Atmadharma magazine - Ank 197
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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फागण: २४८६ : ७ :
चेतना गुणनी ताकात
आत्माने विभावथी जुदो राखे छे
समस्त विभावोथी भिन्न एवो शुद्धआत्मा शुद्धचेतनावडे अंतरमां सदा प्रकाशमान छे.
चेतनागुणनी एवी ताकात छे के कोई पण विभावभावोने आत्माना स्वभावमां ते प्रवेशवा देतो
नथी, शुद्धआत्माने विभावथी जुदो ने जुदो ज राखे छे.
मिथ्या मान्यताओने दूर करे छे
शुद्ध आत्माने प्रकाशनारो ते चेतनागुण समस्त विरुद्ध मान्यताओनो नाश करनार छे. देह ते
जीव, राग ते जीव, कर्मवाळो जीव,–ईत्यादि प्रकारे जीवना स्वभावने विपरीत मानवारूप जे अनेक
प्रकारनी ऊंधी मान्यता, तेने चेतनागुण नाश करे छे; ‘जीव तो चेतनास्वरूप छे’–एम प्रकाशतो थको
चेतनागुण मिथ्या मान्यताओने दूर करी नांखे छे.
शुद्ध जीवने प्रकाशमान करे छे
‘शुद्ध चेतनामय जीव’ एम ज्यां लक्षमां लीधुं त्यां चेतना अंतर्मुख थई, समस्त रागादिथी
जुदी पडीने जीव साथे तेनी एकता थई, एटले समस्त रागादिथी भिन्न शुद्ध जीवने ते चेतनाए
प्रकाशमान कर्यो. अ रीते चैतन्यज्योतिमां आखां जीवने प्रकाशित करवानी ताकात छे.
शांति आपवानी ताकात छे.
रागमां एवी ताकात नथी के शुद्ध आत्माने दर्शावे. शुद्ध आत्माने दर्शाववानी ताकात चेतनामां
ज छे. आत्मा देहनो कर्ता, आत्मा रागनो कर्ता, ते रागादिथी आत्माने लाभ, –आम मानीने, देहनी
क्रियामां ने रागादिमां जे जीव शुद्ध आत्मा गोतशे तेने तेमांथी शुद्ध आत्मा कदी नहि मळे, पण तेनी
पर्यायमां मिथ्यात्वरूपी कलेश ऊभो थशे. “चेतनस्वरूप जीव” एम मानीने चेतनामां जीवने शोधतां
शुद्ध आत्मानी प्राप्ति थशे, ने विपरीत मान्यतारूप कलेश शांत थई जशे. आ रीते चेतनामां कलेश दूर
करीने शांति आपवानी ताकात छे.
तेणे पोतानुं सर्वस्व भेदज्ञानी जीवोने सोंपी दीधुं छे
आ चेतनागुण केवो छे? ते रागादि कोई पण परभावोने आधीन थतो नथी, परंतु तेणे
पोतानुं सर्वस्व भेदज्ञानी जीवोने सोंपी दीधुं छे. ‘शुद्ध आत्मा’ ते चेतनानुं सर्वस्व छे. चेतनाना
सर्वस्वरूप एवो शुद्ध आत्मा, भेदज्ञानी जीवोए स्वसंवेदनवडे प्राप्त कर्यो छे. अहा! ज्ञानी कहे छे के
भेदज्ञानमां चेतनागुणे मने आखो आत्मा आप्यो...ज्यां चेतनास्वरूप आत्मानुं स्वसंवेदन थयुं त्यां
समस्त विभावोथी भिन्न आखोय शुद्ध आत्मा अनुभवमां आवी गयो; चेतनाए पोतानुं सर्वस्व ते
भेदज्ञानीने सोंपी दीधुं. आखो आत्मा भेदज्ञानी जीवोने सोंप्यो ने रागादि समस्त परभावोने
आत्मामांथी बहार काढी नांख्या.–आ रीते भेदज्ञानवडे अनुभवमां आवतो शुद्धचैतन्यरूप जीव ते ज
परमार्थस्वरूप जीव छे.
माटे, चैतन्य सिवायना समस्त परभावोने जुदा करीने चैतन्यस्वरूप शुद्ध जीवनो अंतरमां
अभ्यास करो......तेनो साक्षात् अनुभव करो.