Atmadharma magazine - Ank 198
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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चैत्र: २४८६ : ९:
मुनिराज कहे छे के अमारुं चिदानंदतत्त्व शांति अने आनंदथी भरेलुं छे, बहारना पुण्यना
ठाठमां पण क््यांय अमारी शांति के आनंद नथी, माटे अमे तो हवे अमारा चैतन्यमां ज नमीए छीए,
तेना तरफ ज अमारी परिणतिनुं वलण छे. अमे चिदानंदस्वभावने ज सदा प्रणमीए छीए,
चिदानंदस्वभाव सिवाय बीजे क््यांय अमने महिमा के माहात्म्य नथी...अंतरना चिदानंदस्वरूपमां
नमस्कार छे. अंतर्मुख परिणतिवडे ज परमात्मतत्त्वने खरा प्रणाम थाय छे, बहिर्मुख परिणतिवडे
परमात्मतत्त्वने खरा प्रणाम थता नथी.
श्री मुनिराज कहे छे के “....परमात्मानं प्रणमामि सदा....” हुं सदाय परमात्मतत्त्वने प्रणमुं छुं.
पूर्वे अनंतकाळमां जेनो ख्याल न हतो एवो अमारो चैतन्यस्वभाव, तेने हवे लक्षमां लईने, तेमां
ऊतरीने अमे अमारा चिदानंदस्वरूपना अतीन्द्रिय आनंदनो ज स्वाद लईए छीए, ए सिवाय
जगतना कोई पदार्थमां अमने अमारो स्वाद भासतो नथी. रागमां के संयोगमां अमे नथी ऊभा,
अमे तो तेनाथी खसीने अमारा चैतन्यमां ज ऊभा छीए. रागमां के संयोगमां ज्यां अमे नथी त्यां
अमने मानशो तो तमारी मान्यतानी भूल थशे. अमे तो अमारा चैतन्यमां ज छीए. चैतन्यनो धर्म
चैतन्यस्वरूपना प्रवाहमां ज पाके छे, रागना के संयोगना प्रवाहमां चैतन्यनो धर्म पाकतो नथी.–आवा
भानपूर्वक चैतन्यना आश्रये लव–कुश मुनिओए पोतानी मोक्षदशा साधी.
जुओ, आमां सम्यग्दर्शन केम करवुं ने मोक्षमार्गी केम थवुं–तेनी वात छे, तेनी साथे साथे लव–
कुशना आत्माओ कई रीते अहींथी मोक्ष पाम्या ते वात पण भेगी आवी जाय छे. लव–कुश वगेरे
मुनिवरो अहींथी मुक्ति पाम्या ते आ रीते मुक्ति पाम्या छे ने आ ज मुक्तिनो मार्ग छे; आ ज खरुं
मंगळ छे, आ ज उत्तम छे ने आ ज शरणरूप छे.
धर्मात्मा मुनिवरोने पोतानो चिदानंद स्वभाव एक ज वहालो लाग्यो छे, अने पोताने जे
वस्तु वहाली छे तेनुं जगतने निमंत्रण करे छे के हे जीवो! तमे पण आवा चिदानंदस्वरूपी ज छो, तमे
पण तेना ज आश्रय करीने अतीन्द्रियआनंदनां जमण जमो. जेम तीर्थमां संघनुं जमण करे अथवा
लग्न पछी हरखजमण करे तेम अहीं मोक्षने साधतां साधतां मोक्षमार्गी संतो जगतने अतीन्द्रिय
आनंदनां जमण जमाडे छे....मोक्षना मंडपमां आखा जगतने निमंत्रण करे छे के हे जीवो! आवो
रे....आवो.... अमारी जेम तमे पण तमारा आत्मामां अंतर्मुख थईने अतीन्द्रियआनंदनां जमण जमो,
तेनो स्वाद ल्यो.
आजे जात्रानो पहेलो दिवस छे...सोनगढथी नीकळ्‌या पछी पहेली जात्रा आ पावागढ–
सिद्धक्षेत्रनी थाय छे; तेमां अहींथी मोक्ष पामेला लव–कुश मुनिने याद करीने तेओ कई रीते मोक्ष
पाम्या ते बताव्युं. ते मार्ग समजीने अंतरमां ऊतरवुं ते सिद्धभगवंतोने भाव नमस्कार छे, ते
सिद्धिधामनी निश्चयजात्रा छे; अने तेओ ज्यांंथी मोक्ष पाम्या एवा आ सिद्धक्षेत्र वगेरे तीर्थोनी
जात्रा–वंदनानो भाव ते द्रव्यनमस्कार छे, ते व्यवहार जा्रत्रा छे. आवा निश्चय–व्यवहारनी संधि
साधकना भावमां होय छे.
–पावागढ सिद्धक्षेत्रनुं प्रवचन पूर्ण