोडीने जीव पोताना ज्ञान–आनंदभावनो ज कर्ता
थाय छे, तेनुं नाम धर्म छे. आ रीते भेदज्ञान ते धर्मनुं मूळ छे.
(४) अज्ञान ज संसारनुं मूळ छे.
अहीं आचार्यदेव एम समजावे छे के अज्ञानथी ज आत्मा कर्मनो कर्ता थाय छे; ज्यारे तेने
भेदज्ञान थाय छे त्यारे पोताना ज्ञानभावमां ज तन्मयपणे परिणमतो थको ते कर्मनो कर्ता थतो नथी.
जेने पोताना स्वभावथी भिन्न जाण्या तेमां तन्मय केम थाय? अने जेमां तन्मय न थाय, एटले के
जेनाथी जुदो रहे तेनो कर्ता केम थाय?–न ज थाय. आ रीते ज्यांसुधी आत्मस्वभावनुं अने रागादिनुं
भेदज्ञान नथी त्यांसुधी ज अज्ञानने लीधे कर्मनुं कर्तापणुं छे, अने त्यांसुधी ज संसार छे. एटले
अज्ञान ज संसारनुं मूळ छे.
(प) राग ते ज्ञाननुं ज्ञेय छे, ज्ञाननुं कार्य नथी
धर्मीजीव एम जाणे छे के जे ज्ञान थाय छे ते मारा स्वभावथी अभिन्न छे, अने जे रागादि
परभावो छे ते मारा स्वभावथी भिन्न छे. जे रागादि भावो छे ते मारा ज्ञानमां ज्ञेयपणे निमित्त छे,
पण ते मारा ज्ञानना कार्यपणे नथी. अज्ञानी तो, ज्ञानमां राग जणाय त्यां तेने ज्ञाननुं कार्य मानी ले
छे, एटले रागथी जुदुं कोई कार्य तेने भासतुं नथी; राग ज हुं छुं, एम मानतो थको रागनो कर्ता
थईने परिणमतो थको ते कर्मने बांधे छे. ज्ञानी तो रागने जाणती वखते पण ते रागने पोताथी भिन्न
जाणतो थको, तेने ज्ञाननुं कार्य मानतो नथी एटले रागथी भिन्न पोताना ज्ञानस्वरूपने जाणीने, ते
ज्ञानभावरूपे ज परिणमतो थको कर्मने बांधतो नथी.–आ मोक्षनो उपाय छे.
(६) कोने समजावे छे आ वात? स्वभावना अभिलाषीने
आ वात कोने समजावे छे?–जेना अंतरमां बंधनथी छूटकारानी धगश जागी छे, अने श्रीगुरु