Atmadharma magazine - Ank 198
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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चैत्र: २४८६ : ११:
ठीक छे–तेमने यौवननो उन्माद अने योद्धापणानो अहंकार छे, तो हुं तेनो उपाय करीश. पिताजीए
आपेली पृथ्वीनो कर दीधा वगर ज तेओ उपभोग करवा चाहे छे, परंतु ते नहि बनी शके. क््यां
षट्खंडविजेता हुं! अने क््यां मारा उपभोग्यक्षेत्रमां रहेनारा तेओ? छतां पण, जो तेओ मारी
आज्ञानुसार रहे तो राज्यमां तेमनो पण हिस्सो थई शके. अहा! महाखेदनी वात छे के अतिशय
बुद्धिमान, बंधुप्रेम राखनार अने कार्यकुशळ एवो ते बाहुबली पण मारा प्रत्ये विकृति पामी रह्यो छे!
बाहुबली सिवायना बीजा बधा राजपुत्रो कदाच नमस्कार करे तो पण तेथी शुं लाभ? अने पोदनपुर
वगरनुं आ समस्त राज्य शा कामनुं? पराक्रमथी शोभी रहेलो बाहुबली जो मारे वश न थाय तो आ
बधा सेवको अने योद्धाओथी मारे शुं प्रयोजन छे?
–ज्यारे भरतमहाराजा क्रोधवश आ प्रमाणे बोलवा लाग्या, त्यारे पुरोहिते तेने शांत पाडतां
कह्यु; हे देव! ‘जीवता योग्य बधायने में जीती लीधा छे’ एवी घोषणा करवा छतां आप क्रोधना वेगथी
केम जीताई गया? जितेन्द्रिय पुरुषोए क्रोधने तो पहेलां ज जीतवो जोईए. आपना भाईओ तो
बालक छे एटले बालस्वभावथी तेओ तो गमे तेम वर्ते, परंतु आपे तो क्रोध न करवो जोईए. जे
मनुष्य क्रोधरूपी अंधकारमां डुबेला पोताना आत्मानो उद्धार नथी करतो ते पोताना कार्यनी सिद्धिमां
हंमेशां सशंक रहे छे. जे राजा पोताना अंतरंगमांथी उत्पन्न थता क्रोधादि शत्रुओने नथी जीती शकतो,
तेमज पोताना आत्माने नथी जाणतो ते कार्य–अकार्यने क््यांथी जाणी शके? माटे हे देव! जो आप
विजय चाहता हो तो आ क्रोधशत्रुथी दूर रहो–केमके जितेन्द्रिय पुरुषो केवळ क्षमाद्वारा ज पृथ्वीने वश
करी ल्ये छे. अतीन्द्रिय आत्माना ज्ञानवडे जेणे ईन्द्रियसमूहने जीती लीधो छे, शास्त्ररूपी संपदानुं जेणे
सारी रीते श्रवण कर्युं छे अने जे परलोकने जीतवानी ईच्छा राखे छे–एवा पुरुषोने माटे सौथी
उत्तमसाधन क्षमा ज छे. स्वामी! जे कार्य एक चिठ्ठीद्वारा पण बनी शके तेवुं छे तेमां अधिक परिश्रम
शा माटे करवो? माटे आप शांत थाओ, अने दूतो मारफत भेटसहित सन्देश मोकलो, तेओ जईने
आपना भाईओने कहे के ‘चालो, तमारा मोटाभाईनी सेवा करो; तमारा मोटा भाई पितातुल्य छे,
चक्रवर्ती छे अने लोकोद्वारा पूज्य छे.’
ए प्रमाणे पुरोहितना वचनो सांभळीने चक्रवर्तीनो क्रोध शांत थयो....बराबर छे के
महापुरुषोना चित्तनी वृत्ति अनुकूळ वचनो कहेवाथी ज ठीक थई जाय छे. ‘प्रयत्नथी पण जेने वश करी
शकाय एम नथी–एवा बाहुबलीनी वात हमणां दूर रहो, पहेलां तो बाकीना भाईओना हृदयनी
परीक्षा करुं’–आम विचारीने चक्रवर्तीए चतुर दूतोने पोताना भाईओ पासे मोकल्या. ते दूतोए जईने
तेओने चक्रवर्तीनो सन्देश संभळाव्यो.
दूतनां वचनो सांभळीने ते भाईओए कह्युं: आदिराजा भरत कहे छे ते जो के ठीक छे, केमके
पिता न होय त्यारे मोटा भाई ज नानाभाईओवडे पितातुल्य पूज्य होय छे:– परंतु आखा जगतने
जाणनार–देखनार अमारा पिताजी (ऋषभदेव) प्रत्यक्ष बिराजमान छे, तेओ ज अमारा पूज्य गुरु
छे अने तेओ ज अमने प्रमाण छे; अमारो आ वैभव तेमणे ज दीधेलो छे तेथी आ बाबतमां अमे
पिताजीना चरणकमलने आधीन छीए. आ संसारमां अमारे भरतेश्वर पासेथी नथी तो कांई लेवानुं
के नथी कांई देवानुं:– आ रीते जवाब आपीने दूतोने विदाय कर्या.
त्यारबाद ते राजकुमारो आ कार्यनो निर्णय करवा माटे पिताजी पासे पहोच्यां....कैलासपर्वत
उपर बिराजमान जगतपिता भगवान ऋषभदेवना दर्शन कर्या अने पूजनादि विधि बाद कह्युं: हे देव!
अमे आपनाथी ज जन्म पाम्या छीए, अने आपनाथी ज आ उत्कृष्ट विभूति अमने मळी छे, तथा
हजी पण अमे आपनी ज प्रसन्नता